फिर चर्चा बना नगर निगम: आखिर कौन कर रहा है गुमराह?

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– रिकार्ड भी है, फिर भी क्यों दी जा रही अधूरी जानकारी अधूरी?- आखिर कौन दे रहा है अधूरी जानकारी और कौन कर रहा निगम पर काबिज पक्ष, सत्तापक्ष तथा जनता को गुमराह-
होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। पिछले कुछ समय से नगर निगम कभी सत्तापक्षा तो कभी काबिज पक्ष के साथ-साथ कुछेक अधिकारियों की कार्यप्रणाली को लेकर कुछ ज्यादा ही चर्चा में आने लगा है। जिसके चलते यह समझ नहीं आ रहा कि आखिर कौन है जो जनता को गुमराह करके अपने मनोरथ सिद्ध करने में लगा है? क्या वे पार्षद हैं? क्या वे अधिकारी हैं या फिर निगम पर काबिज पक्ष व विपक्ष? आखिर कौन है जो जनता को गलत एवं अधूरी जानकारी देकर राजनीतिक गलियारों को गर्म रखने का काम कर रहा है तथा गुमराह करने की राजनीति कर रहा है।
इन दिनों निगम कार्यप्रणाली को लेकर इस प्रकार की चर्चाओं का बाजार पूरी तरह से गर्म हो रहा है। यह भी चर्चा है कि कहीं निगम के कुछेक अधिकारियों की कथित मिलीभगत तो नहीं कि वे काबिज पक्ष और सत्तापक्ष दोनों को गुमराह करके अपनी रोटियां सेंक रहे हैं। अगर, ऐसा है तो ऐसे अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर नजऱ बनाए रखना सभी का काम है व इसी में सबकी भलाई है।
पिछले कुछ माह पहले कांग्रेस से जुड़े एक व्यक्ति द्वारा एक वार्ड में करवाए गए विकास कार्यों संबंधी आर.टी.आई. के माध्यम से जानकारी मांगी गई थी। निगम अधिकारियों द्वारा जो जानकारी उसे दी गई उसमें से निगम में विकास के नाम पर बड़े घोटालों को अंजाम दिए जाने की ‘बू’ आ रही थी। आर.टी.आई. के माध्यम से प्राप्त जानकारी अनुसार जब यह मामला समाचारपत्रों की सुर्खियां बना तो निगम में अफरा-तफरी मच गई और मामले को शांत करने की कवायद शुरु हो गई। कांग्रेसियों ने इस मामले को खूब उठाया तथा इसकी विजीलैंस की जांच की मांग करते हुए अधिकारियों को मांग पत्र भी सौंपे।

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लगभग एक माह तक चले इस हाईप्रोफाइल ड्रामें तथा निगम पर काबित पक्ष की जग-हंसाई हो जाने के बाद निगम के एक अधिकारी को याद आया कि जो मामला उठाया जा रहा है उससे संबंधित रिकार्ड तो निगम के पास मौजूद है तथा उन्होंने प्रैस के नाम एक बयान जारी करके बताया कि जिन कार्यों को घपला करार दिया जा रहा है उससे संबंधित रिकार्ड निगम के पास मौजूद है तथा पत्रकारसाथी इस संबंधी समाचार लगाने से पहले संबंधित अधिकारी से जरुर बात करें।

अब उनके इस बयान के बाद जो चर्चाओं का बाजार गर्म हुआ वे आज तक शांत नहीं हुआ है। सवाल यह है कि अगर विकास कार्य एक स्थान से बदलकर दूसरे स्थान पर करवाए गए तो इस संबंधी जानकारी आर.टी.आई. में क्यों नहीं दी गई? जिससे कहीं न कहीं स्पष्ट हो जाता है कि मामला गड़बड़ तो है ही? मगर अब सवाल यह है कि अगर रिकार्ड था तो उसकी जानकारी पहले सार्वजनिक क्यों नहीं की गई, आखिर एक माह बाद ऐसी क्या जरुरत आन पड़ी कि अधिकारी को इस बात का खुलासा करना पड़ा कि रिकार्ड है।
सवाल यह भी है कि क्या निगम अधिकारी आर.टी.आई. एक्ट को गंभीरता से नहीं लेते तथा जानकारी मांगने वाले को गलत व अधूरी जानकारी देकर गुमराह किया जा रहा है। जिसके चलते निगम पर काबिज पक्ष और सत्तापक्ष के बीच खटास और बढ़ती जा रही है तथा इस खींचतान में नुकसान शहर निवासियों को उठाना पड़ रहा है। क्या अधूरी जानकारी देकर अधिकारियों ने आर.टी.आई. एक्ट का उलंघन नहीं किया, अगर हां! तो अधूरी जानकारी देकर निगम को जग-हंसाई का केन्द्र बनाने वाले अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? चर्चा तो यहां तक भी है कि निगम में कई अधिकारी तो ऐसे हैं जो ‘जिसके सामने’ बैठते हैं उसी की जी हजूरी करते हैं तथा जनता व विकास कार्यों से उनका दूर-दूर से कोई नाता ही नहीं प्रतीत होता तथा हो न हो ऐसे अधिकारियों (यैस मैन) की कथित मिलीभगत के चलते ही जानकारी छिपाई एवं दबाई जा रही हो, जो जहां नियमों के उलंघन का मामला बन रहा है वहीं जनता के बीच निगम कार्यप्रणाली को लेकर कई तरह के सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि आखिर निगम में चल क्या रहा है?

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