हमें प्रभु में अपना चित लगाना चाहिए ताकि हम इधर-उधर न भटकेः आचार्य चंद्र मोहन

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़) । योग साधन आश्रम मॉडल टाउन में धार्मिक सभा के दौरान भक्तों का मार्गदर्शन करते हुए मुख्य आचार्य चंद्र मोहन जी ने कहा कि हमें प्रभु में अपना चित लगाना चाहिए ताकि हम इधर-उधर ना भटके। उन्होंने कहा कि और धार्मिक स्थान पर जाना और बात है लेकिन गुरु चरणों में रहकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना सर्वोत्तम बात है। उन्होंने कहा कि योगाचार्य सदगुरु देव चमन लाल जी महाराज कहा करते थे कि गुरु के पास जाकर हमें मोक्ष की प्राप्ति करनी है।  यही हमारे जीवन का उद्देश्य है संसार में रहकर कर्म करें पर अपने लक्ष्य को ना भूले, गुरु हमें इसी तरफ ले जाते हैं। योग मुक्ति के लिए है। यह दुनियावी चीजों के लिए नहीं है। परंतु योग में हठयोग और राजयोग है। जब तक हम शरीफ से स्वस्थ नहीं है तो हमारी मोक्ष की यात्रा सफल नहीं हो सकती| शरीर से सुखी रहे फिर अंतरात्मा में जाकर उसे मुक्ति की तरफ ले जाना है। हठयोग तथा राजयोग हमारे दो टांगों की तरह है। जिस प्रकार एक टांग के सहारे चलना मुश्किल होता है इसी तरह राजयोग और हठयोग के बिना चलना भी मुश्किल है। जो हठयोग नहीं करता उसके लिए शरीर रुकावट बन जाता है। शरीर के अंदर मल जमा हो जाता है जो कई मगर बीमारियों को पैदा करता है।

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इसलिए योग शरीर की शुद्धि की तरफ लेकर जाता है। शरीर में जब मल रुक जाता है तो रोग आते हैं। जैसे शरीर के दुख का कारण मल है आत्मा के दुख का कारण माया है। आत्मा माया से दुखी होती है। जब हम राजयोग की तरफ जाते हैं तो अंतरात्मा को शुद्ध करते हैं। इसके लिए योग के आठ अंग है। शरीर को शुद्ध रखने से हम स्वस्थ रहते हैं और आत्मा को शुद्ध करने से हमें ज्ञान की प्राप्ति होती है। यम ,नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि करने से हमें मुक्ति मिल जाती है। इसके लिए कई बार कई कई जन्म लग जाते हैं। एक-एक अंग से आत्मा की शुद्धि होती है। असस्ते करने से मुक्ति मिलती है। इससे हम माया की तरफ देखते ही नहीं। अहिंसा. सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह का भी पालन करना होगा। माया का प्रसार नहीं होना चाहिए। इससे मन हल्का रहेगा और रात को नींद भी अच्छी आएगी। तन मन शुद्ध होगा तो हमारा शरीर व आत्म दोनों प्रसन्न रहेंगे। इसके अलावा हम में संतोष होना भी जरूरी है। जिसके अंदर संतोष नहीं है उसका यह जीवन भी दुखी रहेगा और परलोक भी दुखी रहेगा। जिसको संतोष नहीं है उसे दुनिया का सारा राज भी मिल जाए तो वह फिर भी दुखी रहेगा। इसलिए हमें जीवन में संतोष लाना होगा।

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