सावन का पवित्र महीना आदिदेव महादेव भगवान शिव का प्रिय महीना है: रंजन

दातारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। हमारे देश में हर दिन, हर माह खास होता है,आस्था और परंपरा की जननी भारत में ऐसे तो बारहों महीने विशेष हैं लेकिन जब बात सावन की हो तो मन बावरा हो जाता है..आसमान में बदरी छा जाती है..हर तरफ हरियाली नजर आने लगती है मन मयूर नाचने लगता है। ऐसा लगता है मानों प्रकृति ने एक नई अंगडाई ली है। सावन का ये पाक और पवित्र माह ज्ञानार्जन के लिए भी विशेष महत्व रखता है।परम शिव भक्त एवं उद्योगपति मुकेश रंजन ने सावन के सोमवार के अवसर पर गगन जी के टील्ला मन्दिर में सुबह चार बजे शिव पूजन करते हुए  सावन महीने के महत्त्व पर चर्चा करते हुए कहा हमारे जीवन में सुख और शांति का ध्योतक है सावन। सावन में चारों ओर झमाझम बारिश होती है।ऐसा प्रतीत होने लगता है जैसी प्रकृति बोल रही है, गुनगुना रही है,कुछ कहना चाहती है,सुनाना चाहती है।सावन तो एक ऐसा एहसास है जिसे शब्दों में बयान  कर पाना मुश्किल है,सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है इसे।

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गगन जी का टिल्ला में 50फीट ऊँची शिव प्रतिमा स्थापित करवाने वाले मुकेश रंजन ने आगे कहा वहीं दूसरी तरफ कहा जाता है कि आध्यात्म के नजरिये से भी ये पवित्र  महीना अतिविशेष है। धर्मग्रंथों का अध्ययन,सत्संग,भजन का इन दिनो महत्व बढ़ जाता है।मानव जीवन में सुख शांति के लिए हमें पठन पाठन करना चाहिए। धार्मिक नजरिये से समस्त प्रकृति को आदिदेव महादेव भगवान शिव का रुप बताया गया है।यही वजह है कि प्रकृति की पूजा के रुप में पूरे सावन भर भगवान शिव की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। सावन के महीने में अत्यधिक वर्षा होती है। और हर तरफ शिवालय हो या देवालय हर तरफ भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है,और सुख शांति की प्रार्थना की जाती है।


सावन में शिव पूजन क्यों ?  

रंजन ने कहा हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से अमृत के साथ विष भी निकला था।जिसे ग्रहण करने के लिए क्या देव,क्या दानव कोई भी आगे नहीं आया,तब जाकर भगवान शिव ने जगत के कल्याण के लिए विषपान किया।ऐसा कहा जाता है कि जिस माह में महादेव ने विषपान किया था,वो सावन माह था। उन्होंने कहा विषपान करने से भगवान शिव के तन का ताप बढ़ता गया,बढ़ता गया,जिसे शांत करने के लिए देवों ने शीतलता प्रदान की,लेकिन इससे भी शिव की तपन शांत नहीं हुई। स्वयं आशुतोष भगवान शिव ने शीतलता पाने के लिए चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया।जिससे उन्हें शीतलता मिली।वहीं देवराज इंद्र में आदिदेव के ताप को शांत करने के लिए घनघोर वर्षा की जिससे भगवान शिव को शांति और शीतलता मिल सके।इसी घटना के बाद से सावन के माह में शिव जी को प्रसन्न व शीतलता प्रदान करने के लिए जलाभिषेक किया जाता है। 

सावन माह की क्या है विशेषता  

रंजन ने बताया दरअसल सावन के  पवित्र महीने को आदिदेव महादेव भगवान शिव का माह माना जाता है,जिसके पीछे पौराणिक कथा है कि देवी सती ने जब अपने पिता महाराज दक्ष के घर में योगशक्ति से अपने शरीर का त्याग कर दिया था, तब वो शरीर त्यागने से पूर्व भगवान शिव को हर जन्म में अपने पति के रुप में पाने का संकल्प व प्रण किया था।वहीं जब अपने दूसरे जन्म में देवी सति हिमालय और देवी मैना के घर में पार्वति के रुप में जन्म लेती हैं तो अपने यूवावस्था में ही निराहार रहकर कठोर तप और साधना कर भगवान शिव को प्रसन्न करती हैं,जिसके बाद भगवान शिव,भोले भंडारी से विवाह करती है।तभी से सावन का ये पवित्र माह विशेष रुप से भक्तों के लिए फलदायी माना जाने लगा।


शिवालयों में लगती है भक्तों की कतार  

उन्होंने कहा सावन और भगवान शंकर, यानी भक्ति की एक ऐसी अविरल धारा, जहां वातावरण हर हर महादेव और बम बम भोल की गूंज पवित्र हो उठता है और भक्तों कष्टों को दूर करने वाला होता है,यही तो वो पाक महिना है जब सभी प्रकार के मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।ऐसे तो हम सभी जानते हैं कि भगवान शिव की पूजा के लिए सोमवार का दिन विशेष होता है, लेकिन हमारे पौराणिक धर्मग्रंथों में कहा गया है कि महादेव की पूजा-आराधना के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन महाशिवरात्रि,के बाद संपूर्ण सावन माह ही है।क्योंकि भोलेनाथ को सावन यानी श्रावण माह अतिप्रिय है। इस पावन माह में साधक सोमवार का व्रत –उपवास, पूजा पाठ तो करता ही है,साथ ही रुद्राभिषेक,कवच पाठ भी करता है,जिससे विशेष लाभ प्राप्त होता है।हमारे सनातन धर्म संस्कृति में सावन के पवित्र माह में मांसाहार वर्जित बताया गया है।जिसका पालन प्रत्येक सनातनी को अवश्य करना चाहिए ।


सावन में महादेव की पूजा

रंजन ने कहा भारत जैसे विशाल देश में,जहां कण कण में ईश्वर का वास बताया गया है,वहां के सभी शिवालयों में सोमवार के न ही नहीं, हर दिन हर-हर महादेव के जयकारे ही सुनाई देते हैं। सावन यानी श्रावण माह में शिव की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। शिव पूजन का प्रारंभ भक्त महादेव के अभिषेक से करते हैं और क्रमश: दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ने के रस से भगवान शिव का अभिषेक करते हैं।वहीं अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूर्बा, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी पर चढ़ाते हैं,जो कि भगवान शिव को अतिप्रिय है। इसके साथ की भोग स्वरुप भांग धतूरा व श्रीफल भगवान आशुतोष पर चढ़ाते हैं।

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