दीपावली के दीपक अपने आंतरिक तमस को दूर करने का देते हैं संकेत: स्वामी दिनकरानन्द

होशियारपुर(द स्टैलर न्यूज़),रिपोर्ट: जतिंदर प्रिंस। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा गौतम नगर होशियारपुर आश्रम में धार्मिक क्रार्यकम का आयोजन किया गया जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्या स्वामी दिनकरानन्द जी ने बताया कि इस अक्तूबर माह के आकाश में पर्व-महोत्सवों का रंगबिरंगा इंद्रधनुष छाया रहेगा। महीने का प्रारंभ नवरात्रों से होगा। फिर आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जायेगा ‘दशहरा’। इसके उपरांत भगवान वाल्मीकि के प्रकटोत्सव के रु प में आएगी ‘वाल्मीकि जयंती’।

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तीन दिवसों के गुजरते ही फिर कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ‘करवा चौथ’ का उत्सव होगा। 27 अक्तूबर, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को भारतवर्ष के सबसे महिमावान पर्व ‘दीपावली’ की प्रकाशमई धूम छाएगी। उससे अगले दिन ‘गोवर्धन पूजा’ का पौराणिक पर्व अपनी छटा बिखेरेगा। फिर माह के अंत में मनाया जायेगा। भाई-बहन के पवित्र संबंध का उत्सव भाई दूज’। हम कह सकते हैं, इस पूरे माह भारतीय संस्कृति और संस्कारो का परिमल हवाओं को महकाएगा। भारतीय जनमन की चेतना, उत्तर से दक्षिण पूर्व से पश्चिम तक उछाल भरी उमंग में नहाएगी। परन्तु यहाँ पाठकगण स्वयं से प्रश्न करें, क्या हमारे ये सांस्कृतिक पर्व केवल व्रत-उपवासों, कर्मकांडों, सतरंगी और मनोरंजक विधि-विधानों की प्रदर्शनियां भर हैं? ऐसा नहीं है।

इन सभी धूम-झूम वाले परम्परागत पहलुओं के पीछे हर त्यौहार में एक गूढ़ आध्यात्मिक पक्ष भी छिपा है। इस पक्ष को हम पर्व की ‘आत्मा’ भी कह सकते हैं। जैसे कि ज्योति पर्व-दीपावली की बात करें, तो इस पर्व पर जगमगाती दीपमालिकाएँ एक ही संदेश देती हैं- अपने आंतरिक तमस को दूर करो। टिमटिमाते दीये हमसे कहते हैं कि अंतर्मन में, चाहे कैसी भी घोर अमावस्या क्यों न हो, प्रभुज्ञान (ब्रह्यज्ञान) की ज्योति प्रज्वलित कर लो और हमारे समान प्रकाशित हो उठो। अपनी सारी कुत्सित और तामसिक प्रवृक्तियों को इस अलौकिक प्रकाश में विलीन कर डालो।

नवरात्रों का भी उदाहरण लीजिए।

इन 9 दिनों में तीन देवियों के 9 रूपों की उपासना करने की परम्परा है, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है। ये मुख्य तीन देवियाँ हैं- माँ दुर्गा, माँ लक्ष्मी, माँ शारदा। इनकी परम्परागत उपासना के पीछे भी एक गूढ़ संदेश छिपा है। देवी दुर्गा शक्ति की प्रतीक हैं। लक्ष्मी धन-ऐश्वर्य-वैभव की द्योतक हैं, तो माँ शारदा सर्वोत्तम विद्या अर्थात् ब्रह्यज्ञान का प्रतिनिधित्व करती हैं। अत: इन तीन देवियों का पूजन-विधान दरअसल शक्ति-वैभव-ज्ञान के समन्वय की महत्ता पर प्रकाश डालता है। यह संकेत करता है कि जीवन को शांत एवं पूर्णत: सफ ल बनाने के लिए इन तीनों की समरसता जरु री है।

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