पंचायती राज विभाग में खलबली: पुरानी डेट में मटीरियल का प्रस्ताव पारित करवाने की लगी दौड़

पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार क्या बनी की विभागों में कथित मिलीभगत से चलाए गए खेल को छिपाने के हथकंडे शुरु हो गए हैं। ऐसा ही एक विभाग है पंचायती राज विभाग। जिसके बारे में यह मशहूर है कि यहां पर बिना शुल्क दिए कोई काम नहीं होता। कुछ समय पहले भी इसी विभाग से जुड़ी एक जानकारी हमारे पास आई थी और कई अधिकारियों ने उसे दबी जुबान में स्वीकार भी किया था कि गांवों में लगने वाली टाइलों में प्रति टाइल के हिसाब से कमिशन सैट है और जो पंचायत कमिशन नहीं देती उसके कार्य रोक दिए जाते हैं। एक पंचायत द्वारा कमिशन देने से इंकार करने पर उसका कोई काम नहीं हुआ। अब वर्तमान समय में प्राप्त जानकारी अनुसार इस विभाग की कुछ शाखाओं के तहत पड़ते गांवों में काम तो चल रहे हैं तथा मटीरियल भी पहुंच चुका है व पहुंचाया जा रहा है, लेकिन पंचायत द्वारा प्रस्ताव चलवाए जाने जरुरी नहीं समझे गए। जिसके चलते जहां इस मिलीभगत से जुड़ी पंचायतों को भी हाथ पांव की पड़ी हुई है वहीं संबंधित अधिकारी वर्ग भी प्रस्ताव डलवाने के लिए एक गांव से दूसरे गांव की दौड़ लगाकर अपनी गलती और मिलीभगत छिपाने की फिराक में लग चुके हैं।

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सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार प्रदेश में सरकार बदलते ही उक्त विभाग में बैठी काली भेड़ों में पूरी तरह से खलबली मची हुई है और वह अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए अब लीपापोती करने में जुट गई अधिकारियों द्वारा खूब चांदी बटौरी जा चुकी है वहीं कुछेक पंचायतें भी खूब मालमाल हो रही हैं। रही बात ठेकेदार की वह तो अधिकारियों के बंधे होते हैं। क्योंकि काम करने के बाद उन्हें पेमैंट भी तो क्लीयर करवानी होती है। इसलिए उन्हें न चाहते हुए भी अधिकारियों और पंचायत की बात मानने को मजबूर होना पड़ता है।

सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार होशियारपुर की बात करें तो यहां लंबे समय से बैठे कुछेक अधिकारी एवं कर्मचारी खुद को इतने पॉवरफुल बना चुके हैं कि किसी पंचायत द्वारा उनकी शिकायत करने के बावजूद उन्हें बदला जाना जरुरी नहीं समझा गया। जिसके चलते उनकी मनमानियां आज तक जारी हैं। सूत्रों के अनुसार विभाग में बैठी काली भेड़ों को यह चिंता इसलिए भी सता रही है कि नई सरकार बनते ही अकसर बदलियां की जाती हैं और इन्हें डर है कि अगर सब क्लीयर नहीं होगा तो उनका नंबर लग सकता है। इसलिए कुछेक बड़े एवं उनके अधिनस्थ अधिकारी गोलमाल को छिपाने में जुट चुके हैं। इतना ही नहीं यह भी पता चला है कि कुछेक तो छुट्टी लेकर अपने पाप पर पर्दा डालने में व्यस्त बताए जा रहे हैं। अब चर्चा यह है कि उक्त विभाग में बैठी काली भेड़ों से निपटने के लिए मौजूदा सरकार किस ठोस नीति के तहत काम करती है, यह तो समय ही बताएगा।

क्या कौन से अधिकारी हैं और नाम क्या है? फिर वही सवाल। आपको तो पता ही है। मैं आपका दास एक छोटा सा पत्रकार हूं, क्यों मेरी जान के पीछे पड़े रहते हो। जिनके बारे में लिखा है वह समझ गए होंगे। अगर वे सुधरे तो ठीक नहीं तो जनता तो सुधार ही देगी। क्योंकि, अब बदलाव जरुरी है…। मैं तो चला जय राम जी की।

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