चंडीगढ़(द स्टैलर न्यूज़)। धान के सीजन के दौरान पराली जलाने को रोकने के लिए एक बड़े कदम के अंतर्गत पंजाब ने वित्तीय रियायतें वसूलने के लिए उद्योगों की कुछ श्रेणियों को पराली का निपटारा करने के लिए बॉयलर लगाने की अनुमति देने का फ़ैसला किया है। इसके अंतर्गत जिन उद्योगों को यह लाभ मिल सकता है, उनमें चीनी मिलें, पल्प और पेपर मिलें और 25 टी.पी.एच. से अधिक भाप पैदा करने के सामर्थ्य वाले बॉयलर वाले उद्योग शामिल हैं। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह की अध्यक्षता अधीन हुई मंत्रीमंडल की मीटिंग में आज यह फ़ैसला लिया गया कि पुराने बॉयलरों को बदलने या नये बॉयलरों की स्थापना से इसके विस्तार का प्रस्ताव रखने वाली डिस्टिलरियों /ब्रुअरीज़ की नयी और मौजूदा इकाईयों को धान की पराली को ईंधन के तौर पर लाज़िमी तौर पर इस्तेमाल करना पड़ेगा। मंत्रीमंडल ने बॉयलर में धान की पराली को ईंधन के तौर पर बरतने के लिए ’पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर पहले 50 मौजूदा उद्योगों को 25 करोड़ रुपए की वित्तीय रियायतें देने का भी फ़ैसला किया है।
मंत्रीमंडल ने धान की पराली के भंडारण के लिए पंचायती ज़मीन की उपलब्धता के लिहाज़ से उद्योगों को ग़ैर-वित्तीय रियायतों के लिए 33 साल तक के लीज़ समझौते के साथ लीज़ में 6 प्रतिशत प्रति साल वृद्धि दर की मंजूरी भी दी है। इसके इलावा बॉयलर उन क्षेत्रों में पहल के आधार पर उपलब्ध करवाए जाएंगे जहाँ धान की पराली को बॉयलर में ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इस कदम से खरीफ फसलों की कटाई के दौरान धान की पराली जलाने की समस्या से निपटने में मदद मिलेगी जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ेगी और सूक्ष्म जीवों (मित्र कीड़ों) को बचाने के लिए भी लाभकारी होगा। फसलों के अवशेष के प्रबंधन की चुनौती के मद्देनज़र यह फ़ैसला काफ़ी महत्वपूर्ण है। रबी सीजन के दौरान गेहूँ की कटाई के बाद जहाँ भूसे को पशुओं के लिए चारें के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, वहीं खरीफ सीजन के दौरान धान की पराली को खेतों में आग लगा दी जाती है जिससे किसान अगली फ़सल के लिए तेज़ी से अपने खेत तैयार कर सकें। अक्तूबर-नवंबर महीने के दौरान खेतों में पराली जलाने की घटनाओं के कारण ग्रामीण क्षेत्र और इसके आसपास हवा प्रदूषण की समस्या व्यापक रूप में फैली हुई है जिस कारण स्वास्थ्य पर ज्यादा प्रभाव पड़ रहे हैं। मौसमी स्थितियों के कारण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हवा की गुणवत्ता भी ख़राब हो जाती है, जिसमें घरेलू, वाहन, औद्योगिक और म्यूंसिपल ठोस अवशेष डम्प को जलाने जैसे विभिन्न स्थानीय स्रोतों का प्रदूषण भी शामिल है। हालाँकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हवा प्रदूषण के लिए पड़ोसी राज्यों में खेतों में पराली जलाने की घटनाएँ भी ज़िम्मेदार हैं। पंजाब में 31.49 लाख हेक्टेयर क्षेत्र (2020) में धान की खेती की जाती है, जिसके नतीजे के तौर पर लगभग 20 मिलियन टन धान की पराली का उत्पादन होता है।
पराली जलाने से निपटने के लिए पंजाब सरकार की तरफ से उठाये गए उपायों की कड़ी में यह अलग प्रयास है जिसमें पराली के उचित प्रबंधन के लिए पंचायतें, सहकारी सभाएं और व्यक्तिगत किसानों को फ़सलीय अवशेष प्रबंधन (सी.आर.एम.) मशीनों की व्यवस्था, पराली को बायो-मास आधारित प्लांटों में ऊर्जा के स्रोत के तौर पर बरतने और किसान भाईचारे में जागरूकता मुहिम के साथ-साथ पराली जलाने की निगरानी करना शामिल है। यह महसूस किया गया है कि पराली के उचित प्रबंधन के लिए उद्योगों में धान की पराली के ईंधन के तौर पर प्रयोग को और उत्साहित करने की ज़रूरत है। राज्य के कुछ उद्योग धान की पराली को अपने औद्योगिक कामों के लिए बॉयलर में सफलतापूर्वक बरतने के योग्य हुए हैं। उन्होंने या तो भट्टियों में महत्वपूर्ण बदलाव किये हैं या धान की पराली के निपटारे के लिए नये बॉयलर स्थापित किये हैं। इन यूनिटों ने सप्लाई चेन विधि विकसित करके पराली के उचित प्रबंधन के लिए ठोस कदम उठाए हैं जिसमें सप्लायरज़ को शामिल करते हुये सीधे किसानों से धान की पराली इकट्ठा करना और साल भर इसके प्रयोग के लिए पराली की गट्ठों के लिए भंडारण की जगह मुहैया करवाना है।