भाजपा में विरोधी सुरों की अग्नि प्रचंडः बढ़त में दिख रहे आप उम्मीदवार, कांग्रेस की घोषणा पर निगाहें, क्या होगा मुकाबला कड़ा ?

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़), संदीप डोगरा।भाजपा द्वारा लोकसभा हलका होशियारपुर से उम्मीदवार की घोषणा से अन्य राजनीतिक दलों के चेहरे खिले-खिले से दिखने लगे हैं। क्योंकि, लोकसभा हलके के अधिकतर क्षेत्रों में सोमप्रकाश का खासा विरोध रहा है और भाजपा ने भी परिवारवाद को बढ़ावा न देने की पालिसी को दरकिनार करते हुए उनकी धर्मपत्नी को टिकट देकर चुनाव मैदान में उतार दिया है, जिसका कार्यकर्ताओं द्वारा अंदरखाते खासा विरोध भी शुरु हो गया है। जिसका लाभ निश्चित तौर पर दूसरे दलों के उम्मीदवारों को मिलना तय है। इस स्थित में कांग्रेस से आम आदमी पार्टी में गए डा. राज कुमार की स्थिति मजबूत दिखाई दे रही है और अभी तक के हालातों को देखते हुए राजनीतिक माहिरों का कहना है कि भाजपा ने परिवारवाद नीति के तहत सोम प्रकाश की धर्मपत्नी को टिकट देकर अपने पैर पर कुलहाड़ी मारने का काम किया है, हां कोई चमत्कार हो जाए तो अलग बात है, पर एेसे हालात दिख नहीं रहे हैं। क्योंकि कुछेक शहरी क्षेत्रों की बात छोड़ दें तो अधिकतर के साथ-साथ गांवों एवं कस्बों में सांसद से केन्द्रीय राज्य मंत्री बनें सोमप्रकाश द्वारा विकास के रथ को न के बराबर ही गति प्रदान की गई, जिसके चलते उन्हें कई बैठकों में कार्यकर्ताओं के साथ-साथ जनता की नाराजगी का भी सामना करना पड़ा। एेसे में कैसे कहा जा सकता है कि मोदी फैक्टर यहां काम करेगा और पिछली बार की तरह ही लोग मोदी के नाम पर वोट दे देंगे।

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दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी की बात करें तो उन्होंने मौके पर चौका मारने का काम करते हुए डा. राज को टिकट देकर लगभग जीत पक्की करने जैसा फैसला लिया। लेकिन अब बात यहां टिकी हुई है कि कांग्रेस किस उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारती है। क्योंकि, अब तक की स्थिति तो एेसी है कि मामला एकतरफा दिखाई दे रहा है। कांग्रेस अगर पूर्व मंत्री व सांसद संतोष चौधरी को उतारती है तो मुकाबला थोड़ा कड़ा हो सकता है और अगर पूर्व विधायक पवन आदिया को चुनाव मैदान में उतारती है तो मुकाबला बहुत कड़ा हो सकता है। राजनीतिक माहिरों के अनुसार पवन आदिया के साथ हलके के समस्त पूर्व कांग्रेसी विधायकों का समर्थन है और कांग्रेसी कार्यकर्ता पर उनके विनम्र स्वभाव और कार्यकर्ताओं एवं हलके की जनता के लिए उनके समर्पण भाव का भी विशेष प्रभाव है। एेसे में कहा जा सकता है कि मुकाबला भाजपा, आप और कांग्रेस में नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ आप और कांग्रेस में होगा। क्योंकि, भाजपा के जितने भी गुट हैं उनमें से मात्र एक गुट ही पूरी तरह से अनीता सोम प्रकाश के साथ है और बाकी गुट सिर्फ दिखावे के लिए साथ चलने का दिखावा कर सकते हैं।

पूर्व मंत्री विजय सांपला गुट को भरोसा था कि इस बार पार्टी विजय सांपला के नाम की घोषणा कर सकती है और उनके द्वारा पिछले समय से ही टिकट पक्का होने के दावे भी किए जा रहे थे। लेकिन टिकट अनीता सोमप्रकाश को दिए जाने से उनके चेहरे भी मुरझा गए हैं। सूत्रों की मानें तो सांपला गुट पूरी तरह से निराशा में है और किसी भी कीमत पर अनीता सोम प्रकाश के हक में चलने को तैयार नहीं। हालांकि विजय सांपला ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि हो सकता है भगवान ने उनके लिए कोई द्वार रखा हो, पर उनकी यह बात भी उनके समर्थकों के गले नहीं उतर रही तथा माना जा रहा है कि पूरे हलके में विजय सांपला को टिकट दिए जाने की मांग थी और वे विजेता उम्मीदवार भी हो सकते थे। जबकि वोट ही मोदी के नाम पर पड़ने के दावे भाजपा नेता खुद कर रहे हैं तो उम्मीदवार की खुद की पहचान का होना मायने नहीं रखता। परन्तु एक गुट ने सोम प्रकाश या उनकी पत्नी को टिकट देने की जी तोड़ कोशिश की और वह उसमें सफल भी रहे। पर पार्टी के भीतर एवं बाहरी नाराजगी को वे कैसे दूर करते हैं यह सवाल उनके लिए भी खाला जी के बाड़े से कम नहीं है। सूत्रों के अनुसार कई भाजपा नेताओं का ही तर्क है कि अनीता सोम प्रकाश को बतौर विधायक फगवाड़ा से टिकट दिया जाता तो ठीक था, लेकिन लोकसभा के लिए विजय सांपला मजबूत उम्मीदवार हो सकते थे। खैर यह तो समय ही बताएगा कि पार्टी कार्यकर्ता कितने जोश के साथ उनके समर्थन में वोट जुटा पाते हैं और भाजपा के शेष गुटों का क्या रवैया रहता है। कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर विजय सांपला आजाद खड़े हो जाते हैं तो. . क्योंकि कई कार्यकर्ता उन्हें आजाद चुनाव मैदान में खड़ा होने का भी जोर डाल रहे हैं।

फिर बसपा उम्मीदवार भी तो है, वह भी तो अच्छा खासा वोट प्रतिशत खींच लेते हैं। बसपा ने इस बार युवा राकेश सुमन को चुनाव मैदान में उतारा है और वह भी वोटरों पर काफी प्रभाव डाल रहे हैं, तो भाजपा की राह आसान कैसे हो सकती है।

क्योंकि सोम प्रकाश ने अपने कार्यकाल में अन्य गुटों की अनदेखी ही की, जिसके बारे में अकसर ही कार्यकर्ता नाराजगी जताते देखे गए हैं। किसानी आंदोलन और अन्य कई मुद्दों पर भाजपा का पंजाब में खासा विरोध है और केवल मोदी के नाम पर वोट मांगना एवं जीतने का लक्ष्य लेकर चलना भाजपा के लिए कांटों भरी बाड़ को पार करने के समान है। अब देखना होगा कि कांग्रेस किस उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारती है और भाजपा की जीत के लिए क्या रणनीति रहती है। लेकिन फिलहाल तो आप उम्मीदवार डा. राज का कद और हाथ का झाड़ू सभी पर भारी पड़ता दिख रहा है।

इसके अलावा अकाली दल की तरफ से भी अभी तक उम्मीदवार की घोषणा नहीं की गई है। अगर अकाली दल डा. लखबीर को चुनाव मैदान में उतरता है तो भी मुकाबला सीधा नहीं कहा जा सकता। सीट रिजर्व होने के चलते इस सीट पर खड़े उम्मीदवारों की नज़र एससी वोटरों पर होती है और सभी अपने-अपने खेमे में पलड़ा भारी होने का दावा करते हुए अधिक से अधिक दलित वोट खींचने के प्रयास में रहेंगे। तो कहा जा सकता है कि एससी वोट बैंक भी बंटेगा और मात्र इसी के आधार पर जीत के दावे करने खोखलापन होगा।

डा. लखबीर ने थोड़े समय में ही नौकरी में रहते हुए जो कार्य किए उनका भी काफी प्रभाव है और उन्हें भी जनता का काफी सहयोग एवं समर्थन मिल रहा है और लोगों की मांग है कि उन्हें होशियारपुर से चुनाव मैदान में उतारा जाए। क्योंकि, निरंकारी मिशन के साथ जुड़ा होने के चलते डा. लखबीर को निरंकारियों का काफी समर्थन मिल सकता है। जिससे अकाली दल भले ही जीत की तरफ अग्रसर न हो, पर कांटे की टक्कर जरुर दे सकता है। वैसे एक बात है ये राजनीति है इसमें भी कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता।

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