वड्डे कम्म सरकारां नूं नाल रख के करिदे हुंदेः भाईजान की बोलती है तूती और सत्ता के नशे की चर्चा

इन दिनों पंजाब में सत्ताधारी पार्टी के नेता, जो किसी और पार्टी के थे पर विधानसभा चुनाव में वह इस पार्टी में आ गए थे, काफी चर्चा में हैं। कारण यह नहीं कि वह लोगों को बिना कारण तंग या परेशान करते हैं, बल्कि उनके इशारे पर कुछ करीबी हैं जो उद्योग शुरु करने वालों, प्रापर्टी का काम करने वालों तथा सस्ते भाव व डिस्पियूटड प्रापर्टी खरीदकर महंगे भाव बेचने वालों को यह कहकर सकते में डाल रहे हैं कि वड्डे कम्म सरकारां नूं नाल रख के करिदे हुंदे, हुण खाओ धक्के। आप समझ ही गए होंगे कि सत्ता का नशा क्या होता है। अगर आप भी कोई बड़ा कारोबार करना चाहते हैं तो आशीर्वाद लेना न भूलें, अन्यथा. .

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लालाजी स्टैलर की चुटकी

हाल ही में कुछ लोगों ने मिलकर एक प्रापर्टी खरीदी, हालांकि जमीन मालिक ने जगह बेची तो कहा कि कब्जा खुद करना होगा। इस पर खरीददारों ने कहा कि वे कर लेंगे आप प्रापर्टी बेचो। प्रापर्टी खरीदने के बाद उन्होंने कब्जा तो कर लिया, लेकिन जो उस जगह पर कब्जाधारी था उसने मिलीभगत करके खरीददारों पर मामला दर्ज करवा दिया। इसके बाद बात चली राजीनामे की और मामला रफा दफा करने की। एक पार्टी सत्ताधारी नेता के करीबी के पास गई तो उसने हाथ खड़े करते हुए उऩ्हें नेता जी के एक अन्य करीबी के पास भेज दिया, उसके पास पहुंचने पर उसने नेता जी के रिश्तेदार के पास भेज दिया।

एक के बाद दूसरा व दूसरे के बाद तीसरे के पास जब पहुंचे तो उस महाशय ने यह कहते हुए अपनी ताकत का नमूना दिखा दिया कि, तुहानूं पता नहीं कि वड्डे कम्म सरकारां नूं नाल रख के करिदे हुंदे। यह सुनने  के बाद जो पक्ष सहायता मांगने गया था, जरा सा मुंह लेकर वहां से लौट गया। अब भाई 50-60 लाख की प्रापर्टी 10-15 लाख में खरीदोगे और पंगा पड़ने पर भाईजान के पास जाओगे तो उनका जवाब तो यही होगा न। अब सौदा करने से पहले आशीर्वाद लिया होता तो काम रुकता क्या? अब आगे क्या हुआ इसका इंतजार है।

इतना ही नहीं नेता जी के भाईजान का एक और कारनामा सामने आया है, जिसकी चर्चा भी काफी हो रही है। एक उद्योगपति का कोई काम था, वह भी भटकता हुआ सहायता की आस में नेता जी के पास पहुंच जाता है। इस पर नेता जी ने तो पहले गंभीरता से बात सुनना जरुरी नहीं समझा, अगर बात सुनी भी तो मामला भाईजान के पास भेज दिया। इसके बाद भाईजान ने जो चक्कर चलाया उससे तो बच कर ही रहें, उऩके बोल कि मैं तो समझता हूं पर वो नहीं मानते। इसके बाद उद्योगपति भी जरा सा मुंह लेकर रह गए तथा बाद में सैटिंग कहां तक हुई, इसके बारे में उद्योगपति का कहना है कि छड्डो जी, असी कम्म वी करना भाजी, छड्डो जो हो गया, पर बदलाव बहुत वड्डा आ गया, इह पता लग गिया कि जे वड्डा कम्म करना है तां किसे न किसे नेता दा आशीर्वाद जरुरी आ।
अब आप समझ ही गए होंगे कि आखिर बात किसकी हो रही है और. . . बात करनी क्यों जरुरी हो गई थी। क्या नाम बता दूं। रहने दो भाई मैं तो छोटा सा लिखारी हूं, जिसे शायद कुछ सियासी वो भी नहीं समझते, लेकिन सच्च लिखने की हिम्मत आप सभी का हौंसला दे देता है तो लिख देते हैं। आगे आप सभी मेरे से ज्यादा समझदार हैं। मुझे दें इजाजत, जय राम जी की।

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