सदगुरु की दिव्य-आभा आलौकिक व्यक्तित्व से संसार को प्रभावित करने की रखती है क्षमता: माता सुदीक्षा

होशियारपुर(द स्टैलर न्यूज़),रिपोर्ट: मुक्ता वालिया। संत निरंकारी मिशन आध्यात्मिक जागरूकता के माध्यम से शांतिपूर्ण विश्व की परिकल्पना को साकार करने के लिए प्रयासरत है। विश्व के परिदृश्य पर नजऱ डालने पर हम देखते हैं कि भौतिक उपलब्धियों के दम पर प्रगति की बात करने वाला इंसान अनेक श्रेष्ठ उपलब्धियां हासिल करने के बावजूद आध्यात्मिक तौर पर अपने व्यवहार और कार्यों द्वारा आज भी पिछड़ापन ही उजागर कर रहा है। भौतिक सुख-सुविधाओं से युक्त, अति आधुनिक साजो-सामान को जुटाने के बाद भी उसकी जीवनशैली ऐसी बन गई है कि कहीं संतोष व ठहराव नजऱ नहीं आता। इंसान भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए तो यत्नशील रहता है परन्तु यह विडम्बना ही है कि मानव जीवन के परम लक्ष्य परमात्मा की अनुभूति से अनभिज्ञ है। उन्होंने बताया कि 1929 से पेशावर में जब मिशन के संस्थापक बाबा बूटा सिंह जी ने सत्य-ज्ञान के प्रसार का बीड़ा उठाया था तब कुछ ही सज्जन थे, लेकिन धीरे-धीरे यह कारवां बढ़ता गया। मानवता के इस बाग में और महकदार फूल अपनी खुशबू से संसार को महकाते गए।

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उन्होंने कहा कि 1943 में जब दिव्य-अभियान की बागडोर बाबा अवतार सिंह जी के हाथों में आई तो उन्होंने प्रचार की मुहिम को तेज गति प्रदान की। उन्होंने न केवल भारत के दूर-दराज के क्षेत्रों अपितु दूर-देशों में भी सत्य की आवाज को पहुंचाकर मिशन को विश्वव्यापी स्वरूप प्रदान किया।शहंशाह जी ने 1948 में संत निरंकारी मण्डल की स्थापना करके प्रबंधकीय ढांचे को लोकतांत्रिक स्वरूप प्रदान किया। प्रथम कार्यकारिणी ‘सात सितारों’ के नाम से विख्यात हुई। प्रधान लाभ सिंह, डा. देसराज, बाऊ महादेव सिंह, संतोख सिंह, अमर सिंह, जुगल किशोर ‘कबीर’ जी एवं भगत रामचंद जी (दिल्ली) ऐसे सुलझे हुए महात्मा थे जो ‘सत्वचन’ को उन्होंने मिशन की अगुवाई की, किन्तु इस अवधि में जो कार्य किए वे अनुकरणीय एवं ऐतिहासिक रहे। उन्होंने कहा कि 1965 एवं 1973 में आयोजित मसूरी कांफ्रैंस के सामाजिक उत्थान की दिशा में लिए गए ‘सादा विवाह’ एवं ‘नशाबंदी’ ऐसे निर्णय सिद्ध हुए जिन्होंने समाज को नई दिशा प्रदान की। दूर-देशों की कल्याण यात्राओं की विधिवत शुरूआत भी उनके समय से ही हुई है। इस लड़ी में 1967 की विश्व कल्याण-यात्रा विशेष महत्वपूर्ण है। मिशन के इतिहास में संत-समागमों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

यह समागम ही होते हैं जहाँ सदगुरू की शिक्षाओं को अपनाकर भक्तजन आदर्श जीवन की मिसाल पेश करते हैं। समागमों की यह शृंखला 1948 में आरंभ हुई जब पहला समागम दिल्ली के ईदगाह के समीप मैदान में आयोजित किया गया, बाबा अवतार सिंह जी के सुपुत्र सज्जन सिंह जी के जीवन से प्रेरणा लेने के लिए श्रद्धांजलि सत्संग समारोह था किन्तु देशभर से संतजन जिस उत्साह से एकत्रित हुए, इसे दृष्टिगत रखते हुए हर वर्ष ऐसा आयोजन करने का निश्चय किया गया। इस प्रकार यह प्रेरणा दिवस ही संत-समागमों की श्रृंखला की आधारशीला बना। उन्होंने बताया कि 1948 से 1962 तक संत-समागमों की रहनुमाई शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी ने की। पहला समागम ईदगाह रोड़ स्थित मैदान में आयोजित किया गया। दूसरा समागम पंचकुईयां रोड़ तथा तीसरे से लेकर पांचवा समागम अंबेडकर भवन, एम.एम.रोड़ और छठवां समागम संत निरंकारी कालोनी एवं सातवां समागम रेडियो कॉलोनी में आयोजित किया गया। आठवें से 17वें तक सभी समागम संत निरंकारी कॉलोनी में ही संपन्न हुए। 1965 में 18वां समागम रामलीला मैदान में आयोजित किया गया, इसके बाद 1977 तक 18वें से लेकर 30वें समागम तक रामलीला मैदान में ही संपन्न हुए। 1963 से 1979 तक हुए संत समागमों की रहनुमाई युगप्रवर्तक बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज ने की।

1978 का सन्त-समागम इंडिया गेट तथा 1979 का समागम लालकिले के पीछे शान्तिवन व राजघाट के सामने वाले मैदान में आयोजित किया गया। 1979 का समागम बाबा गुरबचन सिंह जी की उपस्थिति में होने वाला अंतिम समागम था। 1978 का वह दौर भी देखा जब पंजाब में अत्यन्त कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा परन्तु सत्य की आवाज मद्धिम नहीं हुई बल्कि और तीव्रता आई। 1980 में पुन: मिशन को गंभीर परिस्थितियों का सामना करना पड़ा और युगप्रवर्तक बाबा गुरबचन सिंह जी का मानवता की खातिर बलिदान हुआ। युगदृष्टा, बाबा हरदेव सिंह जी महाराज सन् 1980 में आध्यात्मिक जागृति के अभियान के पुरोधा बने तो उन्होंने बिना समय गंवाए, सत्य-प्रचार की मुहिम को जन-जन की आवाज बना दिया। देश और दूर-देशों में कल्याण-यात्राओं की शृंखला आरंभ हो गई। 33वां संत-समागम बाबा हरदेव सिंह जी की अगुवाई में हुआ था। 1980 से 1986 के बीच 33वें से लेकर 39वें संत-समागम तक सभी लालकिले के पीछे वाले मैदानों में ही आयोजित होते रहे। 1987 से बुराड़ी रोड स्थित मैदान में समागम होने आरंभ हुए। इस प्रकार 33वें से लेकर 68वें संत-समागम तक सभी युगदृष्टा बाबा हरदेव सिंह जी महाराज की दिव्य रहनुमाई में ही संपन्न हुए और इन समागमों के माध्यम से सदगुरू बाबा हरदेव सिंह जी ने विश्व को शांति व सद्भाव का संदेश दिया। 1987 का समागम ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी वाले मैदान में हुआ, उसके बाद से समागम मैदान (निरंकारी सरोवर के सामने, बुराड़ी रोड) में आयोजित किए गए।

2016 में 13 मई ऐसा दिन आया जब सबके हृदय सम्राट, शांति के अग्रदूत, विश्व को नई दिशा देने वाले, दीवार रहित संसार के प्रणेता, युगदृष्टा बाबा हरदेव सिंह जी महाराज संसार से विदा लेकर अनन्त निरंकार में विलीन हो गए। निश्चित तौर पर यह आघात सहन करने वाला नहीं था लेकिन 17 मई 2016 को जब पूज्य माता सविन्दर जी सदगुरू रूप में प्रकट हुई तो सदगुरू बाबा जी के 8 मई 2016 के न्यूयार्क (अमेरिका) में प्रसारित वह दिव्य वचन मिशन को प्राण देने वाले बने कि मातृ-शक्ति के योगदान युगों-युगों से रहे हैं और जिसके कर्ज कभी चुकाये नहीं जा सकते हैं। 2016 में आयोजित 69वां तथा 2017 में 70वां निरंकारी सन्त-समागम युगनिर्माता, सद्गुरु माता सविन्दर हरदेव जी महाराज की छत्रछाया में हुआ। सदगुरू रूप में प्रकट होने के बाद उन्होंने प्रेम, शान्ति, हनशीलता, सद्भाव, दया व करुणा के गुण अपनाने की प्रेरणा दी। वास्तव में सद्गुरु के वचन वरदान हुआ करते हैं। यह सौभाग्य है कि सद्गुरु रूप में सद्गुरु माता जी ने निरंकारी जगत को उसी धारा में अग्रसर रहने की सीख प्रदान की, जो बाबा हरदेव सिंह जी 36 वर्ष तक देते रहे। 16 जुलाई 2018 को इतिहास ने फिर करवट बदली।

युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी द्वारा जीवन काल में ही बाबा गुरबचन सिंह जी को गुरुगद्दी सौंपने की पर परा को आगे बढ़ाते हुए सद्गुरु माता सविन्दर हरदेव जी ने परमपूज्य सुदीक्षा जी को सद्गुरु की जिम्मेदारी सौंप दी। 17 जुलाई 2018 को एक विशाल सत्संग समारोह में सद्गुरु माता सविन्दर जी ने पूज्य सुदीक्षा जी के मस्तक पर तिलक लगाकर सद्गुरु के पवित्र आसन पर विराजमान किया।तत्पश्चात् 5 अगस्त 2018 को माता सविन्दर जी अपना नश्वर शरीर त्यागकर निरंकार में लीन हो गईं। हालांकि माता सविन्दर जी को सद्गुरु के रूप में सवा दो साल तक का समय ही विश्व का मार्गदर्शन करने का अवसर मिला लेकिन वास्तविक रूप में सद्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी के 36 वर्ष के कार्यकाल में भी आप पूर्णत: उनके साथ मिशन और मानवता का मार्गदर्शन करती रहीं। इस वर्ष 2018 में सन्त निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा (हरियाणा) में आयोजित 71वाँ निरंकारी सन्त समागम सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की रहनुमाई में होने वाला पहला समागम है। वास्तव में सद्गुरु की दिव्य-आभा अपने अलौकिक व्यक्तित्व से संसार को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। यही कारण है कि अवतारी महापुरुषों ने मानव-मात्र को युगों-युगों से अपनी दिव्य छवि से प्रभावित किया है। ऐसा ही दिव्य नज़ारा वर्तमान में भी देखने को मिल रहा है।

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