जिला होशियारपुर में एक बड़े नेताजी का आशीर्वाद प्राप्त एक दरोगा जी इन दिनों एक बार फिर से चर्चा में हैं। इस बार बात वैसे कोई बड़ी नहीं हैं, लेकिन बात इस समय इसलिए बड़ी हो जाती है कि क्योंकि करफ्यू लागू करवाने को लेकर दरोगा जी का गुस्सा अकसर सातवें आसमान पर रहता है तथा करफ्यू का उलंघन करने वाले लोगों एवं दुकानदारों को कानून का अच्छा खासा पाठ पढ़ा देते हैं। इसलिए यह घटना चर्चा में है। हुआ यूं कि दरोगा जी गश्त पर थे और एक स्कूटर सवार को देखकर दरोगा जी ने उसे रोका। थानेदार के रौब में पूछा कहां से आ रहे हो, कहां जा रहे हो। व्यक्ति ने बताया कि वो गेहूं की कटाई करवाकर लौट रहा है और घर जा रहा है। पास कहां है। पास मतलब करफ्यू पास। पास तो नहीं हैं। पास नहीं है, क्या पास नहीं है, जैसे ही साहिब ने सुना तो उनका गुस्सा और भडक़ गया।
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फिर क्या था, स्कूटर सवार को कई बातें सुना डालीं। गेहूं की कटाई को लेकर सरकार के आदेश हैं कि जो किसान गेहूं की कटाई के लिए निकले उसे पास की जरुरत नहीं है। लेकिन एक वर्दीधारी और ऊपर से दरोगा जी, तो भाई रौब और कानून का पाठ पढ़ाना तो बनता था। फिर क्या था। दरोगा जी ने स्कूटर सवार का चालान काट डाला। चालान में वजह एक नहीं बल्कि चालान काटने की दो-दो वजह भरी। दो में एक चीज सवार के पास थी। परन्तु दरोगा जी ने एक न सुनी। इसके बाद वो व्यक्ति चालान लेकर चला गया। लेकिन स्कूटर सवार भी पहुंच वाले थे और उन्होंने जब इस बारे में उन्होंने अपनी पहुंच दौड़ाई तो दरोगा जी के हाथ पैर फूल गए और वे बात को खत्म करने की जुगत भिड़ाने लगे। आनन-फानन में दरोगा जी ने थानेदार साहिब को भेजकर उनके घर से चालान वापिस मंगवा लिया। जब तक वे चालान मंगवाते बात जंगल की आग की तरह चारों तरफ फैल चुकी थी।
चर्चा यह भी है कि क्या दरोगा जी सरकार द्वारा जारी आदेशों को पढऩा या जानना जरुरी नहीं समझते या फिर जानबूझकर वर्दी का रौब झाडऩे की उन्हें आदत हो चुकी है। क्या? अरे भाई जब नेता जी का आशीर्वाद है तो वे किसी की बात क्यों सुनेंगे। वैसे भी भाई एक बात तो साफ है जब से करफ्यू लगा है तब से कई अधिकारियों के पास इतने अधिकार आ गए हैं कि वे कुछ भी कर सकते हैं और उन्हें शायद पूछने वाला भी कोई नहीं है। ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि अगर कोई पूछने वाला होता तो शायद दरोगा जी कम से कम इतनी मनमर्जी तो न करते। ऐसा नहीं है कि कर्तव्य निभाने में वह किसी से पीछे हैं, परन्तु… अब परन्तु यह मत पूछो। कुछ तो खुद समझा करो। वैसे एक बात बताऊं यही चालान अगर किसी आम बंदे का कटा होता न तो शायद उसे मोटा जुर्माना देकर भुगतना पड़ता। लेकिन बात यहां जायज और नाजायज की और पहुंच की। क्योंकि, स्कूटर सवार की पहुंच और रुतबे के आगे दरोगा जी की पहुंच भी शायद काम न करती। इसलिए दरोगा जी ने चालान वापिस मंगवाना ही उचित समझा।
अब देखना यह होगा कि करफ्यू और कितने दिन चलता है तथा दरोगा जी की मनमर्जी और रुतबे का शिकार कितने लोगों को होना पड़ता है। क्या? सुना नहीं। नाम बता दूं। न बाबा न, मुझे पुलिस से लगता है डर, नाम लेकर वर्दी वालों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहता। नाम तो आपको पता ही है। अब मुझसे ऐसे सवाल न किया करो। जय राम जी की।