आयुष का बल्ला बोलता है: एश्यिा कप दौरान एक ओवर में लगाए थे चार छक्के

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। एक पूर्व अंडर-19 एशिया कप प्रतिभागी जिसका अपना सलाहकार है, जो बहुत कम बोलता है, ने एक उच्च कोटी के स्पिनर, एक तेज गेंदबाज और एक मध्यम तेज गेंदबाज के खिलाफ अपने ही रंग में शानदार प्रहार करते हुए अपने डेब्यू पर ही शानदार अद्र्ध शतक बनाया। जब 22 वर्षीय आयुष बदौनी ने हार्दिक पांड्या को फाइन-लेग बाउंड्री पर धकेला तो उनके बचपन के कोच बलराज कुमार पंजाब में अपने घर पर बैठे मुस्करा रहे थे । उन्होने अपनी विश्वास ना करने वाली बेटी को कुछ ही समय पहले इस शॉट के लिए तैयार रहने के लिए कहा था। ’’जब वह 9 साल का था तब से ही यह शॉट खेलता आ रहा है!’’ मुस्कुराते हुए बल्लू सर ने यह बात आयुष के प्रभावशाली आई.पी.एल डेब्यू के कुछ ही मिनटों बाद कही, जहां उसने गुजरात को एक सुनिश्चित गेम-बदने वाले अद्र्ध शतक के साथ चौंका दिया था। अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप के पूर्व प्रतिभागी की पारी में तीन शॉटस उभर कर सामने आये, तीन शॉट्स जिन्हे फिर से देखने के लिए आयुष द्वारा रात में हॉटस्टार ऐप को टैप करने की पूरी संभावना है।

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वह पांड्या को लैप, राशिद खान की गुगली पर मिडविकेट के उपर से शानदार प्रहार और लॉकी फग्र्यूसन की गति के खिलाफ गाय के कोने पर एक आश्चर्यजनक विस्फोट शॉट। एक उच्च कोटि का स्पिनर, एक तेज गेंदबाज, और एक मध्यम तेज गेंदबाज जो दबाब डालने की कोशिश कर रहा था, को पदार्पण करने वाले द्वारा बुरी तरह से मारा गया था। कोच के दिमाग में अतीत और वर्तमान की कई छवियां उभर आई। भावनात्मक छवि, आयुष के घर पर एक रात, जब वह लगभग 14 साल का था। कोच का कहना है कि अंडर -14 स्तर पर तीन शतकों के बावजूद, लडक़े को अगले साल अंडर-16 के लिए नहीं चुना गया था और वह पूरी तरह टूट गया था। ’’अब क्या करूं सर मैं?’’ लडक़ा फर्श पर पड़ा चिल्ला रहा था। इससे कुछ घंटे पहले देर शाम के प्रशिक्षण के दौरान आयुष ने गेंद को बहुत जोर से मार कर अपना गुस्सा और निराशा निकाली थी।

बलराज ने तब एक शब्द भी नहीं बोला था, और बस गेंद फेंकते रहे। अब आधी रात के वक्त, आयुष ने कहा, ’तीन शतक का कोई भी मुल्य नहीं ?’ कोच बलराज ने कहा, ’तो, सिर्फ शतक ही तुम्हारा जीवन है?’ अब तुम हार मान लोगे? कल से, हम दोहरे शतक के लिए अभ्यास करेंगे। कोच याद करते हुए कहते हैं, आयुष, बिस्तर से उछल, कर बैठ गया और बोला ’दोहरे शतक? ठीक है सर’। जैसा कि धटनाक्रम होता हैं, किसी अन्य खिलाड़ी के चोटिल होने से आयुष को एक खेलने का मौका मिल सकता था। उसे रोहतक में हरियाणा के खिलाय यह मौका मिला। पिच बल्लेबाजी के लिए उपयोगी नहीं थी, उसने क्या किया? एक दोहरा शतक ठोका ! अब उसे कौन रोक सकता था? वह अब उस पल की छवि दिमाग में लाते हैं जब आयुष आउट हो गया। ’उसके पिता ने लगभग तुरंत फोन किया और कहा, क्या आपको नहीं लगता कि उसे नॉट आउट रहना चाहिए था?’ मैंने उससे कहा, ’नहीं नहीं’। आपका बेटा इस तरह की क्रिकेट नहीं खेलता है। वह हमेशा टीम के लिए खेलता है। नॉट आउट का क्या फायदा है? उसकी जगह एक चौका या छक्का बेहतर होता। ’क्या आप जानते हैं कि उसने बांग्लादेश के ढाका में एशिया कप के दौरान भारत अंडर-19 के लिए खेलते हुए एक ही ओवर में चार छक्के लगाए थे?’ अतीत के एक साक्षात्कार में आयुष ने इस बारे में बात की थी कि कैसे उनके दिमाग में एक समय एक ओवर में छह छक्के लगाने की बात आई थी, लेकिन एक चौके के रूप में सीमा पार कर गया। ऐसा लग सकता है कि मैं उससे बारे में बहुत बड़ा चढ़ा कर बात कर रहा हूं लेकिन उसके पास आईपीएल और उससे बाद भी ऐसा करने की क्षमता है। वह एक ही ओवर में भी 20-25 रन बना सकता है। बस थोड़ा इंतजार करो और देखो।

भारतीय क्रिकेट बल्लू सर जैसे पात्रों से भरा हुआ है, जो उन करीब-करीब गुमनाम कोच हैं जो सभी चुपचाप कड़ी मेहनत करते रहते है। हार्दिक पांड्या के पास बड़ौदा में एक है, मयंक अग्रवाल के पास बैंगलोर में एक है और वे अभी भी प्रशिक्षण और सलाह लेने के लिए उनकी तरफ रुख करते हैं। ’मुझे याद है कि हमारा रिश्ता एक दिन बदल गया जब उसके पिता ने मुझे घर बुलाया।’ आयुष का मध्यम वर्गीय घर स्कूल के ठीक सामने था और मैं पहले से ही उसके पिता से कहता आ रहा था कि उनके बेटे के अंदर क्रिकेट में बड़ा बनाने की चिंगारी है। वह कहते रहते थे कि हम सिर्फ एक मध्यम वर्गीय परिवार हैं। उनकी मां, एक शिक्षक, चाहती थीं कि आयुष पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करें। उन्हें यकीन नहीं था कि उनका छोटा सा बच्चा क्रिकेट के सिस्टम में कैसे घुस पायेगा। यहां तक कि सपनों को भी समझदार होना चाहिए, आप हम में से कई भारतीयों के लिए देखते हैं। लेकिन बलराज का कहना है कि मुझे उसकी काबलियत पर पूरा यकीन था। आमतौर पर युवा बच्चे सचिन, द्रविड़ या किसी अन्य बड़े खिलाड़ी की नकल करते हैं। लेकिन आयुष शुरू से ही एक असली था। और उसकी टाईमिंग बहुत अच्छी थी। जब उनके पिता अभी भी आश्वस्त नहीं थे और यह भी सोच रहे थे कि स्कूल में इतने कम समय के अभ्यास से क्या हासिल होने वाला है, तो बलराज ने छत पर एक पिच बनाई। केवल सीमेंट ट्रैक, मैंने दीवारों के चारों ओर जाल लगा दिए और हर दिन स्कूल के बाद, हम घंटों वहां पर समय बिताते। अक्सर मैं उनके घर पर ही सोता था और मैंने उसके पिता से कहा कि मेरे पंजाब लौट जाने के बाद भी गेंदबाजी करते रहना।

जैसे आयुष बड़ा होता गया और क्रिकेट के प्रति अधिक गंभीर होता गया, उसने प्रसिद्ध कोच तारिक सिन्हा की सोनेट क्रिकेट अकादमी में क्रिकेट कोचिंग लेनी शुरू कर दी और साथ ही बलराज के संपर्क में भी रहा। आयुष ज्यादा बात नहीं करता है और ना ही मुस्कुराता है! यहां तक कि तारिक सिन्हा सर ने भी एक बार मुझसे कहा था, बल्लू, ये अपनी मर्जी का राजा है (वह वही करता है जो वह चाहता है!) यहां तक कि उसकी आंटियां भी मुझसे पूछती है, ’वह हमसे अधिक बात क्यों नहीं करता है!’ यह सच है और मुझे विश्वास है कि यही चीज उसे आगे तक लेकर जायेगी। उसका ऐसा ही रवैया है। आप इसे जैसा चाहें वैसा कह सकते हैं यां मैं इसे एक विशेष खिलाड़ी के दृढ निश्चय और मानसिकता के रूप में देखता हूं। यह चीज हर किसी के पास यह नहीं होती, उसके पास है। उसने राहुल द्रविड़ से लेकर सिन्हा सर तक कई बड़े नामों के साथ मिलकर काम किया है , और वह उनसे वही लेगा जिसे वह अपने खेल के अनुरूप देखता है। वह दूसरों को खुश करने वालों में से नहीं है, आप जानते हैं कि मेरा क्या मतलब है । अपनी मर्जी का मालिक है, उसे पता है कि उसे क्या है और दृढ निश्चय के साथ ऐसा करता है। अब जब उसे आखिरकार मौका मिल गया है, तो वह निश्चित रूप से इसे दोनो हाथों से लपक लेगा। वह इसे शीर्ष पर ले जाएगा।

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