आखिर हर बार धूमल ही क्यों, नाम उछाल कर खींचने वाले कौन ??

हमीरपुर (द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: रजनीश शर्मा। प्रदेश में पहली बार ग़ैर कांग्रेस सरकार को पाँच साल चलाने और दूसरी बार पूर्ण बहुमत से पूर्णकाल सत्ता चलाने वाले प्रेम कुमार धूमल एक बार बार फिर चर्चा में हैं। जब 2017 में हिमाचल में भाजपा की डगर डगमग़ा रही थी तो विधानसभा चुनावों के आखिरी दिनों में धूमल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुनाव लड़े गये। धूमल के नेतृत्व में चुनाव लड़ भाजपा 44 सीटें लेकर सत्तारूढ़ हुई लेकिन धूमल स्वयं चुनाव हार गए। धूमल की हार पर कई किंतु परंतु हुए और निष्कर्ष यही निकला कि भाजपा अंदर की काली भेड़ों ने मिलकर धूमल को हरवाने में अहम भूमिका निभाई।

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यह भी सच है कि राजनीति कभी स्थिर नहीं रहती। धूमल के प्रति भाजपा कार्यकर्ताओं की निष्ठा कम होने की अपेक्षा पहले से ज़्यादा मज़बूत होती चली गई। भाजपा को सत्तासीन कर धूमल स्वयं सत्ता से बाहर हो गए। धूमल बेशक चुनाव हार गए लेकिन उन्होंने पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा कभी नहीं छोड़ी। धूमल नई ऊर्जा से फिर से फ़ील्ड में उतरे और रूठे कार्यकर्ताओं को मनाया।

जिथि अड़ा फड़ा उथि धूमल खड़ा

वकत बदलता गया और समीरपुर में धीरे धीरे रौनक़ बढऩे लगी। इसी बीच मोदी मंत्रीमंडल में अनुराग ठाकुर की राज्यमंत्री के रूप में एंट्री से धूमल और मज़बूत हो गए।धूमल के साथ ही अनुराग में भी हिमाचल का भविष्य देखने वालों की क़तार लंबी होने लगी।
धूमल को मिलने सुजानपुर , हमीरपुर से ही नहीं प्रदेश भर से कार्यकर्ता समीरपुर पहुँचना शुरू हो गए। हिमाचल भाजपा में जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री के रूप में तो शांता एवं धूमल क़द्दावर नेताओं के रूप में आज भी लोकप्रिय हैं। उधर भाजपा नेता सत्ती व बिंदल जब भी किसी राजनीतिक संकट में फंसे, हमेशा धूमल को याद करते नजऱ आए। कांगड़ा में ओबीसी नेता धवाला हो या गद्दी नेता किशन कपूर , ये भी अब धूमल को ही अपना गुरु मानते हैं। सिरमौर में भाजपा को अंकुरित कर बड़ा पेड़ बनाने वाले धूमल को आज भी याद किया जाता है।
प्रदेश में धर्मशाला उपचुनाव हो या फिर किसी राज्य में राज्यपाल की नियुक्ति धूमल का नाम सबसे आगे करने वाला एक गुट चर्चाओं को जन्म देता रहा है।यही नहीं , मोदी मंत्रीमंडल के विस्तार के वक़्त भी धूमल का नाम केंद्र में मंत्री बनने के लिए उछाला गया। हाल ही में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की नियुक्ति के वक़्त पार्टी हाई कमान ने जब यह कहा कि प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष ऐसा हो जो 2022 में हिमाचल में भाजपा को रिपीट करवा सके। उस वक़्त भी प्रेम कुमार धूमल का नाम सबसे पहले लिया गया।
अब जैसे ही हिमाचल में राज्यसभा की खाली सीट पर चुनाव की बात सामने आई तो प्रेम कुमार धूमल फिर चर्चा में आ गए। धूमल को राज्यसभा भेज प्रदेश की राजनीति से दूर करने वाला भाजपा के अंदर ही एक गुट सक्रिय हो गया है। आखऱि हर बार धूमल ही क्यों ? भाजपा के अंदर धूमल के प्रति प्रबल निष्ठा रखने वाले कार्यकर्ताओं का मानना है कि हर बार धूमल का नाम उछालकर हाथ पीछे खींच लेने से इतना तो तय है कि धूमल का नाम ही काफ़ी है। इसीलिए नियुक्ति कोई भी होनी हो धूमल के नाम की चर्चा जुबान पर आ जाती है।

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