चंडीगढ़(द स्टैलर न्यूज़)। क्या ऐसा हो सकता है कि राज्य सभा का चुनाव लडऩे वाला व्यक्ति (उम्मीदवार) चुनाव पूर्व उसके द्वारा भरे गए नामांकन फार्म और उसके साथ आवश्यक तौर पर सौंपे जाने वाले चुनावी हलफनामे (एफीडेविट) में उसके नाम के प्रारंभिक भाग अर्थात सरनेम के बिना ही नाम भरे एवं इस कारण चुनाव में निर्वाचित हो जाने के उपरांत उस व्यक्ति का नाम केवल उसके प्रारम्भिक नाम से ही सरकारी गजट में नोटिफाई (अधिसूचित) हो परंतु शपथ लेने से पूर्व वह लिख कर दे कि उसका नाम में बदलाव कर दिया जाए अर्थात उसके प्रारंभिक नाम के स्थान पर उसका पूरा नाम यानि सरनेम के साथ कर दिया जाए। जिस पर राज्य सभा सचिवालय कार्रवाही करते हुए एक आंतरिक सर्कुलर पत्र जारी कर ऐसा कर दे। इसके बाद निर्वाचित व्यक्ति उसके पूरे नाम अर्थात सरनेम के साथ ही राज्य सभा सांसद के तौर पर शपथ ले और बाद में राज्य सभा के आधिकारिक वेबसाइट/ रिकॉर्ड में उस व्यक्ति का पूरा नाम ही राज्य सभा सांसद के तौर पर दर्शाया जाने लगे।
यह रोचक हालांकि महत्वपूर्ण कानूनी प्वाइंट उठाते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बुधवार 4 मई को भारत के उपराष्ट्रपति एम. वैंकेया नायडू, जो उनके पद के कारण राज्य सभा के सभापति हैं, को पत्र लिखा है. हाल ही में पंजाब से आम आदमी पार्टी ( आप) की टिकट पर राज्य सभा के लिए निर्वाचित 5 सासंदो में एक अशोक मित्तल, जो लवली प्रोफैशनल यूनिवर्सिटी के चांसलर (कुलाधिपति) भी हैं, एवं जिन्होंने गत मार्च महीने में राज्य सभा चुनाव के लिए उनके द्वारा भरे गए नामांकन फार्म और उसके साथ सौंपे गए चुनावी हलफनामे में उनका नाम केवल अशोक ही दर्शाया था जिस कारण उसी नाम से ही अर्थात केवल अशोक नाम से ही उन्हें राज्य सभा चुनाव में निर्वाचित घोषित किया गया और रिटर्निंग अधिकारी ( आर. ओ.) द्वारा इसी नाम से इलेक्शन सर्टिफिकेट जारी किया गया. 10 अप्रैल 2022 को केंद्र सरकार के कानून एवं न्याय मंत्रालय के अधीन आने वाले विधायी विभाग द्वारा भारत सरकार के गजट में प्रकाशित दो नोटिफिकेशंस, जो लोक प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की उपयुक्त धाराओं में जारी की गईं, में भी उनका नाम केवल अशोक के तौर पर ही अधिसूचित किया गया।
हेमंत ने बताया कि बीती 2 मई 2022 को जब उन्होंने संसद टीवी पर पंजाब से आप पार्टी के तीन नव निर्वाचित राज्य सभा सांसदों का शपथग्रहण समारोह देखा तो वह हैरान हुए क्योंकि उसमें दूसरे नंबर पर शपथ लेने वाले राज्य सभा सांसद ने केवल अशोक की बजाय अशोक कुमार मित्तल के तौर पर शपथ ली हालांकि उनकी निर्वाचन नोटिफिकेशन में उन्हें केवल अशोक के नाम से निर्वाचित घोषित कर उनका नाम अधिसूचित किया गया था। जब बीती 3 मई की शाम हेमंत ने सबसे पहले यह मुद्दा उठाया, तो उसी रात उन्हें अशोक मित्तल के निजी सचिव का ईमेल प्राप्त हुआ जिसमें गत माह इस विषय पर राज्य सभा सचिवालय द्वारा जारी एक सर्कुलर पत्र संलग्न किया गया था और जिसके साथ यह लिखा गया कि उससे यह मुद्दा स्पष्ट हो जाएगा। जब हेमंत ने उक्त सर्कुलर पत्र देखा, तो उन्हें पता चला कि वह 27 अप्रैल 2022 को राज्य सभा सचिवालय के एक डिप्टी सैक्रेटरी द्वारा जारी किया गया था जिसमें उल्लेख है कि केवल संसदीय पेपर्स ( दस्तावेजों) के संबंध में राज्य सभा सदस्य अशोक के नाम को डा. अशोक कुमार मित्तल के तौर पर उल्लेख किया जाए।
इस सबके बीच हेमंत ने राज्य सभा के सभापति नायडू के साथ साथ उपसभापति हरिवंश, सदन के नेता और केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल, सदन में नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस के मलिकार्जुन खडग़े और राज्य सभा के सैक्रेटरी जनरल को भी उपरोक्त पत्र की कापी भेजी है जिसमें उन्होंने प्रश्न उठाया है कि क्या ऐसा हो सकता है कि किसी राज्य सभा सांसद का निर्वाचन तो उसके प्रारंभिक नाम से भारत सरकार के गजट में केंद्र सरकार के विधायी विभाग द्वारा अधिसूचित कर दिया गया हो परंतु राज्य सभा सचिवालय उस गजट नोटिफिकेशन में उपयुक्त संशोधन करवाए बगैर मात्र एक सर्कुलर पत्र जारी कर राज्य सभा सांसद के नाम में बदलाव कर दे।