होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। दिव्य ज्योति जाग्रति सस्ंथान द्वारा बाबा तारा गुरु मंदिर बस्सी वाजिद में तीन दिवसीय श्री हरिकथा का आयोजन किया गया। जिसके प्रथम दिवस में दिव्य ज्योति जाग्रति सस्ंथान से श्री आशुतोष महाराज जी की परम शिष्या कथा व्यास साध्वी सुश्री पूजा भारती जी ने कहा हरि कथा वह है जिसमें ईश्वर की चर्चा, उसका गुणगान, उसकी स्तुति, वंदना व अराधना होती है।
वहां बोला गया हर शब्द ईश्वर के निमित है, उसके गुणों की व्याख्या है और जो सच्चा सुख, शाश्वत आनंद ईश्वर की स्तुति में मिलता है। वह ब्रहाण्ड की अन्य कोई वस्तु या कोई स्थान से प्राप्त नही हो सक ता। श्रीमदभागवत में महर्षि वेद व्यास भी कहते है भगवदभक्तों के संग से भगवान का तीर्थ तुल्य पवित्र चरित्र सुनने को मिलता है। इसको बार-बार सुनने से कानों के रास्ते भगवान हमारे हृदय में प्रवेश कर जाते है और हमारे सभी प्रकार के दैहिक और मानसिक रोगों को नष्ट कर देते है।
साध्वी जी ने यह भी बताया कि जब-जब भी परमात्मा शरीर धारण कर इस धरती पर आए तो उनकी सेवा में अनेकों ही भक्त पहुंचते है परंतु कुछ भक्त ऐसे होते है जिनका नाम इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो जाता है। जैसे भक्त प्रहलाद जिसनेबहुत ही छोटी सी उम्र में परमात्मा की कृपा और प्रेम को प्राप्त कर लिया। भक्त प्रहलाद ने छोटी सी उम्र में ही भक्ति मार्ग की सर्वाेच्च पदवी को प्राप्त कर लिया जिसकी कल्पना कोई बड़े से बड़ा तपस्वी भी नहीं कर सकता। प्रहलाद के जन्म से पूर्व इस धरा पर अधर्म का राज्य बढ़ चुका था।
हमारे स्मस्त शास्त्र बताते है कि जब-जब भी संसार में अधर्म अत्याचार, भ्रष्टाचार, अनैतिकता ऊंच-नीच का बोलबाला होता है। जब इंसान अपने ही बनाए सिद्धातों पर कटट्र हो जाता है और दूसरे लोगों से नफरत करने लग जाता है उस समय भी ईश्वर का महापुरूषों के रुप मे आना आवश्यक हो जाता है। हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप दुष्ट राजा बनें। दोनों ने अत्याचार और जुल्म को हथियार बनाकर निर्दोष लोगों को सताना शुरु कर दिया।
जब हिरण्याक्ष के पापों को घड़ा भर गया तो प्रभु ने वराह रुप धारण कर उसका संहार कर दिया तब हिरण्यकश्यप ने बदले की भावना से प्रेरित होकर और गुरु शुक्राचार्य के परामर्श से ब्रहम देव से दुर्लभ वर प्राप्त करने के लिए घोर तप में लीन हो गया। इंद्र देव ने राक्षस राज को नष्टभ्रष्ट कर दिया और क्याधु का अपहरण कर लिया। नारद मुनि ने इन्द्र देव को समझाया तत्पश्चात नारद मुनि जी क्याधु को अपने आश्रम में ले गए।
क्याधु आश्रम मे भक्ति व निष्ठापूर्वक समय व्यतीत करने लगी। इसी अंतराल में देवर्षि ने क्याधु को विशुद्ध ब्रहज्ञान प्रदान किया। इस क्रम में देवर्षि नारद की दृष्टि गर्भस्थ शिशु पर थी जन्म पश्चात भी नारद द्वारा दिया गया ज्ञान विस्मृत नहीं हुआ। इसी स्मृति के प्रताप से प्रहलाद् में एक अत्युत्कृष्ट व्यक्तित्व का सृजन हुआ। प्रथम दिवस कथा का समापन प्रभु की पावन आरती हुआ।