होशियारपुर/हरियाना (द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: प्रीति पराशर। हरियाना में सीवरेज बोर्ड द्वारा करवाए जा रहे कार्य दौरान पीने वाले पानी की पाईप में गंदा पानी मिलने से इलाके में डायरिया फैलने से लोगों में दहशत का माहौल पाया जा रहा है। डायरिया की दस्तक से जहां स्वास्थ्य विभाग द्वारा इमरजैंसी के सभी प्रबंध करने के दावे किए जा रहे हैं और टीमें बनाकर प्रभावित इलाके में भेजे जाने की बात कही जा रही है। मगर हरियाना अस्पताल पर लटके ताले देखकर लगता है नहीं कि विभाग ने किसी भी तरह की इमरजैंसी का प्रबंध किया होगा। ऐसे हालातों में होना तो यह चाहिए था कि हरियाना में स्थित अस्पताल में 24 घंटे इमरजैंसी स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करवाए जाने का कोई प्रबंध होगा। क्योंकि अगर ऐसा होता तो अस्पताल को कम से कम डायरिया पर काबू पाए जाने तक तो खुला रखा जा सकता था। ऐसे में अगर किसी को कोई इमरजैंसी हो जाए तो वह कहां जाएगा इसकी सूचना अंकित तक करना जरुरी नहीं समझी गई।
जहां सीवरेज बोर्ड और नगर परिषद की कथित लापरवाही के चलते इलाके के लोग डायरिया की चपेट में आए वहीं उन्हें सेहत सुविधाएं देने वाले विभाग की लापरवाही भी किसी से कम नहीं आंकी जा रही, क्योंकि गत दिनों होशियारपुर में जब डायरिया का प्रकोप फैला था तो उस समय जिन कमियों को रेखांकित किया गया था, उन्हें दूर करना न तो सरकार ने और न ही सरकारी तंत्र ने जरुरी समझा। हर कोई अपनी जिम्मेदारी का पल्ला दूसरे के सिर झाडक़र अपने फर्ज की इतिश्री करने में लगा हुआ है। वार्ड नंबर 6 में क्षतिग्रस्त हुई पीने वाले पानी की पाईप को अगर समय रहते मुकम्मल तौर पर ठीक करवा दिया जाता तो शायद लोग डायरिया से बच जाते। इतना ही नहीं जब अधिकारियों एवं कर्मियों को पता चल गया था कि समस्या बढ़ सकती है तो उन्होंने इसके लिए समय पर उचित कदम क्यों नहीं उठाए और एकाध दिन के लिए पानी की सप्लाई बंद भी की जा सकती थी ताकि लोग बीमार न पड़ें, ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब अधिकारियों को जनता की कचहरी में देना चाहिए।
और तो और हरियाना अस्पताल में विधायक पवन आदिया के दौरे दौरान पूरी तरह से सतर्क डाक्टरों की टीम और विभाग के दावे तो पूरी तरह से सक्रिय दिखे, मगर बाद में क्या हुआ जो अस्पताल को एक डिस्पैंसरी में बदलते हुए ताले लटका दिए गए। अब देखना यह होगा कि क्या प्रशासन इसकी जांच करवाकर लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई को अमल में लाता है या फिर होशियारपुर प्रकरण की तरह इसे भी खानापूर्ति तक ही सीमित रखा जाता है या फिर खानापूर्ति भी नहीं की जाती।