आखिर क्यों एकाग्र नहीं हो पाता हमारा मन: साध्वी मेयांका भारती

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के स्थानीय आश्रम गौतम नगर होशियारपुर में सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें संस्थान के संस्थापक एंव संचालक सर्वश्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री मेयांका भारती ने अपने विचारो में कहा आज हममें से प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह एक विद्यार्थी हो या व्यापारी, गृहणी हो या कर्मचारी, किसी का भी अपने कार्य में एकाग्रता बन ही नहीं पाती। हमारा मन दसों दिशाओं में भटकता रहता है। हम करना कुछ चाहते है, लेकिन हमारा मन कही और होता है। इस कारण हम चाहकर भी सफ लता प्राप्त नही कर पाते।

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आखिर क्यों एकाग्र नही हो पाता हमारा मन? क्यो इतना विखरा हुआ है यह? एक उदाहरण के माध्यम से समझने का प्रयास करते है एक नदी जब पहाड़ो पर से नीचे उतरती है,तो चट्टानों से टकराती हुई, बहुत शोर मचाती हुई चलती है। कितनी अशांत और विखरी हुई होती है। लेकिन यही नदी जब अपने लक्ष्य, सागर में मिल जाती है तो उसका सारा शोर बिल्कुल खत्म हो जाता है। वह पूर्णत:शांत हो जाती है ठीक ऐसे ही आज हमारा मन अशांत है विखरा हुआ है क्योकि वह भी अपने स्न्नोत से अलग है जब तक वह अपने स्न्नोत परमात्मा से नही मिल जाता ,तब तक वह शांत हो ही नही सकता अपने आधार से जुड़े बिना उसकी एकाग्रता संभव ही नही। तभी तो हमारे शास्त्र-गं्रथो में कहा गया है मन तु जो स्वरूप है, अपना मूल पछान अर्थात कि मन तू प्रकाश रूप है तू अपने आधार को पहचान संत सुकरात कहते है ‘know they self’ अपने आत्म स्वरूप को जानो संत गुरजिअफ अकसर कहा करते थे ‘self rememberance’ अपने भूले हुए आत्मस्वरूप का स्मरण करो। तो अंतिम साध्वी जी ने कहा जितनी देर तक हम अपने ‘आधार से नही जुडते एकाग्रता होना संभव ही नहीं है।

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