2020-22 का क्या शोर है? काम तेरे भी होंगे और तेरे भी: न तुम मुझे छेड़ो, न मैं तुम्हें छेड़ूं

meeting-between-two-leader-congress-BJP-virul-charcha-garm.jpg

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। यूं तो राजनीति का मयार दिन-ब-दिन गिरता जा रहा है, मगर होशियारपुर की राजनीति की बात की जाए तो यहां मामला सबसे अलग ही देखने को मिलता है। आलम ये है कि जो कुर्सी किसी की सगी नहीं हुई उसे बचाने के लिए नेता किस कद्र अपने सिद्धांतों से गिर सकते हैं इसकी ज्वलंत उदाहरणें यहां अकसर ही देखने को मिल जाती हैं। अब देखिये न यहां दो नेताओं के बीच अपनी-अपनी कुर्सी को पक्का करने के लिए जो वार्तालाप हुआ वह चर्चा में आते ही दोनों को हाथों पैरों की पड़ी हुई है। आलम ये है कि दोनों में हुई गुप्त बैठक कब चर्चा में बदल गई को लेकर कई प्रकार के सवाल खड़े हो रहे हैं वहीं राजनीतिक गलियारों को चटकारे लेने के लिए नया मामला मिल गया है।

Advertisements

जानकारी अनुसार नगर निगम में काबिज पार्षदों के नेता कहलाने वाले नेता जी और प्रदेश में सत्ता आसीन पार्टी के एक नेता जी के बीच एक फार्म पर भेंटवार्ता दौरान कुछ ऐसी बातें हुई, जिनकी किसी को कानो-कान खबर नहीं लगी। मगर, न जाने कब दोनों की वार्तालाप चर्चा बन गई पता ही नहीं चला। ऐसा भी कयास लगाया जा रहा है कि उस समय या तो दिवारों को भी कान लग गए या फिर कोई अपना इस बात को पचा नहीं सका और उसने अपने आका के समक्ष जाकर सारा वृतांत दे उगला। सूत्रों की मानें तो दोनों नेताओं में अपनी-अपनी कुर्सी बचाने के लिए कुछ समझौते किए और एक दूसरे के खिलाफ बोलने से परहेज करने के साथ-साथ दोनों ने एक दूसरे के काम होते रहने का आश्वासन दिया ताकि कुर्सी को कोई छीन न सके।

meeting-between-two-leader-congress-BJP-virul-charcha-garm.jpg

दोनों में हुई वार्ता को सुनने वाले एक आका भक्त ने सारी बात जब अपने आका को बताई तो उनका भी माथा ठनका और उन्होंने अपनी नाराजगी हाल ही में एक बयान जारी करके जाहिर करके इशारा भी कर दिया कि दाल में अगर कुछ काला हुआ तो उनसे बुरा कोई नहीं। हालांकि उनके बयान को प्रदेश पर काबिज सरकार के खिलाफ कहा जा रहा है, मगर उसकी गहराई कुछ और ही बयान करती है। जिसे लेकर कई प्रकार के चर्चे हैं। आका भक्त ने अपने आका और अपने कुछ अन्य चहेतों को बताया कि किसी प्रकार दोनों नेताओं ने 2020 में मैं तेरे साथ और 2022 में मैं तेरे साथ का अंदरखाते समझौता करके एक दूसरे को पूर्ण सहयोग का आश्वासन दे दिया।

ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि ये बात झूठ हो और किसी ने अपने निजी स्वार्थ के लिए इसे चर्चित कर दिया हो, मगर राजनीति में “कोई किसी का स्थायी दुश्मन नहीं और कोई किसी का स्थायी दोस्त नहीं” की कहावत को भी तो जरा याद कर लेना चाहिए। अब भाई धुआं उठा है तो आग भी तो कहीं न कहीं सुलगी होगी।

रही बात जनता कि तो काम किसी का नहीं हो रहा। इस बात को लेकर निगम की बैठकों में अकसर ही कांग्रेस, अकाली, भाजपा व अन्य पार्टियों से संबंधित पार्षदों को अपना दुखड़ा रोते सुना गया है तथा ये बात हाउस की बैठक तक ही सिमटी न रहकर अकसर ही समाचारपत्रों की सुर्खियां भी बनी है। मगर, भाई हेमं तो कुर्सी से प्यार है, एक बार मिल गई, अब छोडऩा मुश्किल है और मिली वस्तु को लौटाना या छोडऩा वैसे भी राजनीति के असूलों के खिलाफ है।

दूसरी तरफ प्रदेश में काबिज पक्ष के नेता जी की बात की जाए तो उनके यहां किनके काम हो रहे हैं, ये शायद कहने की जरुरत नहीं है। चंद अपने चहेतों (वो भी व्यापार से जुड़े चहेतों) के सिवाये सभी को मि_ी गोली देना उनके हुनर में शामिल है, जिसके चलते लोग व उनके कुछ खासमखास उनसे दूरी बनाने लगे हैं। जिसका खामियाजा निश्चित तौर पर पार्टी को भुगतना पड़े इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।

meeting-between-two-leader-congress-BJP-virul-charcha-garm.jpg

वैसे जो वस्तु बेवफा हो उसका मोह अच्छा नहीं होता। खैर हमारा काम तो है जगाना, अगर कोई न जागे तो इसमें हमारा क्या कसूर, रही बात ये दोनों नेतागण कौन है, ये आप सोचें, क्योंकि, हमारा काम तो चटकारा देना है बाकी असल हालातों तक पहुंचना तो आपका काम है न, “कि मैं झूठ बोलिया, कि मैं कुफूर तोलिया?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here