होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। श्रीमती सरस्वती देवी मैमोरियल एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसायटी की तरफ से भारत सरकार की स्कीम नई-रौशनी (अल्पसंख्यक महिलायों में नेतृत्व विकास प्रशिक्षण) अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालयों के तहत हैंडहोल्डिंग की मीटिंग गाँव तनूली एवम् मरनाईया जिला होशियारपुर में की गई। जिसमें प्रोजेक्ट इंचार्ज पूजा शर्मा ने गांव तनुली में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर पलास्टिक से होने वाले नुक्सान के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आज के मानव ने प्रकृति पर पूर्णत: विजय पा ली है। यह विकास की दृष्टि से तो ठीक है, परंतु ऐसा करके मानव ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार दी है। विज्ञान की मदद से मानव चांद पर भी चला गया है, पर जिस हिसाब से आधुनिकता के नाम पर उसने प्रकृति से छेड़छाड़ की है, उसका खामियाजा तो हम मानवों को ही भुगतना पड़ेगा। अगर समय रहते हम नहीं चेते और पर्यावरण को बचाने के बारे में नहीं सोचा तो, इसके भयंकर परिणाम हो सकते हैं।
पूरे सौर-मंडल में केवल हमारी पृथ्वी पर ही जीवन संभव है। परंतु यह अधिक दिनों तक संभव नहीं है। हमें समय रहते, पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त करके सुरक्षित करना है। पर्यावरण में जितना महत्व मनुष्यों का है, उतना ही अन्य जीव-जन्तुओं का भी। अकेले मानवों के अस्तित्व के लिए भी पेड़-पौधो की उपस्थिति अनिवार्य है। प्राणवायु ऑक्सीजन हमें इन वनस्पतियों के कारण ही मिलती हैं। प्लास्टिक न केवल इंसानो बल्कि प्रकृति और वन्यजीवों के लिए भी खतरनाक है, लेकिन प्लास्टिक के उत्पादों का उपयोग दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण सबसे अहम पर्यावरणीय मुद्दों में से एक बन गया है। एशिया और अफ्रीकी देशों में प्लास्टिक प्रदूषण सबसे अधिक है। यहां कचरा एकत्रित करने की कोई प्रभावी प्रणाली नहीं है। तो वहीं विकसित देशों को भी प्लास्टिक कचरे को एकत्रित करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जिस कारण प्लास्टिक कचरा लगातार बढ़ता जा रहा है। इसमें विशेष रूप से ‘‘सिंगल यूज प्लास्टिक’’ यानी ऐसा प्लास्टिक जिसे केवल एक ही बार उपयोग किया जा सकता है, जैसे प्लास्टिक की थैलियां, बिस्कुट, स्ट्रा नमकीन, दूध, चिप्स, चाकलेट आदि के पैकेट, प्लास्टिक की बोतलें, जो कि काफी सहुलियतनुमा लगती हैं, वे भी शरीर और पर्यावरण के लिए भी खतरनाक हैं। इन्हीं प्लास्टिक का करोड़ों टन कूड़ा रोजाना समुद्र और खुले मैदानों आदि में फेंका जाता है। जिससे समुद्र में जलीय जीवन प्रभावित हो रहा है।
समुद्री जीव मर रहे हैं। कई प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। जमीन की उर्वरता क्षमता निरंतर कम होती जा रही है। वहीं जहां-तहां फैला प्लास्टिक कचरा सीवर और नालियों को चोक करता है, जिससे बरसात में जलभराव का सामना करना पड़ता है। भारत जैसे देश में रोजाना सैंकड़ों आवारा पशुओं की प्लास्टिकयुक्त कचरा खाने से मौत हो रही है, तो वहीं इंसानों के लिए प्लास्टिक कैंसर का भी कारण बन रहा है। इसलिए प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के साथ ही ‘‘सिंगल यूज प्लास्टिक’’पर प्रतिबंध लगाना अनिवार्य हो गया है। इसी प्रकार गांव मरनाईया में प्रोजेक्ट इंचार्ज श्रीमती पूजा शर्मा ने जीवन कौशल के विषय को लेकर जीवन कोशल के बारे में बताया कि “जीवन कौशलों का संबंध पूर्ण कुशलताओं के विकास से है। जो कि छात्रों को सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक एवं व्यावहारिक क्षेत्र में सफल बनाती है। तथा उन्हें सर्वांगीण विकास की ओर अग्रसर करती है।जिससे कि बालक का विकास पूर्ण मानव के रूप में हो। ” जीवन कौशल शिक्षा एक प्रकार का ऐसा कौशल हैं। जिसके अंतर्गत बालक को उचित जीवन निर्वहन करने योग्य एवम जीवन से सम्बंधित क्रिया कलापो को सुव्यवस्थित ढंग से करने की क्षमता विकसित की जाती हैं।जीवन कौशल शिक्षा एक प्रकार की ऐसी शिक्षा हैं। जिसमे बालक को इस प्रकार से दक्ष करना कि वह विषम परिस्थितियों में अपनी योग्यता और बुद्धि के द्वारा समायोजन कर सके। साथ ही साथ मानव जीवन मे ऐसी कुशलाओ को विकसित करना है। जिससे वह एक कुशल नागरिक बन सके।जीवन कौशलों का आत्म तत्व आत्मविश्वास होता है जिसके अभाव में कोई बालक कार्य की योग्यता होते हुए भी कार्य को उचित रूप से संपन्न ने नहीं कर पाता है। इसीलिए जीवन कौशल की शिक्षा द्वारा छात्रों में आत्मविश्वास को भावना को विकसित किया जाता है।