कपूरथला (द स्टैलर न्यूज़), गौरव मढ़िया। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान शाखा कपूरथला में रक्षाबंधन के पर्व को समर्पित कार्यक्रम किया गयाl यह कार्यक्रम संस्थान द्वारा चलाए जा रहे प्रकल्प संतुलन-“कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध एक मुहिम” के अंतर्गत किया गया जिसमें अपने विचार व्यक्त करते हुए आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी गुरप्रीत भारती जी ने कहा कि रक्षाबंधन का पर्व रिश्तो एवं पवित्रता के अंदर सर्वश्रेष्ठ पर्व माना जाता है पर्व में सामाजिक दृष्टिकोण से देखें तो एक बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हुई उसकी लंबी उम्र की कामना करती है भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता हैl प्रथम प्रश्न तो यह पैदा होता है जो हमारे समाज में बेटा और बेटी का लिंग अनुपात है यदि वही लिंगानुपात रहा तो एक समस्या पैदा हो जाएगीl बेटियों की कम होती हुई संख्या यह समस्या खड़ी कर देगी की यदि बहन ही नहीं होगी तो भाई की कलाई पर कौन राखी दिव्या ज्योति जागृति संस्थान शाखा कपूरथला में रक्षाबंधन के पर्व को समर्पित कार्यक्रम किया गयाl
यह कार्यक्रम संस्थान द्वारा चलाए जा रहे प्रकल्प संतुलन-“कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध एक मुहिम” के अंतर्गत किया गयाl जिसमें अपने विचार व्यक्त करते हुए आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी गुरप्रीत भारती जी ने कहा कि रक्षाबंधन का पर्व रिश्तो एवं पवित्रता के अंदर सर्वश्रेष्ठ पर्व माना जाता हैl पर्व में सामाजिक दृष्टिकोण से देखें तो एक बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हुई उसकी लंबी उम्र की कामना करती हैl भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है प्रथम प्रश्न तो यह पैदा होता है जो हमारे समाज में बेटा और बेटी का लिंग अनुपात है यदि वही लिंगानुपात रहा तो एक समस्या पैदा हो जाएगी बेटियों की कम होती हुई संख्या यह समस्या खड़ी कर देगी की यदि बहन ही नहीं होगीl तो भाई की कलाई पर कौन कौन उसकी लंबी उम्र की कामना करेगा? कौन समाज में उसकी खुशहाली के लिए प्रार्थना करेगा?बेटी को जन्म देने से आजसमाज डरता क्यों है क्योंकि समाज में फैली हुई को प्रथाएं ;बेटियों में रही संस्कारों की कमी; असुरक्षित भविष्य को देखते हुए बहुत सारे माता-पिता बेटी को जन्म देने से पहले उसकों में ही मार देते हैं के अंदर यह महापाप कहा गया यह समाज की भी तो एक बहुत बड़ी क्षति है बेटा और बेटी दोनों ही समाज का आधार भूत स्तंभ है दोनों में ही संतुलन होना बहुत जरूरी हैl
बेटियों को जन्म देने से डरने की आवश्यकता नहीं है अपितु उनको संस्कार देने की आवश्यकता हैl समाज में लोग बेटियों को बाहरी रूप से संपन्न करने का पूर्णता प्रयास करते हैंl उन्हें जूडो कराटे सीखनेे हैं अच्छी एजुकेशन हैं लेकिन फिर भी समाज में फैली कुर्तियां कभी समाप्त नहीं हो पा रही इसके पीछे क्या कारण है एक ही कारण है मानसिक रूप से शारीरिक रूप से सामाजिक रूप से संपूर्ण हुई बेटियां अभी तक आत्मकक रूप से कमजोर है आवश्यकता है उनको आत्मकक बल प्रदान करने वाले तत्व वीटा सद्गुरु की शरणागति होकर अपनी अंतर चेतना में बैठे हुए ईश्वर का साक्षात्कार करने कीभीतर बैठे हुए ईश्वर से जुड़ी हुईl बेटियां आत्मा का संबल लेकरहर पक्ष से सक्षम होगीl आगे अपने विचार देते हुए साध्वी जी ने कहा इस पर्व पर भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता हैl किंतु वह कहां तक उसकी रक्षा कर पाता है यह पर्व आध्यात्मिकता को भी संजोए हुए हैं जैसे संसार में जीवन यापन करने के लिए शरीर को रिश्तो की आवश्यकता पड़ती हैl
इसी प्रकार से आत्मा को भी इस संसार और इस संसार के आगे और पीछे का जीवन यापन करने के लिए एक मजबूत रिश्ते की आवश्यकता होती है और वह रिश्ता भगवान का होता है जो सदैव साथ रहते हैं संसार के रिश्ते तो फिर भी कहीं ना कहीं छूट जाते हैंl किंतु वह शाश्वत संबंध कभी नहीं छूटता ईश्वर सभी भूत प्राणियों के हृदय में विद्यमान है किंतु फिर भी उनका एहसास नहीं होताl जिसने भी उसे ईश्वर को हृदय से देखने की आकांक्षा रखी उसे अपने जीवन में ब्रह्मा निष्ठक्ष होती है ब्रह्म ज्ञानी सद्गुरु प्राप्त हुए जब उन्होंने व्यक्ति की दिव्य दृष्टि को खोल ईश्वर का साक्षात दर्शन कौन उसकी लंबी उम्र की कामना करेगा कौन समाज में उसकी खुशहाली के लिए प्रार्थना करेगा बेटी को जन्म देने से आज समाज डरता क्यों है क्योंकि समाज में फैली हुई प्रथाएं बेटियों में रही संस्कारों की कमी असुरक्षित भविष्य को देखते हुए आज बहुत सारे माता-पिता बेटी को जन्म देने से पहले उसको कॉक में ही मार देते हैं के अंदर यह महापाप कहा गया
यह समाज की भी तो एक बहुत बड़ी क्षति हैl बेटा और बेटी दोनों ही समाज का आधारभूत स्तंभ है दोनों में ही संतुलन होना बहुत जरूरी है बेटियों को जन्म देने से डरने की आवश्यकता नहीं है अपितु उनको संस्कार देने की आवश्यकता हैl आगे अपने विचार देते हुए साध्वी जी ने कहा इस पर्व पर भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता हैl किंतु वह कहां तक उसकी रक्षा कर पाता हैयह पर्व आध्यात्मिकता को भी संजोए हुए हैंlजैसे संसार में जीवन यापन करने के लिए शरीर को रिश्तो की आवश्यकता बढ़ती हैl इसी प्रकार से आत्मा को भी इस संसार और इस संसार के आगे और पीछे का जीवन यापन करने के लिए एक मजबूत रिश्ते की आवश्यकता होती है और वह रिश्ता भगवान का होता है जो सदैव साथ रहतेl संसार के रिश्ते तो फिर भी कहीं ना कहीं छूट जाते हैं किंतु वह शाश्वत संबंध कभी नहीं छूटता ईश्वर सब सभी भूत प्राणियों के हृदय में विद्यमान है किंतु फिर भी उनका एहसास नहीं होता