माननीय अदालत के आदेशों को लागू करवाना जरुरी नहीं समझ रहे अधिकारी, ठेकेदारों की सरदारी से छिक्के पर नियम

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़), समीर सैनी। एक तरफ सरकार पंजाब की जनता को सुशासन देने के दावे करती नहीं थक रही तो दूसरी तरफ अधिकारी वर्ग एसा है कि वह माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को लागू करवाने में असफल दिखाई दे रहा है। अगर एसा न होता तो माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद हाईवे पर खुले शराब के ठेके कब के 220 मीटर दूरी पर बनवा दिए जाते। लेकिन अधिकारी वर्ग के बार-बार ध्यान में लाए जाने के बावजूद भी उन पर कोई असर नहीं हो रहा। इससे कयास लगाया जा सकता है कि या तो ठेकेदारों की पहुंच अधिकारी वर्ग से बहुत ऊंची है या फिर कथित मिलीभगत के चलते नियमों को ठेंगा दिखाकर सभी तिजोरियां भरने में लगे हुए हैं। जिससे सरकार के नशा रोको अभियान पर भी ग्रहण लगता नज़र आ रहा है।

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इतना ही नहीं यह सारा खेल कैबिनेट मंत्री ब्रमशंकर जिम्पा के गृह जिले में खेला जा रहा है और उन्हें की हलके में हाईवे पर खुले शराब के ठेके सरकार को ठेंगा दिखा रहे हैं। चिंतपूर्णी मार्ग पर और ऊना मार्ग पर हाईवे पर खुले ठेकों की तस्वीरें हम आपके साथ सांझा करते हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि सरकार को शराब कारोबार से प्राप्त होने वाले राजस्व से प्रदेश के कई विकास कार्य करवाए जाते हैं तथा शराब कारोबारियों को कई प्रकार की राहतें भी विभाग द्वारा दी जाती हैं, लेकिन शराब पालिसी एवं माननीय अदालत के आदेशों के अवहेलना कहां तक जायज है इसका उत्तर किसी के पास नहीं। लेकिन इतना जरुरी है कि अधिकारी वर्ग एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल अपने फर्ज की इतिश्री करने में लगे हुए हैं। वैसे भी अब तो दीपावली के दिन हैं तो एसे में अधिकारियों के पास तो गिफ्ट आदि संभालने से ही फुरसत नहीं होगी तो वह नियम क्या लागू करवाएंगे। विभागीय सूत्रों की माने तो इस संबंधी जिलाधीश के निर्देश प्राप्त होने के बाद भी अधिकारी अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह ईमानदारी से करना जरुरी नहीं समझ रहे। जिससे समझा जा सकता है कि कितना बड़ा झोल हो सकता है इस सारे खेल में कि अधिकारियों को किसी की परवाह नहीं है। बार-बार अधिकारियों से बात करने पर उनका एक ही रटा रटाया जवाब होता है कि इंस्पैक्टर से रिपोर्ट मंगवाई जाएगी और कार्यवाही की जाएगी। लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात यानि पंचां दा का केहा सिर मत्थे, पर नाला उत्थे दा उत्थे। अब देखना यह होगा कि अधिकारी वर्ग माननीय अदालत के आदेशों को लागू करवाने में कितने सजग दिखते हैं या फिर सारा खेल एसे ही चलता रहेगा।

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