व्यक्ति से समाज और समाज से राष्ट्र का निर्माण होता है: करन आदिया

पूरथला (द स्टैलर न्यूज़)। रिपोर्ट: गौरव मढिय़ा। व्यक्ति से समाज और समाज से राष्ट्र का निर्माण होता है। एक जिम्मेदार व्यक्ति के लिए समाज और राष्ट्र के प्रति भी जिम्मेदारी होती है। अगर इसका निर्वाह नहीं किया जाए तो उन्नत, सुसंस्कृत एवं आदर्श समाज या देश की कल्पना संभव नहीं है। एक अच्छे समाज का निर्माण करने के लिए अपने पारिवारिक दायित्वों के साथ देश और समाज के प्रति दायित्वों को निर्वाह भी पूरी ईमानदारी से करना चाहिए। एक समाज,समुदाय या देश के नागरिक होने के नाते कुछ दायित्वों का पालन व्यक्तिगत रूप से करना चाहिए। ये भारत के नागरिकों के लिए आवश्यक है कि वो वास्तविक अर्थों में आत्मनिर्भर बनें। ये देश के विकास के लिए बहुत आवश्यक है, यह तभी संभव हो सकता है, जब देश में अनुशासित, समय के पाबंद, कर्तव्यपरायण और ईमानदार नागरिक हों। हमें जरूरतमंद लोगों की मदद करनी चाहिए। परिवार एवं आसपास के लोगों से मेलजोल और समन्वय के साथ रहना चाहिए। इससे परिवार और समाज में शांति,आपसी प्रेम और परस्पर विश्वास की रसधार बहेगी। यह बातें समाज सेवक करन आदिया ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कही। उन्होंने कहा कि युवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। युवा देश और समाज को नए शिखर पर ले जाते हैं। युवा देश का वर्तमान हैं,तो भूतकाल और भविष्य के सेतु भी हैं। युवा गहन ऊर्जा और उच्च महत्वाकांक्षाओं से भरे हुए होते हैं। उनकी आंखों में भविष्य के इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं। समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान युवाओं का ही होता है। युवा बेहतर भविष्य के लिए मतदान के माध्यम से ईमानदार और विकासपरक सोच वाले प्रतिनिधि को चुनने और भ्रष्ट लोगों का सामाजिक दुत्कार को पहली सीढ़ी मानते हैं। समाज में तेजी से आ रहे बदलाव के प्रति बड़ी संख्या में युवाओं का नजरिया शार्टकट की बजाय कर्म और श्रम के माध्यम से सफलता प्राप्त करने की ओर होना जरूरी है।

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उन्होंने कहा कि भारत आज प्रगति तो कर रहा है,लेकिन आज के युवा को भारत की प्राचीन सभ्यता और गौरवशाली इतिहास की याद दिलाई जाए तो उसे विश्वास ही नहीं होता। युवा अपना विश्वास खो रहा है और हर समस्या के समाधान के लिए पाश्चात्य संस्कृति का सहारा ले रहा है। मुझे लगता है कि इससे भारत कभी विकसित राष्ट्र नहीं बन सकता, क्योंकि आज की सामाजिक,वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए हो सकता है कि पाश्चात्य संस्कृति कुछ समय के लिए समाधान कर दे, लेकिन वही समाधान एक अंतराल के बाद जटिल समस्या बन जाती है। भारत की युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति और सभ्यता को पहचानना चाहिए और उस पर विश्वास करके समाज को संगठित करने का काम अपने हाथ में लेकर भारत को न केवल विकसित, बल्कि विश्वगुरु बनाना चाहिए। हमारे सामने दो विकसित राष्ट्र-जापान और चीन हैं, जिन्होंने विषम परिस्थितियों में भी अपनी सभ्यता को नहीं भुलाया और आज वे विकसित राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं।

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