दवाईयों का गौरखधंधा: मार्जन बेशुमार, टैक्स के नाम से बुखार

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-मार्जन लिमिट न होने से मालामाल हो रहे दवा बिक्रेता- इनकम टैक्स पूरा भरने से फिर भी न जाने क्यों है अधिकतर को परहेज-

नोटबंदी का असर आज लगभग हर इंसान पर दिख रहा है तथा कहीं न कहीं कारोबार भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। अन्य कारोबारियों के साथ-साथ दवाईयों के धंधे से जुड़े लोगों की बात की जाए तो यहां कोई होगा जो ग्राहक को सस्ती दवाईयां उपलब्ध करवाना मानवता के नाते अपना धर्म समझता हो, परन्तु इस काम से जुड़े अधिकतर दुकानदार भले ही वह होल सेल से जुड़ा हो या रिटेल से उसकी यही कोशिश रहती है कि अधिक से अधिक मार्जन और स्कीम के साथ माल बेचा जाए ताकि मोटा मुनाफा हो। परन्तु टैक्स भरते समय न जाने इनकी ईमानदारी कहां चली जाती है। दूसरे कारोबरियों की तरह ही अकाउंटैंट्स और सी.ए. के परामर्श से ऐसा तानाबान बुन दिया जाता है कि मार्जन मनी का बहुत बड़ा गैप ही खर्चों में दिखाकर एक छोटे-मोटे दुकानदार जिनता टैक्स भर दिया जाता है। परन्तु अगर इनके ठाठ देखे जाएं तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि दवाईयों के काम में मार्जन तय न होने से किस प्रकार मोटे मगरमच्छ और मोटी मछलियां गरीब लोगों का खून चूस रही हैं। सूत्रों की मानें तो मार्किट में ऐसी दवाएं भी हैं जो कंपनी से होल सेलर को किसी मोटी स्कीम के साथ 2 रुपये प्रति पत्ते के हिसाब से आती है, परन्तु मार्किट में ग्राहक तक पहुंचते-पहुंचते उसकी कीमत 120 रुपये तक पहुंच जाती है। इतना ही नहीं कई प्रोडक्ट तो ऐसे हैं आते तो मिट्टी के भाव हैं पर उनकी कीमत सोने से भी कीमती वस्तु की तरह वसूली जाती है। ऐसे में मार्जन का गैप कहां खप रहा है इस विषय पर भी पूरी गंभीरता के साथ सोचने की जरुरत है।

इसके अलावा कंपनी द्वारा अपने प्रोजक्ट की अधिक सेल के लिए डाक्टरों को दिए जाने वाले मोटे कमिशन तथा ऊपर से समय-समय पर डाक्टरों तक पहुंचने वाले मोटे गिफ्टों की कीमत भी ग्राहक से ही वसूली जाती है। देखा जाए तो भगवान का दूसरा रूप समझे जाने वाले डाक्टरी प्रोफैशन से जुड़े अधिकतर लोग आज जहां पूरी तरह से व्यवसायिक हो चुके हैं वहीं मरीज को आराम देने वाली दवा बिक्रेता भी अपनी तीजोरियां भरने के लिए 10 रुपये की चीज को 500 रुपये में बेचने से भी परहेज नहीं करते। जहां कुछेक कंपनियों द्वारा अपने प्रोडक्ट्स में मार्जन कम ही रखे गए हैं, मगर अधिकतर दवा कंपनियों द्वारा दुकानदारों और डाक्टरों के माध्यम से उन्हें मोटी कमिशन के चक्रव्यू में फंसा कर खूब मालामाल किया जा रहा है तथा इस गौरखधंधे को रोकने के लिए शायद ही किसी ने ध्यान दिया हो।

आज जब कि नोटबंदी का असर दिखने लगा है वहीं दवाओं से जुड़े धंधों से जुड़े अधिकतर लोगों द्वारा और अपने मैडीकल स्टोर खोल कर बैठे अधिकतर डाक्टरों द्वारा अपना पैसा दवाओं का स्टॉक करके तथा पुरानी डेट में बिल खपा कर करने जैसे खेल भी खेले जा रहे हैं ताकि किसी न किसी तरह से ब्लैक मनी को खपाया जा सके। सूत्रों की मानें तो कोई पुरानी डेट में गाड़ी, घर व प्लाट का सौदा कर रहा है तो कोई पुरानी डेट में बिल काट कर खुद की पेमैंट खुद को करके ब्लैक को वाइट करने की योजनाओं पर काम कर रहा है और इस काम में पैंतरेबाज अकाउंटैंट और सी.ए. उनका साथ देने से भी नहीं कतरा रहे। क्योंकि पुरनी डेट में कटे बिल तथा स्टॉक में की गई हेराफेरी को पकडऩा खाला जी के बाड़े से कम नहीं और इतनी गहराई तक जांच करने के लिए फिर विभाग के पास समय ही कहां होता है?

इनकम टैक्स व टैक्स से जुड़े विभागों द्वारा अलग-अलग स्थानों पर रेड मारने की अफवाहों का बाजार गर्म रहता है, परन्तु अभी तक होशियारपुर व इसके आसपास के क्षेत्र से कभी बड़े कार्रवाई की कोई सच्ची खबर न तो सुनने को मिली और न ही विभाग द्वारा इस संबंधी कुछ बताया गया। ऐसे में यह कहना भी गलत नहीं होगा कि हो सकता है कि ब्लैक को वाइट करने के तरीकों से वि…. की काली भेड़ें भी कहीं न कहीं मिलीभगत करके सबकुछ एडजस्ट करके अपनी जेबें भरने में लगी हैं। मगर, सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार ब्लैक को वाइट में लगे लोगों पर भी नजर रखी जा रही है और जल्द ही एक-एक करके सभी पर कार्रवाई की जा सकती है।

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