चंडीगढ़ (द स्टैलर न्यूज़)। चौथे मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल 2020 के दूसरे दिन, 61वीं कैवलरी को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से क्लेरियन कॉल: जोश और जज़्बा सैशन के दौरान प्रदर्शित किया गया।इस कार्यक्रम के वर्चुअल शो के दौरान चौथे एमएलएफ 2020 की आयोजन समिति के सदस्यों, मेजर बिक्रमजीत कंवरपाल और आराधिका ने बताया कि इस सैशन का मुख्य उद्देश्य 61वीं कैवेलरी की गौरवशाली गाथा को उजागर करना है।
इस दौरान दिखाई गई डॉक्यूमेंट्री ने रेजिमेंट के इतिहास को प्रदर्शित किया और दिखाया कि आजादी से पहले, इसने दुनिया भर में वीरता का प्रदर्शन करके एक बड़ा नाम कमाया था और प्रथम विश्व युद्ध में बैटल ऑनर हैफा (इजऱाइल) जीता।1947 में आजादी के समय, सही मायनों में सेना का पुनर्गठन शुरू हुआ। 1951 में नियमित रूप से भारतीय सेना में राज्य बलों के एकीकरण के बाद, शेष हॉस्र्ड कैवेलरी यूनिटों को पुनर्गठित करके इनको ग्वालियर लांसर्स, जोधपुर / कछवा हॉर्स, द मैसूर लांसर्स और बी स्क्वाड्रन, 2 पटियाला लांसर्स में पुनर्गठित किया गया। 1 अक्टूबर 1953 को ग्वालियर में ‘‘न्यू हॉर्सड कैवलरी रेजिमेंट’’ की स्थापना की गई, जिसमें जम्मू-कश्मीर राज्य सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल फुलेल सिंह इसके पहले कमांडेंट के रूप में शामिल हुए।
जनवरी 1954 में इस नई रेजिमेंट को ‘‘61 वीं कैवलरी’’ का नाम दिया गया था। 1 और 2 ग्वालियर लांसर्स को मिलाकर ग्वालियर लांसर्स का गठन किया गया और इसी तरह जोधपुर / कछवा हॉर्स का गठन दुंगल लांसर्स, मंगल लांसर्स, जोधपुर लांसर्स, कछवा हॉर्स मेवाड़ लांसर्स, राजेंद्र लांसर्स और सरदार रिसालिया, मैसूर लांसर्स, बी स्क्वाड्रन, 2 पटियाला लांसर्स और सौराष्ट्र हॉस्र्ड कैवेलरी स्क्वाड्रन को मिलाकर किया गया।1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान 61वें कैवलरी ने गंगानगर सेक्टर में अपनी सेवाएं दीं और 1971 के युद्ध के समय इसने राष्ट्रपति भवन की रक्षा की। गौरतलब है कि रेजिमेंट ने 1989 में ऑपरेशन पवन, 1990 में ऑपरेशन रक्षक, 1999 में ऑपरेशन विजय और 2001-2002 में ऑपरेशन पराक्रम के दौरान राष्ट्र के लिए असाधारण सेवाएं प्रदान कीं।इस सैशन के दौरान 1982 के एशियाई खेलों में घुड़सवारी स्पर्धाओं में 2 स्वर्ण पदक जीतने वाले शहज़ादा नामक घोड़े का विशेष उल्लेख किया गया, जिसकी सवारी दफादार रघुबीर सिंह ने की थी। दफादार रघुबीर सिंह को बाद में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया गया और वह यह सम्मान पाने वाले रेजिमेंट के एकमात्र व्यक्ति थे।