आका कहे, नाक का सवाल और चमचे जड़ों में दे रहे तेल, “भा…” वाले अपने पे न लें

ये कैसा राजनीतिक संकट है कि एक तरफ किसान, दूसरा विपक्ष और तीसरा अपने ही वैरी! ऐसी स्थिति में अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई और भी जटिल एवं कठिन हो जाती है। कुछ ऐसी ही स्थिति से होशियारपुर के एक नेता जी गुजर रहे हैं। आलम ये है कि नगर निगम चुनाव में एक सीट को लेकर जहां वह उसे अपनी नाक का सवाल बनाए बैठे हैं वहीं दूसरी तरफ उनके चमचे हैं कि उनकी नाक काटने पर उतारु हो रहे हैं। आलम यह है कि अपने आका के सगे-सम्बंधी और राइट हैंड होने का दावा करने वाले यह चमचे इतने शातिराना तरीके से आका के किले में सेंध लगा रहे हैं कि आका चुनाव से पहले ही जीत के नशे में चूर कुछ भी समझने को तैयार नहीं। अगर वे समझते तो शायद अब तक कईयों पर कार्यवाही करके उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका होता।

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लालाजी स्टैलर की राजनीतिक चुटकी

राजनीतिक माहिरों एवं पार्टी सूत्रों की मानें तो कुछ समय पहले ही अच्छी खासी फजीहत करवाने वाले नेता जी का जगह-जगह पर हो रहे विरोध के बावजूद नेता जी के तेवर ढलने का नाम नहीं ले रहे। इतना ही नहीं नेता जी (आका) के करीबियों ने अपने आका व पार्टी के विपरीत जाकर शहर में कई जगहों पर आजाद उम्मीदवार भी खड़े कर डाले तथा उनकी जीत का दावा करते हुए आका को ऐसे बहला फुसला लिया जैसे किसी बच्चे को कोई खिलौना देकर बहला लिया जाता है। सूत्रों की माने तो नेता जी को आंखों पर नतीजों से पहले ही जीत व अपने चमचों पर विश्वास के चढ़े चश्में पर जमी मिट्टी दिखाई नहीं दे रही। या यूं कहें कि वे देखना नहीं चाहते। पता चला है कि जो सीट आका के लिए नाक का सवाल है उसे दूर की कौड़ी साबित करने में चमचों का लग रहा जोर ऐसे उभर कर सामने आ रहा है जैसे बरसात के दिनों में छप्पड़ से डड्डू।

हालांकि आका के प्रति वफादारी की कस्में खाते हुए वे थकते नहीं, मगर नगर निगम चुनाव में पार्टी एवं आका के विपरीत जाकर किसके साथ वफादारी निभाई जा रही यह बात सभी के लिए पहेली बनी हुई है। पता चला है कि आका जी सबकी हरकतें जानते हैं, लेकिन न जाने उनकी क्या मजबूरी है कि कार्यवाही से हाथ इस तरह खींच रहे हैं जैसे कूएं से पानी की बाल्टी खींचते हैं। जबकि हाल ही में एक राजनीतिक पार्टी ने पार्टी से वफा न करने वालों को बाहर का रास्ता दिखाकर साफ कर दिया कि पार्टी से बढक़र कुछ भी नहीं। अब देखना यह होगा कि आका जी अपनी नाक बचा पाते हैं या फिर उनकी जड़ों में तेल देने वालों का पोषण करते हुए अपने लिए कांटे बोने की अपनी पुरानी रणनीति के तहत ही काम करते हैं। इतना ही नहीं मीडिया मैनेजमैंट में भी वे फेल ही साबित हो रहे हैं। पार्टी सूत्रों द्वारा ऐसा माना जा रहा है कि अगर वे मीडिया मैनेजमैंट ही कर लेते तो शायद…।

क्या? फिर वही सवाल, कौन सा नेता, कौन सा आका व कौन सी पार्टी। अरे भाई आपको सब पता है, आप जानबूझकर मेरा मुंह खुलवाते हो। आपको तो पता है कि भाई मैं तो छोटा सा पत्रकार हूं, अभी मेरा कद भी छोटा है तो आप क्यों मेरे पीछे पड़ जाते हो। क्या, ये “भा…” वाले अपने पे न लें। लें तो लें अब मैंने जो कहना था सो कह दिया, आगे जो आप समझें आपकी मर्जी। जय राम जी की।

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