लाला जी स्टैलर की चुटकी: मीटर लगवाने के नाम पर, कभी बदली तो अब रेत से हो रहे माला-माल

होशियारपुर शहर नगीना आओ एक दिन रहो महीना। काफी पुरानी यह कहावत आज भी पूरी तरह से चरितार्थ हो रही है तथा यहां का वातावरण भी अन्य शहरों से अलग है। यह भी सत्य है कि यहां पर ऐसे-ऐसे नगीनें पाए जाते हैं, जिन्होंने मौकापरस्ती की ऐसी-ऐसी मिसालें पेश की हैं कि वनारस के ठगों का कद भी इनके आगे छोटा पड़ जाए। ऐसे ही नगीनों में शूमार शहर के एक ऐसे शख्स की बात आपको बताने जा रहे हैं जो सत्ता किसी की भी हो, शातिराना ढंग से अपनी गोटियां फिट करने की कोई न कोई जुगत भिड़ा ही लेता है, वैसे तो ऐसे कई हैं, मगर यह सबसे अलग कहे जाते हैं। पहले अकाली-भाजपाई भाई थे तो इन दिनों कांग्रेसी नेताओं से नजदीकीयां खूब चर्चा का विषय बनी हुई हैं। आलम यह है कि कभी एक नेता को भाई व रिश्तेदार बताने वाला यह शख्स इन दिनों सत्ताधारी एक नेताजी का प्रिय बना हुआ है

Advertisements

कमाल तो देखिये सूत्रों के अनुसार भाई साहिब ने कुछ समय पहले एक शोरुम में बिजली का मीटर लगवाने के नाम पर मोटी रकम ऐंठ ली। मीटर लगा कि नहीं, मगर इतना जरुर है कि शोरुम वाले रुपये वापस लेने के लिए आजतक जनाब के चक्कर काट रहे हैं। और तो और यह भी पता चला है कि किसी की बदली के नाम पर भी मोटी रकम ऐंठने वाले इस नेता की तूती ऐसे बोलती है कि प्रिय नेता जी सब जानते हुए भी बगलें झांकने लगते हैं और अपनी साख बचाने के लिए भले ही वह दूरी रखने का दिखावा करते हों, मगर दिल में बसा प्यार कहीं न कहीं उन्हें मदद को हाथ बढ़ाने का इशारा कर ही देता है। जिसके चलते यह नगीना उनके खासमखासों में से एक बने हुए हैं। रेत के खेल को पिछली सरकार को घेरने वाले कांग्रेसियों में से कई ऐसे हैं जो आज खुद रेत से मालामाल हो रहे हैं और जायज-नाजायज तौर पर रेत की होली खूब खेली जा रही है।

बिना पर्ची और रोकटोक के चल रहे इस खेल को देखकर भी अनदेखा करने वाले अधिकारी भी कहीं न कहीं सत्ता सुख के भोगी जरुर बन रहे हैं। अन्यथा बदनामी का डर तो सभी को होता ही है और कार्रवाई न हो ऐसा हो नहीं सकता, क्योंकि मुख्यमंत्री ने खुद इसका कड़ा संज्ञान लिया था। मौजूदा समय में सत्ताधारियों में से कई ऐसे हैं जो सत्तासुख भोगने के लिए तरस रहे हैं और तिकड़म भिड़ाने में माहिर कई ऐसे छुटभैया नेता हैं कि जनता को गुमराह करके और बड़ी-बड़ी बातों से अपना उल्लू सीधा करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। जिन्हें देख कह सकता है कि कौन कहता है कि कांग्रेसियों के काम नहीं हो रहे और अब भी राज अकाली-भाजपा का ही है? कहते हैं न कि जिंदगी जीने का मजा तो सच्चाई को स्वीकार कर सुधरने में है, वर्ना कई आए और चले गए, क्योंकि यह राजनीति कभी किसी की नहीं हुई और राजनेता चाहकर भी सत्ता सुख नहीं भोग पाता. . ऐसी कई उदाहरणें आपके समक्ष हैं. . . और ऐसे नेताओं को अपनी साख बचाने के लिए क्या-क्या करना पड़ रहा है यह भी किसी से छिपा नहीं है. . . क्या मैं झूठ बोलिया? आगे आपकी मर्जी। धन्यवाद।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here