कुल्लू से भगवान रघुनाथ की ओर से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को दिया जाएगा शगुन

हमीरपुर (द स्टैलर न्यूज़)। कुल्लू के रघुनाथ का आकार ऐसा जो मु_ी में समा जाए , लेकिन आस्था इतनी गहरी कि इनकी परंपरा यहां बदस्तूर जारी है। बेशक श्री राम मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन अयोध्या में 5 अगस्त को होगा लेकिन कुल्लू में करीब पांच सौ देवी-देवताओं के अधिष्ठाता भगवान रघुनाथ के मंदिर में विशेष उत्साह देखने को मिल रहा है। कुल्लू से भगवान रघुनाथ की ओर से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को शगुन दिया जाएगा । यहाँ विराजित माँ सीता, भगवान राम व हनुमान की मूर्तियों का अयोध्या से गहरा नाता रहा है। राम जी की जन्मभूमि अयोध्या और देवभूमि कुल्लू का 370 साल पुराना अटूट रिश्ता है।

Advertisements

महेश्वर सिंह छड़ीबरदार , भगवान रघुनाथ मंदिर ने बताया कि मंदिर निर्माण को लेकर भगवान रघुनाथ की वास स्थली कुल्लू के लोगों में भारी उत्साह है। मंदिर में 5 अगस्त को विशेषरूप से दीपमाला की जाएगी। इसी दिन दोपहरबाद रघुनाथ मंदिर में सुंदरकांड का पाठ होगा। महेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि भगवान रघुनाथ की मूर्ति सन 1650 ई. को अयोध्या से लाई गई थी। रघुनाथपुर में रघुनाथ की स्थापना 1660 में की गई। दस साल तक रघुनाथ को मकराहड़ और धार्मिक स्थली मणिकर्ण में रखा गया। इसी के चलते मणिकर्ण को राम की नगरी भी कहा जाता है। यहां राम मंदिर का निर्माण किया गया है। सन 1650 ई. में तत्कालीन कुल्लू के राजा जगत सिंह के आदेश पर भगवान रघुनाथ, सीता और हनुमान की मूर्तियां अयोध्या से दामोदर दास नामक व्यक्ति लाया था। राजा जगत सिंह ने अपनी राजधानी को नग्गर से स्थानांतरित कर सुल्तानपुर में बसा लिया था।

एक दिन राजा को दरबारी ने सूचना दी कि मड़ोली (टिप्परी) के ब्राह्मण दुर्गादत्त के पास सुच्चे मोती हैं। जब राजा ने मोती मांगे तो राजा के भय से दुर्गादत्त ने खुद अग्नि में जलाकर समाप्त कर दिया, लेकिन उसके पास मोती नहीं थे। इससे राजा को रोग लग गया। ब्रह्म हत्या के निवारण को राजा जगत सिंह के राजगुरु तारानाथ ने सिद्धगुरु कृष्णदास पथहारी से मिलने को कहा। पथहारी बाबा ने सुझाव दिया कि अगर अयोध्या से त्रेतानाथ मंदिर में अश्वमेध यज्ञ के समय की निर्मित राम-सीता की मूर्तियों को कुल्लू में स्थापित किया जाए तो राजा रोग मुक्त हो सकता है। पथहारी बाबा ने यह काम अपने शिष्य दामोदर दास को दिया। उन्हें अयोध्या से राम-सीता की मूर्तियां लाने को कहा। दामोदर दास अयोध्या पहुंचा और त्रेतानाथ मंदिर में एक वर्ष तक पुजारियों की सेवा करता रहा। एक दिन राम-सीता की मूर्ति को उठाकर हरिद्वार होकर मकडाहड़ और मणिकर्ण पहुंचा। मूर्ति लाने के बाद राजा ने रघुनाथ के चरण धोकर पानी पिया। इससे राजा का रोग खत्म हो गया। जिला देवी-देवता कारदार संघ के पूर्व अध्यक्ष दोतराम ठाकुर कहते हैं कि इसके बाद राजा ने अपना सारा राजपाठ भगवान रघुनाथ को सौंप दिया और भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार बन गए। अब छड़ीबरदार का दायित्व पूर्व सांसद महेश्वर सिंह संभाल रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here