ऋतु परिवर्तन से होने वाले रोगों से बचाते हैं नवरात्रों में रखे व्रत:साध्वी

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होशियारपुर: नवरात्रों के पावन पर्व पर श्री दुर्गा वेल्फेयर सोसायटी पुरहीरां द्वारा धार्मिक कार्यक्रम करवाया गया। जिसमें दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से साध्वी ईश्वरप्रीता भारती ने कहा कि नवरात्र पर्व मनाने के पीछे हमारे ऋषि-मुनियों की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक सोच है। सर्वप्रथम हम देखें, नवरात्रे वर्ष में दो बार आते हंै। दोनों बार ऋतु परिवर्तन के समय। सर्दियां आरम्भ होने से पहले के नवरात्रे शारदीय नवरात्रे कहलाते हैं। ऋतुओं की इस संधिवेला में सम्पूर्ण वातावरण में हलचल मची होती है। प्रकृति अनेकानेक परिवर्तनों के दौर से गुजरती है। आरोग्य शास्त्र के अनुसार इस समय महमारी, ज्वर, शीतला, कफ , खांसी आदि रोगों के होने की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं। अत: खानपान का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले हमारे ऋषिगण इस आवश्यकता से पूर्णत: परिचित थे। यही कारण था कि उन्होंने इन दिनों में फलाहार अथवा सुपाच्य आहार लेने पर बल दिया। इसलिए ही नवरात्रों के दौरान व्रत-उपवास का विधान है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो उपवास का अर्थ मां भगवती के नजदीक बैठना है। ऐसा तभी संभव है जब हम एक श्रोत्रिय ब्रह्यनिष्ठ सद्गुरू के माध्यम से मां भगवती के शाश्वत रूप का दर्शन कर लेंगे। इसके अतिरिक्त साध्वी जी ने बताया कि अष्टमी के दिन छोटी-छोटी कन्याओं को देवी के रूप में पूजा जाता है परन्तु आज उन्ही देवियों के साथ ऐसा अन्याय किया जा रहा है। उन्हें जन्म लेने से पहले ही मां के गर्भ में मौत का ग्रास बना दिया जाता है, जबकि ब्रह्यहत्या से जो पाप लगता है उससे दुगुना पाप गर्भपात करने से लगता है। इस पाप का कोई प्रायश्चित नहीं है। ऐसा करने वालों को अगले जन्म में नि:संतान रहना पड़ता है। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान समाज में कन्या-भ्रूणहत्या व लिंग आधारित पक्षपात की रोकथाम के लिए भरसक प्रयास कर रहा है। इसके अतिरिक्त साध्वी पूनम भारती जी एवं साध्वी श्वेता भारती जी ने भी सुमधुर भेंटों का गायन किया।

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