कांग्रेस में घमासान: मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं

samart-study-group-for-web-advt-hoshiarpurपंजाब (द स्टैलर न्यूज़)। यूं तो लगभग हर राजनीतिक पार्टी में कार्यकर्ताओं व नेताओं की तब तक की महत्ता है जब तक उनसे काम है और काम बनते ही तूं कौन और मैं कौन की कहावत को लागू करते हुए काम के कार्यकर्ताओं को दरकिनार करना पार्टी हाईकमान की फिरतर रही है तथा वर्तमान समय में भी कई पार्टियों पर यह वाक्य लागू होता है।
13 जून को पंजाब प्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष सुनील जाखड़ द्वारा दिए गए बयान कि कांग्रेस के संविधान में एक्टिंग अध्यक्षों की कोई व्यवस्था नहीं है को लेकर पार्टी के भीतर ही नया द्वंद शुरु हो गया है। गौरतलब है कि जिन जगहों पर जिला अध्यक्षों पर पार्टी टिकट पर विधानसभा में उतारा गया था उन जिलों में एक्टिंग प्रधान लगाए गए थे। कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर रोष की लहर दौड़ गई है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर कांग्रेस के संविधान में व्यवस्था नहीं थी तो फिर एक्टिंग प्रधान लगाए ही क्यों गए, अगर उन्हें लगाया गया है तो फिर पार्टी का फर्ज बनता है कि उन्हें पार्टी में उचित व सम्मानीय पद से नवाजा जाए, क्योंकि प्रदेश में सरकार के गठन में एक्टिंग प्रधानों की भूमिका को दरकिनार नहीं किया जा सकता तथा उन्होंने दिन रात एक करके पार्टी की जीत को सुनिश्चित बनाने में अपनी अहम भूमिका अदा की है। पार्टी इस प्रकार उनके साथ अन्याय नहीं कर सकती। कुछेक ने बताया कि पार्टी ने एक्टिंग प्रधान अगर पोलिंग वाले दिन तक ही लगाए थे

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तो उन्हें जारी किए गए पत्र में नए प्रधान की नियुक्ति तक वे प्रधान पद पर आसीन रहेंगे की बात क्यों की गई थी। अब जबकि सत्ता में कांग्रेस आसीन हुई है और जनता से किए वायदों को पूरा करने का समय है तो एक्टिंग जिला प्रधानों को दूध से बाल की तरह निकाल कर बाहर कर देना तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता। जिन जिला प्रधानों को पार्टी टिकट पर विधानसभा चुनाव में उतारा गया था उनमें से कई विधायक विजयी श्री का ताज पहन चुके हैं तथा अब सवाल यह है कि जिन लोगों ने चुनाव में मेहनत की और अपने नेताओं की जीत को सुनिश्चित बनाने में अहम योगदान डाला, क्या उन्हें इस प्रकार से दरकिनार कर देने राजनीतिक सिद्धांतों के खिलाफ नहीं है?
राजनीतिक माहिरों की माने तो प्रदेश अध्यक्ष द्वारा एक्टिंग प्रधानों की अस्थायी तौर पर की गई नियुक्तियों को इस प्रकार से रद्द करना कहीं न कहीं एक्टिंग प्रधानों के साथ अन्याय होगा तथा इससे उनके आत्म सम्मान को भी कहीं न कहीं ठेस जरुर पहुंची है व उनके साथ जुड़े हरेक ईमानदार कार्यकर्ता के सम्मान को भी धक्का लगा है। उनका मानना है कि अगर एक्टिंग प्रधान व पहले प्रधान में आपसी अस्तित्व की जंग कहीं हो भी रही थी तो इसका हल पार्टी के भीतर ही ढूंढना चाहिए था न कि इस प्रकार मीडिया के बीच जाकर बात को उछाला जाता और पार्टी की संवैधानिक व्यवस्था को इस प्रकार से लागू किया जाना चाहिए था कि एक्टिंग व पहले प्रधान की प्रतिष्ठा बनी रहती व दोनों आपसी तालमेल से पार्टी हित के लिए काम कर पाते। मगर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष द्वारा दिए गए बयान से पार्टी के भीतर चुनाव से पहले व बाद चल रहा ‘शीत युद्ध’ सबके सामने आने लगा है। पार्टी सूत्रों की मानें तो नेता जी द्वारा एक्टिंग प्रधान की व्यवस्था को एकाएक खत्म करना उनसे जुड़े कुछेक चहेतों को खुश करने के लिए भी माना जा रहा है।
यूं तो चुनाव के बाद ही जिला प्रधानगी को लेकर नेताओं के भौंवें तनने लगी थी, मगर जनता की किरकिरी से बचने के लिए नेताओं ने

चुप्पी साध रखी थी तथा अगर कहीं कोई बात थी भी तो वह भी पार्टी के भीतर ही रखे जाने के प्रयास किए जा रहे थे, मगर चुनाव जीतकर विधायक बनना और पार्टी हाईकमान द्वारा कोई मंत्रीपद न मिलने के चलते कई नेताओं का यह प्रयास था कि उन्हें जिला प्रधानगी पद फिर से नसीब हो जाए और उनका जिले व पार्टी के भीतर मान सम्मान मंत्रियों की तरह ही रहे। बात अगर जनता की सेवा की न होकर मात्र पद की लालसा तक ही सीमित है तो फिर यह कहना भी गलत नहीं होगा कि हर नेता अपने हाथ में ताकत आते ही अपना कैडर मजबूत करने में लग जाता है तथा उसे पार्टी या जनता के हितों के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्ताओं के सम्मान का भी कोई ध्यान नहीं रहता। वर्तमान समय में कांग्रेस के भीतर उभरे इस द्वंद पर कांग्रेस हाई कमान किस प्रकार से काबू पाती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा, मगर इतना जरुर है कि जिला प्रधानगी को लेकर कांग्रेस के भीतर एक नई ही जंग छिड़ चुके है तथा नेताओं ने इस पद पर आसीन होने के लिए हर तरह से तिडक़म लगानी शुरु कर दी है।

अब देखना यह होगा कि पार्टी नेता अपने चहेतों को खुश करते हंै या कार्यकर्ताओं के सम्मान को बरकरार रखने के लिए नई व्यवस्था को लागू करते हुए पार्टी की मजबूती को लेकर कोई कदम उठाते हैं, अगर ऐसा न हुआ तो बड़ी संख्या में पार्टी समर्थक पार्टी का विरोध भी जता सकते हैं की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता तथा इसका असर आगामी लोकसभा चुनावों के साथ-साथ नगर निगम और नगर परिषदों के चुनावों पर पडऩा लगभग तय है। कार्यकर्ताओं का यह भी मानना है कि पार्टी को एक नेता एक पद का सिद्धांत भी लागू करना चाहिए, जोकि समय की मांग है।

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यह भी पता चला है कि जिला प्रधान से विधायक बने कई नेताओं ने जहां चुनाव जीतते ही बड़े नेताओं से संपर्क साधना शुरु कर दिया था तो वहीं दूसरी तरफ एक्टिंग प्रधानों को जिला प्रधान का पद दिलाने हेतु भी कई नेता व कार्यकर्ता बड़े नेताओं की शरण में पहुंचने लगे हैं।

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