खुल गया ढक्कन, उड़ गई भापः भाजपा के रथ पर नए-नए सवार हुए पूर्व मंत्री दो-दो खिलाड़ियों पर खेल रहे दांव

राजनीतिक अखाड़े में प्रतिद्वंदी कब आपके खेमे का खासमखास बना जाए और खास कब प्रतिद्वंदी के रुप में खड़ा दिखने लगे कुछ कहा नहीं जा सकता तथा प्रतिद्वंदी गुट में भी अपनी गोटियां फिट रखने का हुनर भी किसी-किसी राजनेता में होता है और आज के दौर में कामयाब भी उसे ही माना जाता है, जो सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की तरफ से पासा फेंकने का दम रखता हो। इन दिनों यह पंक्तियां भाजपा में नए-नए शामिल हुए एक पूर्व मंत्री पर सटीक बैठती नज़र आ रही हैं। क्योंकि, भले ही वह भाजपा में शामिल तो हो गए हों, लेकिन उन्होंने अपनी मां पार्टी को छोड़ने के बाद भी उसमें अपने पयादों को इस तरीके से फिट किया हुआ है कि विपक्ष के उम्मीदवार के समर्थन और उसके लिए काम करने के लिए टीम के गठन व चुनाव प्रचार तक कई कार्य उनकी देखरेख एवं इशारों पर हो रहे हैं। जिसका नुकसान स्वभाविक है कि भाजपा को उठाना पड़ सकता है।

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विश्वसनीय सूत्रों की माने तो इतिहास गवाह है कि जो राजनीति में आ गया उसका भरोसा तो वैसे कभी नहीं करना चाहिए लेकिन पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं के लिए उनका नेता ही सब कुछ होता है तथा एसे जुगाड़ी नेताओं के कारण ही चुनाव के समय में दलबदलुओं की तादात बढ़ जाती है तथा अधिकतर नेता अपनी स्वार्थ एवं किसी न किसी दवाब के दूसरी पार्टियों का रुख कर जाते हैं। पंजाब में एक सीट पर कांग्रेस द्वारा घोषित उम्मीदवार को पूर्व कांग्रेसी व वर्तमान में भाजपाई नेता द्वारा पूर्ण समर्थन देने की चर्चाएं जोरों पर हैं, जिस कारण कांग्रेस उम्मीदवार एवं उसके कुछ समर्थकों के हौंसले भी काफी बुलंद हो रखे हैं तथा भाजपा के कई नेता एवं कार्यकर्ता इस बात से वाकिफ भी हो चुके हैं। पर, बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन, यानि इस बात को बड़े नेताओं के समक्ष उठाएगा कौन, क्योंकि शीर्ष नेतृत्व के करीबियों में से एक नेता जी के आगे सभी बौने दिखाई देने लगे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार बूथ स्तर पर कांग्रेसियों को ताकतवर बनाने के लिए कई नेताओं, पार्षदों एवं कार्यकर्ताओं को फोन पर संदेश भी मिल चुके हैं कि वह तगड़े होकर चुनाव लड़ें और खर्च आदि की फिक्र न करें, वे बैठे हैं।

एक तरफ भाजपा के भीतर की गुटबाजी तो दूसरी तरफ शकुनी जैसी शातिराना चाल से भाजपा को खुद भाजपा ही बचा सकती है तथा कई कांग्रेसियों को भी इस बात से खासा एतराज है कि पार्टी छोड़ने के बाद भी कांग्रेस में घमासान करवाने से उक्त नेता जी बाज नहीं आ रहे हैं। नेता जी की भी खूब है अगर मोदी जीते तो जीत में उनका भी बहुमूल्य योगदान है तो अगर कांग्रेस जीती तो भी उनकी पांचों अंगुलियां घी में, क्योंकि कह सकेंगे कि विपक्ष में रहते हुए भी देखो जो अपनी मां पार्टी के उम्मीदवार की मदद की। यानि की तन तो उधर है और मन वहीं अटका है। ये तो हालात ही बताएंगे कि इस प्रकार की रणनीति आने वाले समय में कौन सा नया चांद चढ़ाएगी, लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार इस कद्र गर्म है कि लोग चटकारे लेने से बाज नहीं आ रहे। क्या कौन सी सीट की बात है। पंजाब का हूं तो बात भी तो पंजाब की ही करुंगा। वैसे आप सब समझदार हो, इतना तो मुझे पता है। हम तो इतना ही कह सकते हैं कि खुल गया ढक्कन उड़ गई भाप। मुझे दें इजाजत। जय राम जी की।

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