-कई विपक्षी पार्षद बैठक में सत्ताधारियों को डस्टबीन के मुद्दे पर घेरने की कर चुके हैं तैयारी-
होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। नगर निगम अपनी कार्यप्रणाली को लेकर एक के बाद एक मुद्दे में घिरती जा रही है। एक तरफ निगम में जहां कथित तौर पर फैले भ्रष्टाचार को लेकर निगम सवालों के घेरे में है तो ऊपर से अब डस्टबीनों का मुद्दा निगम की गले की फांस दिखता नजर आ रहा है। राजनीतिक सूत्रों के अनुसार निगम हाउस की 23 मई को होने वाली बैठक, जिसमें कई विकास कार्यों पर मोहर लगाई जानी है, में कई पार्षद डस्टबीन का मुद्दा प्रमुखता से उठाने की तैयारी कर चुके हैं। हाउस की बैठक संबंधी पार्षदों को भेजी गई एजैंडे की चिट्ठी में शहर में शेष बचे डस्टबीन लगाए जाने संबंधी भी प्रस्ताव रखा गया है जिस पर 1 लाख 22 हजार रुपये का खर्च आने का अनुमान रखा गया है तथा इस खर्च को लेकर विपक्षी पार्षद निगम में सत्ताधारियों को घेरने की तैयारी में एकजुट होने लगे हैं। सूत्रों की मानें तो जानकारी अनुसार निगम द्वारा शहर में विभिन्न स्थानों पर लाख रुपये के डस्टबीन लगवाए गए थे। इसमें कई टूटने व जलने के कारण खराब हो गए थे और उनकी जगह पर बचे हुए डस्टबीन लगाने की तैयारी निगम द्वारा की जा रही है, जिसे लेकर यह प्रस्ताव रखा जाएगा। परन्तु सवाल यह है कि क्या निगम द्वारा पहले जो डस्टबीन बनवाए गए उनकी कीमत शहर में लगाने की भी बीच में जोड़ी गई थी या नहीं तथा अगर वे कीमत जोड़ी गई थी तो फिर शेष बचे हुए डस्टबीनों को लगाने के लिए अतिरिक्त खर्च क्यों, अगर यह कीमत डस्टबीन की कुल कीमत नहीं नहीं जोड़ी गई तो पहले जो डस्टबीन लगाए गए उनको फिक्स करने के लिए निगम ने कितने रुपये अतिरिक्त दिए, इसकी जानकारी भी पार्षद मांग
सकते हैं। कुछेक पार्षदों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि निगम द्वारा जनता के लाखों रुपये खर्च करके शहर में जगह-जगह पर डस्टबीन लगवाए गए थे, परन्तु हैरानी की बात यह है कि वह टूटे कैसे और उन्हें आग किसने लगाई। क्या निगम ने इनकी देखरेख व इन्हें आग से बचाने के लिए कोई नियम बनाया, अगर हां तो क्या आग लगाने वालों पर कार्रवाई हेतु कदम उठाए गए। शायद नहीं? क्योंकि शहर में सफाई व्यवस्था में लगे अधिकतर सफाई सेवक कचना उठाने की बजाए वहीं आग लगाकर अपने फर्ज की इतिश्री कर लेते हैं। और तो और उनके द्वारा इस बात का ध्यान रखा जाना भी जरुरी नहीं समझा जाता कि आग डस्टबीन के पास तो नहीं लगा रहे। हालांकि ऐसा करने वाले चंद कर्मी ही होंगे मगर अंगुली सभी पर उठनी स्वभाविक है। सूत्रों की माने तो डस्टबीन की कीमत को लेकर भी संशय बरकरार है कि इतनी महंगी चीज आखिर दो साल भी नहीं चली, जबकि जनता के पैसे से ली जाने वाली हर वस्तु गुणवत्ता पर खरी उतरनी चाहिए। निगम पर साबित सत्ताधारी पार्टी के नजदीकी कुछेक नेताओं व कार्यकर्ताओं ने दबी डुबान में ‘इक चुप ते सौ सुख’ वाली कहावत दोहराकर कहीं न कहीं निगम में फैले भ्रष्टाचार की तरफ इशारा करने से परहेज नहीं किया। इसका मतलब तो यह हुआ कि निगम में उनकी भी नहीं सुनी जाती।
हमने तो सोचा हमारे ही काम नहीं होते, मगर आप भी परेशान हैं
पिछले दिनों निगम की बजट को लेकर आयोजित हुई बैठक में जहां कांग्रेसी पार्षदों ने अपने वार्ड के काम न होने का दुखड़ा रोया था वहीं कुछेक भाजपा पार्षदों ने अपने काम होने संबंधी बात कही थी। इस पर कांग्रेस के एक पार्षद ने कहा था कि ‘हमने तो सोचा हमारे ही काम नहीं होते, मगर आप भी परेशान हैं’। जिसकी शहर
में काफी चर्चा रही। राजनीतिक माहिरों की मानें तो ऐसी बातें जब सामने आने से भ्रष्टाचार की आशंका का पनपना और राजनीतिक ही नहीं चौपाल पर चर्चा होनी स्वभाविक सी बात है। अगर देखना यह होगा कि निगम अपनी छवि को सुधारने के लिए क्या कदम उठाती है।