हर क्षेत्र के सफल व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं शिक्षक: स्वीन सैनी

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़),रिपोर्ट: गुरजीत सोनू। इसमें कोई दो राय नहीं कि बच्चे एक कोरी स्लेट की तरह होते हैं जिस पर बतौर पालक और शिक्षक जो भी अंकित करते हैं, वही उनके भविष्य की नींव होती है। शिक्षक का योगदान व दर्जा हमारे जीवन में लगभग माता पिता के समान ही होता है। अनुशासन, पढ़ाई का महत्त्व और एक नेक इन्सान बनना एक शिक्षक ही सिखाता है। उक्त बातों का प्रगटावा नाईस कंप्यूटरज संचालिका स्वीन सैनी ने करते हुए कहा कि किसी भी प्रतिभा का सही मार्गदर्शन अभिभावक के अलावा एक अच्छा शिक्षक ही कर पाता है। हम जीवन में कोई भी मुकाम हासिल कर किसी भी पद पर किसी ना किसी गुरू के माध्यम से ही पहुंच पाते हैं। टीचर मूल्यांकन करता है, आदेश देता है, निर्णय लेता है और इतिहास गवाह है कि शिक्षक हर क्षेत्र के सफल व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं और यही समाज में शिक्षक के सम्मान की अहम वजह है। सो उसका सर्वज्ञानी होने के साथ एक श्रेष्ठ इंसान होना भी आवश्यक है, इसमें भी कोई संदेह नहीं। इस अटल सच और दुनिया भर के लोगों के अनुभवों के बावजूद भी शिक्षा व शिक्षक के महत्व का मतलब केवल ग्लोबल स्तर पर बहस और विचार-विमर्श, स्टेज के भाषणों या लेखों तक ही सीमित रह जाये, यह सही नहीं है। आज इस खास दिन इस विशिष्ट माध्यम से मैंने अलग-अलग माहौल, विभाग व पद पर तैनात शिक्षकों की रोज़मर्रा की चुनौतियों पर रोशनी डालने का प्रयास किया है।

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बदलते वक्त के साथ शिक्षा का ज़बरदस्त व्यवसायीकरण हुआ है। भले ही शिक्षा स्तर हो, स्कूलों की सरंचना व कार्यप्रणाली हो या बच्चों व अभिभावकों की सोच व व्यवहार हो, उम्मीदें तो शिक्षक से ही रहती हैं। तो शिक्षक को भी इस बदलाव का हिस्सा बनना ही पड़ेगा। आमतौर पर शिक्षक और शिक्षण के संदर्भ में पेशा या पेशेवर इत्यादि शब्दों को उचित नहीं माना जाता। हम अपने बच्चे के लिऐ इंटरनेशनल स्तर की तैयारी चाहते हैं लेकिन शिक्षकों की मानसिकता, विचार और व्यवहार में अपेक्षा गुरूकुल के गुरू जैसी करते हैं। शिक्षक तो गुरू होता है, उसके लिये यह उपाधि मानवीय ही रहे लेकिन उम्मीद हम उससे व्यावसायिक स्तर की रखें तो तालमेल कैसे बैठे? एक शिक्षक का सशक्त होना या प्रौफैशनल होना उसके पेशे की मांग है और उसके दायित्व को लेकर हज़ारों सवाल भी।

बहुत ज़रूरी हैं टीचरज़ ट्रेनिंग व काउंसलिंग प्रोग्रामज़

लेकिन इस चुनौतीपूर्ण काम से जुड़ी उसकी मुश्किलें, परेशानियां और व्यथाएं सुनने के लिऐ किसी के पास वक्त है? बहुत से लोगों से बातचीत के दौरान यह आम सुनने को मिलता है कि सरकारी नौकरियों पर काम कर रहे लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में क्यूं नहीं पढ़ाते? स्तर व अव्यवस्था का अन्तर हम सब समझते हैं लेकिन उसके पीछे के कारणों में राजनीतिक दखल, टीचरज़ पर डयूटी लोकेशन व नॉन टीचिंग जि़म्मेवारियों का अनचाहा दबाव और सबसे बड़ा मानसिक आघात जाति, रसूख या ऐप्रोच के ज़रिए अपने से कमतर हर स्तर पर कमज़ोर व नाकाबिल व्यक्ति का अपने बराबर रैंक पर नियुक्ति या अपने से बेहतर प्रमोशन। उसके अलावा टीचरज़ की मानसिक, सामाजिक, प्रौफैशनल व पर्सनल स्किल डेवेल्पमैंट के लिए कितने प्रयास किए जाते हैं, यह जगजाहिर है। संस्थानों का बिजनेस व पेरेन्टस की अपने बच्चों के लिये अपेक्षाओं के बीच अधिकतर शिक्षक के नज़रिए व हालात को अनदेखा किया जा रहा है।

विश्व के बेहतरीन टीचरज़ में से डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को मैं सर्वोपरि मानती हूं जिनके अनुसार किसी भी क्षेत्र की शिक्षा एक त्रिकोण के तालमेल पर निर्भर है- विद्यार्थी, शिक्षक व अभिभावक, और एक शिक्षाविद, कैरियर काउंसलर होने के साथ एक मां होने के नाते अपनी दोनों बेटियों के सफल व उज्जवल कैरियर के सफर में मैंने यह हमेशा अनुभव भी किया है। लेकिन अक्सर एक ओर हम पेरेन्टस चाहते हैं कि हमारा बच्चा ऑल राउन्डर बने और हर टीचर उसकी आल राउन्ड डैवेल्पमैंट की तरफ ध्यान दे लेकिन बच्चों के गल्त आचरण पर फटकार तो क्या, बच्चों की कमियां तक जानते हुये भी हम शिक्षकों या टेउनरज़ के मुंह से सुनना बर्दाश्त नहीं करते। भारी भरकम डोनेशन व मैनेजमेंट के दबाव में चलने वाले स्कूलों में पेरेंटस शिक्षकों पर हावी रहते हैं और अशिक्षित पेरेंटस के केस में वे इग्नोरेंस व लापरवाही का शिकार हो जाते हैं। इस असमान व्यवहार का सबसे बुरा असर संवाद पर पड़ता है और यही संवाद बच्चों का हित व अहित तय करता है। बदलते शैक्षणिक दौर में शिक्षक के योगदान व कार्यप्रणाली में भी ज़बरदस्त बदलाव आया है और बदलाव सकारात्मक व नकारात्मक दोनों असर लेकर आता है।

जिस प्रकार प्रत्येक प्रक्रिया में गुण-दोष होते हैं, उसी तरह शिक्षा प्रणाली में आये सामाजिक दोष निवारण के लिए दोषारोपण की बजाय समुचित ध्यान व हल ज़रूरी हैं। जिस तरह कम्पीटीशन व माहौल से उपजे अन्य तनावों के रहते बच्चों, युवाओं और कॉर्पोरेट जगत के कर्मियों के लिये काउंसलिंग, मोटीवेशन व लाइफ स्किलज़ के विभिन्न प्रोग्रामज़ शुरू किए गये हैं तो शिक्षकों के लिए भी ऐसे प्रावधान सरकारी व प्राईवेट संस्थानों में निरन्तर होना अति आवश्यक है। अपने संस्थान में मेरा यह पर्सनल अनुभव रहा है कि कर्मी जितना भी षिक्षित या योग्य हो टीचिंग स्किलज़ और लाइफ स्किलज़ के माध्यम से उनके स्तर को बेहतर बनाया जा सकता है। इसी आधार पर हम नाईस संस्थान में पिछले 27 सालों से लगातार अपनी गुणवत्ता को कायम रखे हुए हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन रिज़ल्टस व विद्यार्थियों के कैरियर व सफल जीवन में समुचित योगदान के लिये शिक्षक के मानसिक व शैक्षणिक स्तर के साथ साथ उनके आचरण, संवाद, बौद्धिक व सामान्य ज्ञान का लगातार पॉलिश होते रहना बहुत ज़रूरी है और प्रगति के इस तेज़ दौर में प्रत्येक शिक्षक के स्तर के मुताबिक उसके उपयुक्त सम्मान व योगदान के लिये संपूर्ण टउनिंगज करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है जिसके लिए न केवल संस्थानों या सरकारों का बल्कि शिक्षकों का सतर्क होना भी समय की मांग है। इस शिक्षक दिवस समस्त शिक्षक वर्ग के लिए मेरी अनंत शुभकामनाएं।

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