होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। योग साधन आश्रम मॉडल टाउन में रविवारीय सत्संग के दौरान ब्रह्मलीन सदगुरुदेव चमन लाल जी महाराज के संदेश को भक्तों तक पहुंचाते हुए आश्रम के आचार्य चंद्र मोहन अरोड़ा में कहा कि जब हम योगी सतगुरु की शरण में होते हैं तो हमें अपना जीवन उनकी शिक्षाओं के अनुसार व्यतीत करना चाहिए। हमारा जीवन योगानुकूल होना चाहिए। पतंजलि ऋषि के अनुसार तीन चीजों का पालन करना जीवन को योगानुकूल बनाता है। यह तीन चीजें तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणीधान है। इसे क्रिया योग कहते हैं। शरीर मन व बुद्धि को संयम में रख पाना तप है। शरीर रोगी रहता है, मन दुखी व चिंता में रहता है। बुद्धि अज्ञानमय तथा भ्रांतिमय रहती है। शरीर को जब हम योग के साधनों से निरोग रखते हैं तो इसमें मेहनत करनी पड़ती है तथा आलस्य आदि त्यागना पड़ता है। मन को दुखों से मुक्त करने हेतु निरंतर अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य ,अपरिग्रह का कठोरता से पालन करना पड़ता है।
बुद्धि को अज्ञान व भ्रांति से मुक्त रखने हेतु बुरी संगत को त्याग कर निरंतर गुरु के पास जाना पड़ता है। इसे तप कहते हैं। मन को इतना शक्तिशाली बनाना है कि वह इंद्रियों को वश में रखे। उन्हें कुपथ पर ना जाने दे। इसे भी तप कहते हैं। भूख प्यास को हर्ष से सहन करना भी तप कहलाता है, इसके लिए हम सप्ताह में 1 दिन व्रत रखें। स्वाध्याय का भाव ऋषि कृत ग्रंथों को पढऩा है। जिससे हमारी बुद्धि को ज्ञान प्राप्त होता है। स्वाध्याय के साथ हमें प्रभु भक्ति भी करनी चाहिए। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। भक्ति के बिना स्वाध्याय में मन नहीं लगता और स्वाध्याय के बिना प्रभु से प्रेम नहीं होता। अपने इष्ट पर अटल विश्वास रखना, उनके स्वरूप को हर समय अपने साथ महसूस करना, उनकी शक्ति में अटूट विश्वास रखना ईश्वर प्रणीधान कहलाता है। इस प्रकार तप, स्वाध्याय व ईश्वर प्रणीधान करने से जीवन योगनुकूल बन जाता है। यह सब ज्ञान योगी सतगुरु के चरणों से प्राप्त होता है।