नंबर बदलकर शामलाट जमीनें ही डकार गए कई कलोनाइजऱ, कौन करेगा जांच? पैसे का चक्कर बाबू भाई, पैसे का चक्कर

पैसे का चक्कर हो तो कागजों का हेर फेर बाबू भाई कागजों का हेरफेर हो ही जाता है। हो भी कैसे न, अगर जेब में पूंजी और प्रशासनिक एवं राजनीतिक पहुंच हो तो कोई भी काम असंभव नहीं। और तो और ऊपर से अगर सत्ताधारी राजनीतिक आका का आशीर्वाद मिल जाए तो सोने पे सुहागा होने से कोई नहीं रोक सकता। पिछले लंबे समय से एक तरफ जहां पंजाब में रेत-बजरी के अवैध खनन को लेकर मामला आज भी गर्म है वहीं दूसरी तरफ अनाधिकृत तौर पर काटी गई कालोनियों को लेकर भी सरकार के तेवर तलख ही दिखाई दे रहे हैं।

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लेकिन दूसरी तरफ चर्चाओं का बाडार इतना गर्म है कि अगर सरकार इन चर्चाओं पर गौर कर ले और जांच करवाए तो कई बड़े चेहरों से नकाब उतरतेे देर नहीं लगेगी। सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार कई कलोनाइजऱ तो ऐसे हैं जिन्होंने पिछले समय में धडल्ले से कालोनियां ही नहीं काटी बल्कि खसरा एवं खेवट नंबरों की अदला बदली करवाकर न सिर्फ जमीन मालिकों को चूना लगाया वहीं कईयों ने तो शामलाट जगहों को भी निजी जगीर बनाकर करोड़ों रुपये डकार लिए।

अब ये नंबर कैसे तबदील हो जाते हैं ये तो करवाने वाले और करने वाले ही जानें। सूत्रों के अनुसार एक बात तो साफ है कि अगर सरकार इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पिछले 10 सालों में काटी कालोनियों के रिकार्ड की जांच करवाई जाए तो लट्ठों से सारा रिकार्ड साफ हो जाएगा तथा इस गोलमाल में शामिल अधिकारियों, कर्मचारियों और कलोनाइजऱों की मिलीभगत से पर्दा उठ सकता है।

जैसा कि हमने पहले भी कहा था कि पहुंच और पूंजी के बल पर कई कलोनाइजऱ आटे में नमक नहीं बल्कि नमक ही नमक गूंथ कर तिजौरियां भरने में लगे हुए हैं और सालों में ही वे इतने पूंजीपति हो चुके हैं कि 50-100 करोड़ भी इनवैस्ट करना हो तो उन्हें सोचना नहीं पड़ता। और तो और ऐसे पूंजीपतियों को बैंकों से भी लोन आसनी से मिल जाता है, जबकि एक आम आदमी को घर बनाने या बच्चों को विदेश आदि में पढ़ाई के लिए भेजने हेतु लोन लेने के लिए नाक से लकीरें तक लगाने को विवश होना पड़ जाता है। खैर ये तो रही आम आदमी की बात, जिसके भाग्य में संघर्ष ही लिखा है। परन्तु नंबरों की हेराफेरी करके चांदी कूटने वालों की जांच अब करवाएगा कौन?

ये सवाल अपने आप में सवाल है। क्या? कैन-कैन से कालोनियां हैं, कहां हैं और किसकी हैं? ऐसे सवाल मत पूछा करो, मैंने आपसे पहले भी निवेदन किया था कि मैं तो मामूली सा पत्रकार हूं। इशारों में बात कहता हूं, जैसे थोड़ा कहे को ज्यादा समझें। मुझे दें आज्ञा। जय राम जी की।

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