भारत सरकार का श्रम विभाग और मानवाधिकार आयोग अपने ठंडे कमरों से बाहर निकले: लक्ष्मीकांता चावला

अमृतसर (द स्टैलर न्यूज़)। देश के लाखों नहीं करोड़ों लोग ऐसे हैं जो प्रतिदिन बारह से चौदह घंटे तक काम करते हैं। पूरे वर्ष में जिन्हें एक भी छुट्टी नहीं मिलती और वेतन इतना थोड़ा मिलता है जिसमें आटा नमक भी बड़ी मुश्किल से पूरा हो सकता है। सरकार यह दावे तो करती है कि हमारी अर्थव्यवस्था सुधर रही है और विकास दर अगले कुछ वर्षों तक सात प्रतिशत रहेगी, पर जनता यह जवाब मांगती है कि उन लोगों की कब सुधरेगी जब श्रम विभाग की अनदेखी, लापरवाही और हृदय हीनता के कारण बीस बीस वर्ष से नौकरी कर रहे हैं, पर उन्होंने कभी आठ दस हजार रुपये से ज्यादा रुपया नहीं देखा।

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क्या सरकार जानती है कि ऐसे लोग भी हैं जिन्हें न्यूनतम वेतन नहीं मिलता। एक दो नहीं, करोड़ों में हैं। क्या यह श्रम विभाग और भारत सरकार के मंत्री, प्रदेशों के मंत्री यह जानते हैं कि तीस वर्षों तक नौकरी करने वाला व्यक्ति गरीब, बेसहारा, मजदूर केवल बारह हजार रुपये पर काम कर रहा है। न मानवाधिकार आयोग जागता है और न ही श्रम विभाग। सरकार से यह निवेदन है कि घोषणाएं करना उनके घावों पर नमक छिड़कना है जिन्होंने कभी छुट्टी का आनंद नहीं लिया और न ही न्यूनतम वेतन का। सरकारें जनता के पास आएं। अगर अब समय नहीं है तो चुनाव संपन्न होते ही आ जाएं, पर भारत की आम जनता को मानवीय अधिकार को दे।

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