बेहाल भाजपाः जाना है तो जाएं, पर मैं न मानूं, पार्टी बेहाल, विपक्षी मालामाल, अभी और जाने वाले…..?

गुटबाजी का शिकार भाजपा में एक गुट की सरदारी व अन्यों की अनदेखी के चर्चे अकसर सुर्खियां बटौरते रहते हैं तथा इसके चलते कई भाजपा नेता, जोकि समाज में अच्छा खासा आधार रखते हैं, पार्टी को छोड़ अन्य पार्टियों की शोभा बन गए तथा लोकसभा चुनाव के समय में ऐसा होने से पार्टी को बड़ी क्षति के रुप में खुद पार्टी के आला नेता कहीं न कहीं दबी जुबान में स्वीकार भी करते हैं। लेकिन, न जाने पार्टी की ऐसी क्या मजबूरी है कि गुटबाजी पर अंकुश लगाने की बजाए न जाने किस दवाब के तहत आंखें खोलकर सारा खेल देखने पर भी कार्यवाही की कोशिश नहीं की जा रही। राजनीतिक माहिरों एवं पार्टी सूत्रों की माने तो उनका कहना है कि एक नेता के घमण्ड और जिद्द की पराकाष्टा ने सारी भाजपा को हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया है तथा अपने चंद खासमखासों से घिरे रहने वाले नेता जी का हाल तो यह है कि खासमखासों की मेहरबानी से बार-बार हार का मुंह देखने के बाद भी उनसे उनका मोह भंग नहीं हो रहा और पार्टी के अन्य सिपाही दिख नहीं रहे।

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यह भी गलत नहीं कि उन्होंने भाजपा के लिए जो किया वह कोई नहीं कर सकता, परन्तु हार से सबक लेकर सभी को साथ लेकर चलने की बजाए कुछेक के साथ मोह उनके लिए कोई अच्छे भविष्य के संकेत नहीं दे रहा। इतना ही नहीं अब तो ऐसा लगने लगा है कि माने, जैसे नेता जी खुद को पार्टी से भी ऊपर मानने लगे हैं तथा हो वही रहा है जो वह चाह रहे हैं। क्योंकि, पिछले सालों में पार्टी कार्यालय होने के बावजूद कोठी से सारी सियासत का गर्माना, भाजपा के बढ़ते ग्राफ की दिशा बदलने के लिए काफी रहा है। लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला है कि उनकी रणनीति से लगता ही नहीं कि वह भाजपा उम्मीदवार जोकि लोकसभा चुनाव के लिए खड़ा है, के लिए चुनाव प्रचार कर रहे हैं तथा उनकी रणनीति से प्रतीत हो रहा है कि जनाब 2024 के बहाने 2027 को साधने के प्रयास में हैं। लेकिन, वह भूल रहे हैं कि जिस प्रकार एक-एक करके पार्टी नेता भाजपा को अलविदा कहकर अन्य पार्टियों में जा रहे हैं, उससे पार्टी की मजबूती नहीं बल्कि मजबूरी बढ़ती नज़र आ रही है, जो पार्टी को अंदर ही अंदर खोखला और कमजोर कर रही है। परन्तु नेता जी को कुशल राजनीतिज्ञ होने के घमण्ड में अपने चंद खासमखासों के अलावा कुछ और दिखाई ही नहीं देता। यहां तक कि ऐसा माहौल बना दिया गया है कि जिला कार्यकारिणी के भी हाथ खड़े नज़र आ रहे हैं तथा इतना करने के बावजूद 2009 को याद करने वाले नेता जी के चेहरे से मौजूदा समय में उनका हाल साफ पढ़ा जा सकता है। लेकिन वह भी मजबूरीवश उनके अनुसार ही काम करने को विवश हर बात को चुपचाप सहते हुए समय निकालने में लगे हुए हैं। जिसकी चर्चाओं से भी राजनीतिक गलियारों का बाजार पूरी तरह से गर्माया हुआ है, इतना ही नहीं नेता जी के कुछ खासमखास भी अनदेखी के चलते मनमसोस कर बैठे हुए हैं। , जिनका दर्द भी सुनने लायक है।

हाल ही में कुछ समय पहले भाजपा को अलविदा कहकर गईं भाजपा नेत्री नीति तलवाड़ के साथ मातृ शक्ति की एक बड़ी संख्या थी। जिसने भाजपा के लिए काम करना था, परन्तु मैं न मानूं की राजनीति करने में माहिर एक नेता जी के पैंतरों से परेशान न केवल भाजपा नेत्री ने पार्टी छोड़ी बल्कि उनके पति संजीव तलवाड़ ने भी पार्टी से नाता तोड़ते हुए किनारा कर लिया था व अकाली दल में शामिल हो गए थे। संजीव तलवाड़ ने कई चुनावों में अहम भूमिका निभाकर भाजपा प्रत्याशी की जीत में भूमिका अदा की थी और संघ के कार्यक्रमों को भी बढ़चढ़कर पूर्ण करवाने में अगे रहे। पिछले कल अकाली दल की हुई रैली में मातृ शक्ति की एक बड़ी संख्या ने नीति तलवाड़ की अगुवाई में रैली में भाग लिया। भले ही देखने में यह संख्या 250-300 के करीब ही थी, मगर यह सिर्फ संख्या नहीं बल्कि 300 परिवार थे, जिनके साथ कम से कम 10-15 परिवार हरेक परिवार के साथ जुड़े हुए हैं। जिससे इनकी संख्या अगर एक परिवार 5 सदस्यों का भी गिना जाए तो 10-15 परिवार के हिसाब से गुणा किया जाए तो करीब हजारों की संख्या में वोटर बनते हैं, जो सीधे तौर पर भाजपा से कट गए, क्योंकि अब वह अकाली दल के खेमे की शान बढ़ाने के लिए तैयार बर तैयार बैठे हैं और उसके लिए काम कर रहे हैं। इसके अलावा शहरी क्षेत्र के साथ-साथ कस्बों एवं गांवों में संजीव तलवाड़ भी एक अच्छा जनाधार रखते हैं, क्योंकि उन्होंने लंबे समय तक पूर्व सांसद अविनाश राय खन्ना के साथ काम किया और इसके बाद उन्होंने पूर्व केन्द्रीय राज्य मंत्री विजय सांपला के साथ काम करने के साथ-साथ इस दौर में अपनी एक अलग पहचान बनाने में भी कामयाबी हासिल की। जिसके चलते वह भी हर क्षेत्र में अपने 20-25 घर लेकर चलते हैं तथा उनके दल बदलने से इन परिवारों का समूह भी उनके साथ अकाली दल का हो गया।

इतना ही नहीं हाल ही में पूर्व जिला अध्यक्ष डा. रमन घई का पार्टी छोड़कर जाना किसी बड़े आधात से कम नहीं है। क्योंकि, पार्टी के भीतर वह उन चेहरों में गिने जाते थे, जो मेहनती, सभी को साथ लेकर चलने वाले और राजनीतिक एवं सामाजिक तौर पर एक अच्छा खासा जनाधार रखने वालों में हैं। उन्होंने भी एक नेता जी की मनमर्जी और पार्टी सिद्धांतों को निजी स्वार्थ के लिए छिक्के पर टांगने वाले कुछेक पदाधिकारियों को लेकर रोष व्यक्त किया तथा जब किसी ने सुनना बेहतर नहीं समझा तो उन्होंने भी अपने समस्त साथियों सहित भाजपा से किनारा कर लिया और आम आदमी पार्टी का समर्थन कर दिया। उनके ऐसा करने से एक झटके में भाजपा को कम से कम हर क्षेत्र से 10 से 15 हजार वोट का घाटा सहन करना पड़ सकता है। क्योंकि, डा. रमन घई की बार-बार की जा रही अनदेखी से दुखी कार्यकर्ता एवं पदाधिकारी काफी देर से मन मार कर बैठे थे और उनके द्वारा कई बार संकेत दिए जा चुके थे कि अगर पार्टी कोई ठोस कदम नहीं उठा सकती तो वह अलविदा कह सकते हैं। उनकी चेतावनी को शायद आला कमान ने भी गंभीरता से लेना जरुरी नहीं समझा। और तो और भाजपा के टकसाली एवं व्यापार मंडल के अध्यक्ष रह चुके वरिष्ठ नेता ज्ञान बांसल का जाना व उनका आप में शामिल होना भी बड़ी क्षति के रुप में देखा जा रहा है।

क्योंकि, लोकसभा चुनाव को मात्र चंद दिन ही बचे हैं तथा ऐसे में बड़े नेताओं का पार्टी छोड़ना जनता में विपरीत संदेश ही दे रहा है तथा इसका घाटा पार्टी को भुगतना पड़ेगा की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। अब भी देखना यह होगा कि पार्टी हाईकमांड जीत के लिए क्या रणनीति अपनाती है और भविष्य में गुटबाजी पर अंकुश लगाने तथा सभी को साथ लेकर चलने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं। फिलहाल तो बेहाल भाजपा का बेड़ा मोदी जी के नाम के सहारे पार हो, ऐसा तो भगवान की कृपा से ही संभव हो सकता है, जो शायद अभी तक तो दिखाई नहीं दे रहा। क्योंकि, राजनीतिक माहिरों का मानना है कि जब तक सभी को समान सम्मान एवं पदभार व जिम्मेदारियां नहीं सौंपी जाती तब तक एकजुटता एवं अनुशासन का पाठ पढ़ने व पढ़ाने वाली भाजपा के लिए रास्ता कांटों भरा ही बना रहेगा व इससे आला कमांड को सबक लेकर ही कदम उठाने चाहिएं। क्योंकि, कभी यह सीट भाजपा का गढ़ कही जाती थी। जिसकी वर्तमान में स्थिति डामाडोल बनी हुई है। और तो और किसानों, बेरोजगारों, कांग्रेस, आप और अकाली दल जैसे बड़े दलों का विरोध झेल रही भाजपा की पंजाब में हालात अनुकूल नहीं कही जा सकती। मुझे दें इजाजत। जय राम जी की।

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