ब्रह्मज्ञान प्राप्ति से ही जोड़ा जा सकता है परमात्मा से नाता: माता सुदीक्षा जी

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़),रिपोर्ट: जतिंदर प्रिंस। सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने 72वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के समापन सत्र में स्वयं के अहंकार को त्याग कर अपने अंत:करण को निर्मल बनाने का आह्वान किया। इस तीन दिवसीय समागम में संत निरंकारी मिशन की शिक्षाओं के मूर्त रुप को उजागर करता हुआ कल देर सायं संपन्न हो गया। इस समागम में देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु भक्त एवं करीब 65 दूर देशों के सैंकड़ो प्रतिनिधी तथा अन्य प्रभु-प्रेमी सज्जन सम्मिलित हुए थे।

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श्रद्धालुओं के उत्साह, उल्हास एवं भक्तिभाव से सारा वातावरण पुलकित हो उठा था। सद्गुरु माता जी ने कहा कि ब्रह्मज्ञान के द्वारा परम पिता परमात्मा को जाना जा सकता है। परमात्मा से नाता जोडऩे के बाद हम दैवी गुणों से युक्त होते चले जाते हैं और आनंदमय अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं। वास्तव में जो विनम्रता, दया, सहनशीलता जैसे सद्गुणों से युक्त है वही आध्यात्मिकता से जागरुक माना जा सकता है। जैसे एक बालक अपनी माँ पर पूर्ण विश्वास करता है कि वह उसकी भूख को अवश्य शांत करेगी। वैसे ही भक्त को यह पूर्ण विश्वास होना चाहिए कि निरंकार उसकी हर स्थिति में रक्षा करेगा।

72वां वार्षिक निरंकारी सन्त समागम श्रद्धापूर्वक संपन्न

मिशन के 90 वर्षों के स्वर्णिम इतिहास को याद करते हुए सद्गुरु माता जी ने फरमाया कि जिस प्रकार बाबा बूटा सिंह जी, बाबा अवतार सिंह जी, जगत माता बुद्धवन्ती जी, बाबा गुरबचन सिंह जी एवं राजमाता कुलवंत कौर जी ने मानवता के उत्थान के लिए अपना महान योगदान दिया उसी प्रकार बाबा हरदेव सिंह जी व सद्गुरु माता सविन्दर हरदेव जी ने भी अपने समय में अपना पूरा जीवन समर्पित करते हुए मिशन के सन्देश को जन-जन तक पहुँचाया। आपने कहा कि बाबा हरदेव सिंह जी प्रेम, करुणा एवं सहनशीलता की जीती जागति मूर्ति थे। बाबा जी के व्यक्तित्व में हर स्थिति में एक रस रहने की अद्भूत क्षमता थी। अगर हम बाबा जी के सहनशीलता के दिव्य गुणों के कुछ अंश भी अपना लेते हैं तो हमारा जीवन संवर सकता है।

सद्गुरु माता सविन्दर जी का जिक्र करते हुए आपने कहा कि उन्होंने 36 साल बाबा जी के कदम से कदम मिलाते हुए मिशन के कार्यों में अपने आपको समर्पित रखा और उसके बाद करीब दो वर्ष मिशन की बागड़ोर सम्भाली। माता सविन्दर जी ने परिवारजनों को हमेशा ही पारिवारिक रिश्ते को दुय्यम स्थान देते हुए सद्गुरु के रिश्ते को प्राथमिकता देने की सीख दी। उनके अंदर ऐसा विलक्षण सामथ्र्य था कि अपने गिरते स्वास्थ्य को उन्होंने कभी भी मिशन के कार्यों में बाधा बनने नहीं दिया। आपने कहा कि मिशन के प्रति हमारा वास्तविक योगदान यही होगा कि हम अपने अहम् भाव को तज कर, दूसरों को आंकने की बजाए, सभी में निरंकार का रुप देखें; तथी हम सभी के साथ प्रेम तथा समदृष्टि का भाव रख पायेंगे।

सद्गुरु माता जी ने समागम स्थल को सुंदर रुप प्रदान करने के लिए साध संगत, निरंकारी सेवादल, संत निरंकारी चैरिटेबल फाउंडेंशन के सदस्यों तथा सभी सरकारी विभागों का धन्यवाद किया जिन्होंने पिछले कई महिनों से समागम स्थल पर अनथक सेवाएं निभाई और इसे एक आकर्षक व सुन्दर रुप प्रदान किया।

एक बहुभाषी कवि सम्मेलन समापन सत्र का मुख्य आकर्षण बना जिसमें मिशन के अग्रणी कवियों ने विभिन्न भाषाओं में मिशन के संदेश को उजागर किया। इस कवि सम्मेलन का विषय था – ‘‘मिशन प्यार का युगों-युगों से, ब्रह्म के साथ मिलाता आया।

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