अकाली दल बादल से अलग होकर अपनी पार्टी अकाली दल संयुक्त बनाने वाले सुखदेव सिंह ढींडसा और परमिंदर सिंह ढींडसा ने अकाली दल में वापसी तो कर ली, लेकिन उनकी वापसी से अकाली दल बादल में उथल-पुथल शुरू होने से राजनीतिक गलियारों में चर्चा का बाजार तेज हो गया है। इतना ही नहीं बीबी जागीर कौर की भी घर वापसी की चर्चाएं तेज होने से पार्टी में खलबली ओर बढ़ती नज़र आने लगी है। पार्टी हाईकमान में जहां खलबली मची हुई है वहीं होशियारपुर की बात करें तो यहां भी हालात बेहतर होते नज़र नहीं आ रहे हैं, बल्कि गुटबाजी के चलते पार्टी कार्यकर्ताओं में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। भले ही लोकसभा चुनावों को लेकर पार्टी हाईकमान हर जोड़तोड़ करके ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की रणनीति में है वहीं जमीनी स्तर पर हालात उल्टे ही दिख रहे हैं।
लालाजी स्टैलर की राजनीतिक चुटकी
होशियारपुर में एक तरफ जतिंदर सिंह बाजवा ग्रुप तो दूसरी तरफ वरिंदर सिंह बाजवा का ग्रुप सक्रिय यानि कि दोनों की जोरआजमाइश में कार्यकर्ता इस दुविधा में हैं कि आखिर पार्टी इस तरह की गुटबाजी में सीटें जीतने का दावा कैसे कर सकता है। इसके अलावा पूर्व विधायक जत्थेदार सुरिंदर सिंह भुल्लेवालराठां ग्रुप की सक्रियता को भी नज़र अंजाद नहीं किया जा सकता। जिसका ताजा उदाहरण हाल ही में दोनों के निवास स्थान पर हुए कार्यक्रमों से मिल जाता है। हाल ही में नई नियुक्तियों के चलते अब नए-नए नेता बने पदाधिकारियों के समक्ष अपना ग्रुप मजबूत करने की होड़ भी देखने को मिल रही है। जबकि राजनीतिक माहिरों की माने तो अकाली दल में एसे नेताओं का बर्चस्व बढ़ता दिख रहा है, जो मौके की सरकारों के साथ दल बदलने में जरा भी देर नहीं लगते थे तथा पिछली कांग्रेस सरकार के समय में सत्ता सुख की खातिर कांग्रेसी बनने में भी उन्होंने जरा भी परहेज नहीं किया था तथा वर्तमान में भी सूत्रों की माने तो आम आदमी पार्टी की तरफ भी उनका झुकाव देखने को मिला, लेकिन आप की लीडरशिप ने मजबूत बहुमत के चलते एसे नेताओं को दूर से ही बाय-बाय कहकर घर बैठने का इशारा कर दिया था।
जिसकी मजबूरी के चलते वह नेता अकाली दल के सिपाही बनने का दावा ठोकते नहीं थके। मौजूदा समय में होशियारपुर की स्थिति तो एसी दिख रही है कि कई अकाली नेता बड़े नेताओं के साथ फोटो खिंचवाने के लिए एडी चोटी का जोर लगाने से भी पीछे नहीं हट रहे। जिसे लेकर सोशल मीडिया पर भी ट्रोल करने का सिलसिला भी काफी दिन तक चलता रहा। भले ही की गलतियां पुराने प्रधान की भी रही होंगी, मगर उन्होंने कभी पार्टी को छोड़ने का दल बदलने का कदम नहीं उठाया, जिसके चलते वह सुखबीर सिंह बादल के करीबी माने जाते हैं और इसमें कोई दो राय नहीं कि जिला प्रधान की जिम्मेदारी किसी और को दिए जाने पर बाजवा दल कुछ नाराज जरुर हुआ था और सुखबीर सिंह बादल ने बाजवा के घर पहुंचकर उन्हें पार्टी का सच्चा सिपाही कहकर संबोधित करते हुए बाजवा की अकाली दल के प्रति निष्ठा को प्रकट किया था।
मौजूदा समय में अकाली दल में वापसी करने वाले नेताओं में कुछेक तो एसे हैं जो वीजिलैंस की जांच का सामना कर रहे हैं तथा उनकी वापसी के चलते भी कई नेताओं के चेहरों पर मायूसी छा चुकी है। हालांकि राजनीति में माना जाता है कि जिस लीडर की कोई जांच न चले या उस पर कोई केस न हो तो उसे लीडर ही नहीं माना जाता तथा घर छोड़कर जाने वालों को पार्टी में पहले से भी अधिक मान सम्मान से नवाजा जाता है तथा राजनीति में एसी कई उदाहरणें देखने को मिल जाती हैं, जहां पार्टी छोड़ने के बाद जब कोई नेता वापसी करता है तो उसके कद में बढ़ोतरी ही हुई। अब देखना यह होगा कि संयुक्त अकाली दल व अन्य नेताओं की वापसी से अकाली दलको कितना बल मिलता है, लेकिन फिलहाल होशियारपुर में अकाली दल की गुटबाजी से चर्चाओं का बाजार पूरी तरह से गर्म दिख रहा है।