सद्गुरू ही केवल मात्र सच्चा सहारा है अन्य कोई नहीं: साध्वी श्वेता भारती

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़),रिपोर्ट: गुरजीत सोनू। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के स्थानीय आश्रम गौतम नगर में सप्ताहिक धार्मिक कार्यक्रम करवाया गया। कार्यक्रम की शुरूआत भजनों के द्वारा की गई। अपने प्रवचनों में श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी श्वेता भारती जी ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि हम अक्सर देखते है कि एक इंसान अपने जीवन में बहुत से लोगों एवं चीजो पर निर्भर रहता है। जैसे कि हमारे मित्र, हमारे रिश्तेदार या अगर बात करें तो उनकी जिनके पास आज अधिकार है। यहां तक कि आज हम दवाईयां व तकनीकी शिक्षा के भी गुलाम है। ज्यादातर मसलों पर हम अपनी तीव्र बुद्धि एवं खूबियों पर निर्भर रहते है। जब कभी भी हम अपने जीवन में विपरीत परिस्थितियों से गुजरते है तो अक्सर हमारे यह संसारिक रिश्ते नाते बेअसर दिखाई पड़ते है।

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तब हम एक ऐसे सहारे की खोज करते है जो महान एवं सर्वश्रेष्ठ हो। पर कही न कही हम उस महान, सर्वशक्तिमान परमात्मा को भूल जाते जिनके सहारे यह संपूर्ण सृष्टि चल रही है। जो कि सारे संसार को मात्र अपनी इच्छा से चला रहे है और सभी के सहायक है। वह केवल परमात्मा ही है जो मात्र सांत्वना नही देते अपितु जटिल से जटिल समस्या का समाधान भी देते है। वह समय समय पर अपने संदेशवाहकों भाव संतो महापुरूषों को इस धरा धाम पर भेजते हैै।
अब प्रश्न पैदा होता है कि वह सद्गुरू क्या है? और किस उदेश्य कि पूर्ति के लिए उन्होंने इस धरा पर जन्म लिया है? यह सब हम इस साधारण बुद्धि के द्वारा नही समझ सकते। इसके लिए हमें सद्गुरू द्वारा प्रदत ब्रह्मज्ञान यानि ईश्वरीय ज्ञान में गोता लगाना पड़ेगा। प्रकाश रूप परमात्मा का अपने शरीर के भीतर प्रत्यक्ष दर्शन कर लेना ही ब्रह्मज्ञान कहलाता है।

जब एक शिष्य ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करता है तो उसके द्वारा हासिल सारी दुनियावी शिक्षा का मात्र द्वितीय स्थान रह जाता है। इसलिए एक सद्गुरू की महत्वता शिष्य के लिए अति अनिवार्य है। उदाहरण के तौर पर जब द्रोपदी भरी सभा में निवस्त्र हो रही थी जब उसके पांचों पति असहाय जान पड़ते तब उसने अपने अंत:करण से अपने प्रभु श्री कृष्ण जी को पुकारा जो उस समय के पूर्ण सद्गुरू भी थे व उसकी रक्षा हुई। इसलिए हमें सद् गुरू को अपने जीवन में धारण कर उन पर पूर्ण विश्वास करना चाहिए। अगर हम महान एवं दिव्य कर्म की बात करें तो गुरू शिष्य के संबंध को आत्मसात करना ही महान एवं दिव्य कर्म है। जब हम ऐसा करेंगे तो वह अवश्य ही हमारे मार्ग में आने वाली सभी मुश्किलों को दूर करेगें। और तब ही हम समझ पएंगे कि सद्गुरू ही केवल मात्र सच्चा सहारा है व अन्य कोई नहीं।

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