दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से स्थानीय आश्रम गौतम नगर में सतसंग कार्यक्रम किया गया

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से स्थानीय आश्रम गौतम नगर  में सतसंग कार्यक्रम किया गया। जिसमे श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी विज्ञानानंद जी ने इस अवसर पर कहा कि आज अनेक बुराईयां समाज को खोखला कर दिशाहीन कर रही है। आज का शिक्षित वर्ग भी इससे अछुता नहीं है। चहुं और भ्रष्ट प्रवृति के लोगों का ही साम्राज्य नजर आ रहा है। आज का मानव अपने मानवीय मुल्यों का त्याग करता जा रहा है। और मानवीय मुल्यों के पतन के कारण ही आज का इंसान पशुवत आचरण कर रहा है। जिसमें समाज में बढ रहे नशे का बहुत अहम हिस्सा है। आज का युवा वर्ग नशे का आदि होता जा रहा है। जिस कारण वह अपनी विवेकता को खो चुका है।

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और इस कारण वह समाज मेें अनेक असामाजिक घटनाओं को अंजाम दे रहा है। जहां पर एक युवा देश का भविष्य निर्माता है। वह देश की रीढ की हडडी कहलाता है। परन्तु अगर शरीर में रीढ की हडडी ही कमजोर व पंगु हो तो पूरा शरीर ही असहाय व कमजोर हो जाता है। उसी प्रकार अगर युवा पथभ्रष्ट हो अपने दायित्व से विमुख हुआ तो इसका परिणाम अमांगलिक व देशअहित में होगा। स्वामी जी ने कहा कि आज युवा को एक चेतना की आवश्यकता है। जो उसके भीतर ऐसी क्रान्ति का सृजन करे कि वह चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, की तरह अपने देश के लिए मर मिटने का हौंसला अपने  भीतर पैदा कर सके। और स्वामी विवेकानंद, योगानंद परमहंस, स्वामी रामतीर्थ की तरह देश की संस्कृति व आध्यात्मिकता के संदेश को विश्व के कोने कोने में पहुंचा सके।

परन्तु यह किसी बाहरी शिक्षा के द्वारा संभव नहीं होगा। क्योंकि आज प्रत्येक इंसान शिक्षा तो प्राप्त कर रहा है। तत्पश्चात भी वह गलत कार्यों को करता है। क्योंकि वह मन के अधीन व उस शिक्षा के वास्तिविक ज्ञान से अंजान है। और अज्ञान इंसान को हमेंशा पतन की और ही लेकर जाता है। तभी तो हमारे संत भी कहतें है “या विदया सा विमुक्तये”। विद्या वही है जो मुक्ति प्रदान करे और हमारे संत इस विद्या को प्रदान कर दुष्ट व्यक्ति को भी सज्जन बनने का उपाय दे देते है। यह उपाय हमारे शास्त्रों के अनुसार केवल और केवल एक ही है। उस परम तत्व का अपने घट में साक्षात्कार कर लेना जो कि समय के पूर्ण संत की शरण में जाकर ही संभव है। अत: अगर हम चाहते है। कि हमारा देश खुशहाल व संपन्न हो तो हमें भी जरूरत है। उस विद्या को धारण करने की जिसे शास्त्रों में ब्रह्राज्ञान या तत्वज्ञान कहा गया है। जिसके धारण करने के पश्चात हम वास्तव में इंसान बनेगें।

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