हमीरपुर (द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: रजनीश शर्मा। अक्सर आपके मन में अपने हिमाचल के लिए देवभूमि का संबोधन सुनते ही मन में यह विचार अवश्य ही आया होगा कि भूमि तो सब जगह एक जैसी है फिर इसे देवभूमि क्यूं कहा जाता है ? जहाँ तक देवस्थानों एवं मंदिरों की बात है , तो ये तो पूरे भारत में भी हैं ढ्ढ वास्तव में पौराणिक ग्रंथों में यहां ऋषि मुनियों की तपस्थली एवं देवताओं के निवास स्थान का उल्लेख मिलता है। इसके साथ यहां के लोगों ने एक ऐसे समाज का निर्माण किया जहां करुणा,सम्मान,एक दूसरे के प्रति परस्पर सहयोग की भावना एवं प्यार है। जहां के लोगों की सरलता, मेहनत, इमानदारी और सच्चाई की मिसाल पूरे भारत में दी जाती है जिसके चलते इसे देवभूमि का दजऱ्ा मिला है। लेकिन आज इसी देवभूमि की साख अपनी युवा पीढ़ी में बढ़ते नशे के प्रचलन से अब दिनोंदिन खतरे में पड़ती जा रही है,जो हम सब के लिए चिंता का विषय है। युवा देश की रीढ़ होते हैं, जिन्हें समाज और राष्ट्र के पुनर्निर्माण में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होती है। मगर अफसोस आज का युवा लक्ष्यहीन बनकर कई नशों की लत में फंसता जा रहा है। स्कूल, कालेज के छात्रों के लिए शराब, कोकीन, चरस, गांजा, अफीम और चिट्टे का सेवन करना आम बात हो गई है। हिमाचल पुलिस की एक रिपोर्ट के अनुसार नशे के मामलों में प्रदेश, देशभर में दूसरे नंबर पर पहुंच गया है ढ्ढयहाँ की कुल जनसंख्या में से 0.24 प्रतिशत आबादी नशे की चपेट में आ चुकी है ढ्ढ एक सर्वे के अनुसार, प्रदेश में करीब 2 लाख युवा ड्रग के आदी हैं। जिसमें लड़कियों की संख्या भी अच्छी खासी है। ये स्थिति एक बड़े खतरे की ओर इशारा कर रही है कि अगर समय रहते सरेआम बेचे जा रहे इस जहर पर सख्त प्रतिबंध न लगाया गया, तो आने वाली नई पीढिय़ां ही तबाह हो जाएंगी। अब प्रश्न यह उठना लाजिमी है कि आखिर नशा मुक्त समाज का लक्ष्य कैसे हासिल किया जा सकता है? इसका सीधा सा उत्तर है कठोर कानून,सामाजिक जागरूकता, स्वंय की इच्छाशक्ति एवं परिवार का सहयोग अगर नशा करने वाले की इच्छा शक्ति मजबूत होगी, तभी वह अपनी इस बुरी आदत को छोड़ सकता है विशेषज्ञों की मानें तो इस दौरान सबसे जरूरी चीज घर का सहारा होता है। अगर रिश्तेदार लगातार लत से जूझ रहे व्यक्ति को ताना देते रहेंगे तो उसका किसी भी तरह के नशे को छोडऩा मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में परिवार उसका नैतिक समर्थन करके उसके मनोबल को बढ़ाये तो वह इस बुराई से बाहर आ सकता है। इस पुण्य काम में समाज को भी आगे आकर अपनी सक्रिय भूमिका निभानी होगी। समय की मांग है कि हम सब अपनी सोच बदलते हुए यह सुनिश्चित करें कि इलाके में न कोई अपना, न कोई अन्य व्यक्ति नशा ला सके, न उसे बेच सके और न ही उसका प्रयोग कर सके। जहां नशे पर पूर्ण अंकुश लगाने के लिए नई पीढ़ी को अच्छे संस्कार देने की जरूरत है, वहीं सरकार,परिवार, समाज और स्कूल सभी को मिलकर नशे से युवाओं को बचाने में हर संभव कोशिश करनी होगी। विद्यार्थियों पर शिक्षकों का बहुत प्रभाव होता है, इसलिए वे भी बच्चों की चेतना जागृत करके उन्हें नशे की बुराइयों के प्रति सचेत करें। स्कूल की हर कक्षा के पाठ्यक्रम में मादक पदार्थों, इनके दुष्प्रभावों व अन्य महत्त्वपूर्ण कानून के प्रावधानों से संबधित मात्र एक अध्याय शामिल करने से स्कूल स्तर पर ही बच्चों को इस सामाजिक बुराई के बारे में जानकारी हासिल हो सकती है जिससे आने वाली पीढिय़ों के भविष्य को सुरक्षित किया जा सकता है। शिक्षा विभाग एवं भारत स्काउट गाइड हिमाचल प्रदेश द्वारा नशे के विरुद्ध चलाया जा रहा निश्चय प्रोजेक्ट भी एक सराहनीय कदम है और इसी तरह के जागरूकता अभियान लगातार चलायें जाएं तो निश्चित तौर पर देवभूमि सही मायने में देवभूमि साबित होगी क्यूंकि नशे के विरुद्ध यह एक ऐसा युद्ध है जिसमें विजय भारत के उज्जवल भविष्य की नींव डालेगी।
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