आप: मौकाप्रस्तों की बोल रही तूती, छोटे-छोटे काम के लिए तरस रहे टकसाली कार्यकर्ता और नेता

एक समय था जब अन्ना हजारे ने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ी तो एक नए आंदोलन ने जन्म लिया तथा जिन लोगों ने आजादी का संघर्ष देखा था उन्हें गांधी जी द्वारा किए आंदोलन याद आ गए। उस आंदोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी से जुड़ी कार्यकर्ताओं के मन में एक ही ख्वाहिश थी कि जब हमारी सरकार आएगी तो हम क्रांतिकारी बदलाव लाएंगे। लेकिन आज जबकि दिल्ली के बाद पंजाब में आप की सरकार आई तो पार्टी से जुड़े टकसाली कार्यकर्ताओं के सपने चूर-चूर होते नजऱ आने लगे हैं। क्योंकि, दूसरी पार्टियों की तरह ही आप ने भी अधिकतर मौकापरस्तों को पहले पार्टी में शामिल किया और बाद में उन्हें टिकटों से नवाज़ा। इस बार बदलाव की लहर इतनी थी कि ऐके मौकाप्रस्तों को जीत भी मिली और सरकार में ऊंचे पदों पर भी आसीन किया गया। लेकिन उन टकसाली कार्यकर्ताओं का किसी ने हाल पूछना भी जरुरी नहीं समझा। अन्य पार्टी से आकर दिल्ली वालों के करीबी बनने वालों की खूब चांदी हो रही है तथा आम कार्यकर्ता, जो अन्य पार्टियों के कार्यकर्ताओं की तरह दरियां बिछाने का ही काम करता था आज भी कुर्सियां लगने, दरिया बिछाने और भीड़ जमा करने का साधन बना हुआ है।

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आलम ये है कि सरकार आने पर कई काम करने के सपने संजोये बैठे यह कार्यकर्ता इतने मायूस हैं कि इनके कहने पर मोहल्ले की सफाई तो दूर पानी की लीकेज़ तक ठीक करने कोई नहीं पहुंचता तथा अपनी सरकार में इन कार्यकर्ताओं को धरना लगाने की चेतावनी देने के विवश होना पड़ रहा है। दूसरी तरफ सत्ता के नशे में अभी से चूर चंद पदाधिकारी और नेता ऐसे हैं जिनके पास कार्यकर्ता की बात सुनने का भी समय नहीं तथा वे कभी उन्हें एक कार्यालय तो कभी दूसरे कार्यालय मिलने की बात कहकर वहां से कब कहीं और निकल जाते हैं किसी को खबर ही नहीं लगती।

जो लोग एक समय कहते थे झाड़ू तीला-तीला हो गया और कार्यकर्ताओं पर कसते थे तंज वे आप में शामिल होकर दूध पर जमी खा रहे मलाई और झाड़ू के बन गए मालिक। टकसाली कार्यकर्ता पहले भी ठगा और आज भी ठका। पहले भी टिच्चरें और आज भी टिच्चरें।

पार्टी सूत्रों की माने तो हाल ही में संगरुर उपचुनाव में आप को मिली हार को भी कार्यकर्ताओं की अनदेखी का नजीता ही माना जा रही है। क्योंकि, सरकार बनते ही पॉवर क्या हाथ में आई इन्हें सबसे पहले कार्यकर्ता भूला। जनता को प्रलोभन पे प्रलोभन देने के वायदे पूरे करने में व्यस्त सत्ता आसीन नेता भूल बैठे कि जिन कार्यकर्ताओं ने जमीनी स्तर पर इनके लिए काम करके सोशल मीडिया व अन्य साधनों से जनता का आप के समर्थन में माइंड सैट करने में अहम भूमिका निभाई थी वे कार्यकर्ता ही असली रीढ़ हैं व इस रीढ़ को छोड़ पार्टी का कोई अस्तित्व नहीं। पिछली कांग्रेस सरकार के समय में आप के जिन कार्यकर्ताओं व नेताओं ने सत्ताधारियों और अफसरशाही की तानाशाहियों को झेला उनके जख्मों पर मलहम लगाने का ये सुनहरी मौका था। लेकिन आप ने भी चुनाव के समय में अन्य पारंपरिक पार्टियों की तरह ही अन्य पार्टियों से आए नेताओं के सिर टोपी पहनाई और अपनों को दूर कर दिया। भले ही इस जीत को लहर की जीत के रुप में देखा ज रहा है, पर इसके पीछे टकसाली नेताओं व कार्यकर्ताओं द्वारा की गई मेहनत को नजऱअंदाज नहीं किया जा सकता। मौजूदा समय में आलम ये है कि आप कार्यकर्ता छोटे-छोटे काम के लिए आज भी सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने को विवश है और मौकाप्रस्त व उनके चहेते खूब चांदी बटौर रहे हैं।

ये टकसाली वे लोग हैं जिन्होंने राजनीतिक फायदे के लिए पारंपरिक राजनीतिक पार्टियों में जाकर आका-आका करने का खेल नहीं खेला था और एक अच्छे बदलाव के लिए अकेले ही रास्ता तय करते रहे। जब उन्हें अन्य राजनीतिक पार्टियों के विकल्प के रुप में आप मिली थी तो उनके मन में जगी रौशनी ने उन्हें इसके लिए दिल से काम करने की प्रेरणा दी थी। परन्तु आज उन्हें इस बात का दुख है कि जिन बदलावों और सिद्धांतों की बात करते हुए आप ने अपना राजनीतिक सफर शुरु किया था, उसे भी अपने को अनदेखा करके मौकाप्रस्तों के सहारे गाड़ी को धकेलना पड़ेगा। यह किसी एक हलके की बात नहीं है बल्कि लगभग प्रत्येक हलके में आप के टकसाली नेता एवं कार्यकर्ता खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। क्योंकि, सरकार में उनकी कोई सुनवाई नहीं और जो हालात नजऱ आ रहे हैं वे भी कार्यकर्ता के हित में नहीं दिख रहे। राजनीतिक माहिरों की माने तो यदि यही हाल रहा तो 2024 के लोकसभा चुनाव में पंजाब में सबसे बड़ी पार्टी के रुप में सत्ता में आने वाली आप को औंधे बल गिरने से कोई नहीं रोक सकता और संगरुर उपचुनाव को एक उदाहरण के रुप में देखा जा सकता है।

इतना ही नहीं अभी तो सरकार ने अपने मंत्रीपद भी पूरे नहीं किया तथा न जाने कब चेयरमैन एवं अन्य संगठनात्मक ढांचे का विकास होगा। टकसाली नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को डर है कि जिस तरह पार्टी ने विधानसभा चुनाव में टिकटें देने में अपनों को छोड़ अन्य पार्टियों के मौकाप्रस्तों को चुना उसी प्रकार आने वाले समय में भी इनके करीबियों को ही कहीं चेयरमैन या पार्टी में अच्छे पदों पर आसीन न कर दिया जाए। अगर ऐसा होता है तो उस समय होने वाली बगाबत पार्टी के लिए काफी हानिकारक सिद्ध हो सकती है। हालांकि कुछेक टकसाली नेताओं का मानना है कि पार्टी हाईकमांड ने भले ही अन्य पार्टियों से आए लोगों को टिकट दी हो, मगर चेयरमैनियां तो पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को ही दी जाएंगी। अब देखना यह होगा कि आप का भविष्य में क्या स्टैंड रहता है और वे टकसाली कार्यकर्ताओं व नेताओं को मौका देती या फिर मौकाप्रस्तों के करीबियों को अच्छे पदों से नवाजा जाता है।

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