“भा” में हाल बेहाल: …जब बिछड़े हुए एक तो उड़ी कईयों की नींद, अब “भंडी ” पर हुए उतारु

होशियारपुर भाजपा का इतिहास भी बड़ा अजीब रहा है। कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले इस किले को एक नेता जी ने अभेद बाण से भेद डाला था और लंबे समय तक इस पर कब्जा भी जमाए रखा। लेकिन पार्टी के भीतर आपसी गुटबाजी ने किले में सेंध लगाते हुए कांग्रेस को पुन: इस पर कब्जा करने का मौका प्रदान कर डाला। इसके बाद कई बार पार्टी द्वारा हार का मंथन तो किया गया, लेकिन सबक कोई नहीं सीखा गया। जिसके चलते पार्टी में गुटबाजी इस कद्र बढ़ गई कि एक गुट के कार्यकर्ता दूसरे गुट को फूटी आंख न सुहाते। हर गुट एक दूसरे के गुट से जुड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं की अनदेखी करता रहा। इतना ही नहीं 2014 में एमपी चुनाव के बाद यहां भाजपा तीन गुटों में बंटी नजऱ आई। जिसके चलते कार्यकर्ता और भी असमंजस में रहे। लेकिन अब जबकि विधानसभा चुनाव को कुछ दिन ही शेष बचे हैं तो ऐसे में भी गुटबाजी का दानव भाजपा के समक्ष बड़ी चुनौती की तरह ही खड़ा है। जिससे इस बार एक बार फिर से किले में सेंध लगाने वाले सक्रिय होते नजऱ आने लगे हैं।

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एक ताजा उदाहरण में भले ही पार्टी आलाकमान के डंडे के डर से दो गुटों में नजदीकियां बढ़ी हों, लेकिन भारताघात करने बाले पहले से अधिक सक्रिय दिख रहे हैं। पार्टी के भीतर ही चर्चा है कि भले ही गुट एक मंच पर नजऱ आ रहे हैं, लेकिन अंदर की बात तो सभी को पता ही है। एक अन्य उदाहरण में नेता जी के खासमखास माने जाने वाले एक साथी, जोकि पिछले चुनाव में हार के बाद उनसे दूर हो गए थे तथा दोनों में काफी खटास भी बढ़ गई थी अब एक बार फिर से एक हो गए। उनको एक करने में कई नेताओं एवं कार्यकर्ताओं ने अहम भूमिका निभाई। अब जबकि वे एक हो गएं हैं तो कईयों को चिंता सताने लगी है कि अगर इस बार जीत हुई तो उसके बाद उनका क्या होगा। इसलिए कई कार्यकर्ता जोकि उक्त नेता के जाने के बाद अपनी तूती बोलती समझ रहे थे उन्हें इस बात की चिंता सताने लगी तथा उन्होंने एक अलग प्रकार की चर्चा को जन्म दे डाली है।

चर्चाओं के अनुसार वे खुद ही लोगों के बीच इस बात को फैलने लगे हैं कि यह व्यक्ति पार्टी के लिए खतरनाक है और वोट ही तोड़ेगा। जिसके चलते आम वोटर के मन में भाजपा की मजबूत होती स्थिति को लेकर कई प्रकार के सवाल भी खड़े हो जाते हैं। जिसके चलते जीत की तरफ बढ़ रही भाजपा को भीरतरघात के कारण पिछडऩे को विवश होना पड़ सकता है। एक तरफ तो कुछ खुश हैं कि सभी एक मंच पर आ रहे हैं तो दूसरी तरफ कुछेक खुद ही अंदर खाते इसका विरोध जताते हुए “भंडी” करने पर उतारु हैं। इसके अलावा कई ऐसे परिवार भी हैं जिन्हें अभी तक पार्टी नेताओं द्वारा साथ देने के लिए कहा भी नहीं गया, जिसके चलते उन्होंने चुनाव प्रचार का हिस्सा बनना जरुरी नहीं समझा। उनका कहना है कि रोटी तो वह अपने घर ही खाते हैं पर मान सम्मान भी जरुरी है, जो पार्टी द्वारा दिया जाना चाहिए। लगता है पार्टी नेताओं को उनकी जरुरत नहीं। ऐसी कई चर्चाओं के बीच भले ही नेता जी को जीत सुनिश्चिचत नजऱ आती हो, लेकिन भीतराघात से बचने के लिए भी उन्हें कोई न कोई उपाये जरुर कर लेना चाहिए। क्या? अब आप समझ गए होंगे कि साथी कौन हैं और कौन हैं तो इस गठबंधन से परेशान हैं।

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