अनुभवों की पूरी लाइब्रेरी होते हैं ग्रैंड पेरेन्ट्स: डा. धर्मवीर कंडा 

कपूरथला(द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: गौरव मढिय़ा। बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास एवं दादा-दादी नाना-नानी के प्रति सम्मान के लिए केएम किड्स केसल स्कूल द्वारा ग्रैंड पैरेंट्स डे’समारोह का भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ-दादी अम्मा मान जाओ के गाने पर नृत्य से हुआ। बच्चों ने अपने मनमोहक नृत्य के माध्यम से बताया कि दादा-दादी जी को कैसे मनाया जाता है।कार्यक्रम में मौजूद बच्चों ने दादा-दादियों का रूप धारण कर दादा-दादी नाना-नानी व बुजुर्गों का सम्मान करने के लिए जागरूक किया। स्कूल के मैनिजिंग डायरेक्टर डा.धर्मवीर कंडा ने बताया कि समय-समय पर बच्चो को संस्कारो के प्रति जागरूक करने के लिए स्कुल द्वारा ऐसे कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।

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उन्होंने कहा कि किसी भी बच्चे के जीवन में उसके ग्रैंड पेरेन्ट्स यानि दादा दादी या नाना नानी की उपस्थिति उसके लिए रक्षा कवच का काम करती है।फिर ये रक्षा माता पिता की नाराजगी से हो या बड़े भाई बहनों की दादागिरी।उनका होना एक बच्चे के संपूर्ण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।उनके आसपास होने का भी अपना अलग मजा है।वे न केवल अपने अनुभवों से बच्चे को सही गलत की पहचान करने में मदद करते है बल्कि उसके जीवन को अपने प्यार लाड़ से भर देते हैं।वे बच्चों के लिए लाईब्रेरी है और गेम सेंटर भी। उनके टीचर भी है तो उनके सर्पोट सिस्टम भी।वे अनुभवों की खान होते है इसलिए जिदंगी जीने के जो तरीके वो बताते है जो कोई और नहीं बता सकता। उन्होंने कहा की नई पीढ़ियों को अपने दादा-दादी व बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए। वर्तमान एकल परिवार के दौर में भी उनके प्रति सम्मान की भावना जीवंत रहनी चाहिए और उन पर विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि बच्‍चों को संस्कारवान बनाने में घर के बुजुर्गो की बड़ी भूमिका होती है।बाल्यावस्था का समय ऐसा होता है,जिसमें बच्चों में जिस तरह के संस्कार डाल दिए जाते हैं,वैसा ही उनका व्यक्तित्व बन जाता है। ये काम घर के बड़े-बुजुर्ग की कर सकते हैं। बच्‍चों में संस्‍कार भरने वाले दादा-दादी और नाना-नानी हर घर की बुनियाद होते हैं। डा.धर्मवीर कंडा ने कहा कि दादा–दादी ही बच्चों की पहली पाठशाला हैं। छोटे बच्चों के लिए ग्रैंड पैरेंट्स मजबूत धागे होते हैं, जिसके जरिए बच्चे सुंदर रेशे की तरह हो जाते हैं। आज की आधुनिकता के कारण व बढ़ते सोशल मीडिया के प्रति रुझान को देखते हुए छात्र अपने दादा दादी नाना-नानी से अलग होते जा रहे हैं।उन्होंने कहा कि हमारे मानव जीवन में बडे–बुजुर्गों के प्रति आदर, श्रद्धा और स्नेह भावनाओं का बड़ा महत्व है।वह हमारे सुखमय जीवन के मूल स्तंभ हैं।

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