इंदौरा (द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: अजय शर्मा। सरकार यहां जनता के भले के लिए बनी है, लेकिन वह जनता के साथ दोहरा रवैया करती है। यह बात कुछ ट्रांस्पोटर के साथ बातचीत में सामने आई जब पत्रकार ने किसी ट्रक के मालिक से पूछा कि आपके ट्रक की मुनियाद कितने वर्ष की है तो उसने बताया कि सरकार दिल्ली के लिए 10 साल, हिमाचल में 12 साल व नेशनल परमिट 15 साल तक ही हमें ट्रक चलाने देती है, उसके बाद हमें यह ट्रक चलाने की अनुमति नहीं है।
अब सवाल यह उठता है कि सरकार ऐसा क्यों करती है। क्या यह गलत नहीं कि जो शख्स 35 लाख रुपये की लागत से ट्रक खरीदेगा और हर साल उसका टैक्स भरेगा और भी कई प्रकार के खर्चे हैं तो क्या वह 35 लाख रुपये 10, 12 या 15 सालों में पूरा कर लेगा शायद नहीं। क्योंकि हर साल इंश्योरेंस, नेशनल टैक्स, स्टेट एंट्री, डीजल गाड़ी लेने पर उसका कर्जा ओर उस पर ब्याज भी कई खर्चे जोकि सामने नहीं आते जोकि ट्रांस्पोर्टर के लिए नुकसानदेह है। लेकिन सरकार इसकी तरफ ध्यान नहीं देती।
सरकार की अपनी गाडिय़ा 20-25 पुरानी व निजी ट्रक ऑपरेटर को सिर्फ 15 साल तक का परमिट
अब सवाल यह उठता है कि सरकार की दोहरी नीति क्या है या दोहरा रवैया कैसा है। इसके सबूत हम सबके सामने है, जिसे हम रोजमर्रा की जिंदगी में सामने देखते हैं, लेकिन कभी उस बारे में ध्यान नहीं देते और वो है सरकार के ऑफिस में चल रहीं उनकी अपनी गाडिय़ां। आप ने लोक निर्माण विभाग, जल विभाग ओर भी कई विभाग हैं जिनकी गाडिय़ा जर्जर स्थिति में लेकिन सरकार उनको बंद न करके इन निजी वाहन चालकों को तंग करती है या उन्हें ऐसा करने पर दंडित करती है जोकि एक प्रकार का दोहरा मापदंड है जिसे कि यह ट्रांस्पोर्टर लाखों रुपये लगाकर खौफ ओर सहमी हुई जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं। क्या यह हिंदोस्तान में रहने वाले ट्रक ऑपरेटरों के लिए गलत ओर बुरा व्यवहार नहीं है। सरकारों द्वारा अगर ऐसा ही चलता रहा तो कौन कल को ट्रांस्पोर्टर बनेगा और कौन माल-ढुलाई का काम करेगा। अगर सरकार ने सही नीति न बनाई तो यह एक दिन आफत बनकर समस्या सामने आएगी।
क्या कहते हैं डमटाल ट्रक यूनियन के प्रधान मस्तराम
मस्तराम ने कहा कि आज जो स्थिति ट्रक ट्रांस्पोर्टर की हो गई है उसमें सरकार की दोहरी नीति है। जिसमें दिल्ली में 10 साल का परमिट मिलता है जोकि एक बहुत बड़ा व्यपार का केंद्र है। यहां हम 10 साल पुरानी गाड़ी नहीं लेकर जा सकते। हिमाचल प्रदेश में 12 साल का परमिट मिलता है जबकि नेशनल परमिट 15 साल का है। उन्होंने सरकार से गुजारिश की है कि है कि हमें हिमाचल में भी 15 साल का परमिट कर दे ताकि हमें कुछ निजात तो मिल सके। उन्होंने सरकार पर दोहरा व्यवहार करने का भी आरोप लगाया कि सरकारी कार्यालयों में तो गाडिय़ा काफी पुरानी भी है उन्हें कैसे यह परमिट दे देते हैं लेकिन हम निजी ट्रांस्पोर्टर को यह सिर्फ 10, 12 और 15 साल का सिर्फ परमिट देते हैं।
हीरा सिंह डमटाल ट्रक यूनियन के पूर्व प्रधान ने कहा कि सरकारें देश की रक्षा के लिए तो 60 साल पुराना मिग चलाती है जबकि हम ट्रक चालक सिर्फ 10, 12 या 15 साल तक ही परमिट ले सकतें है। क्या हम इस देश के नागरिक नहीं है। हम तो एक तरह की कंपनी की नौकरी कर रहे हैं क्योंकि 35 लाख का ट्रक का ऋण लो, फिर उसपर ब्याज, फिर परमिट, फीस, रोड टैक्स, स्टेट टैक्स, टोल प्लाजा फिर ड्राइवर की सैलरी, सर्विस ओर मेंटिनेंस खर्चा आदि हम ट्रांस्पोर्टर को बचता ही क्या है और इसके बाद हमारे 15 साल हो जाते हैं गाड़ी खत्म। सरकार के आदेशानुसार अब हम क्या करेंगे इसके लिए सरकार को सोचना चाहिए।
कर्ण सिंह गुलेरिया ट्रांस्पोटर ने कहा कि सरकार का दोहरा रवैया है क्योंकि सरकारी जो गाडिय़ा हैं उनमें से कई गाडिय़ा 20 से 25 साल पुरानी है और वो चल रही हैं। लेकिन हम ट्रांस्पोर्टर को परमिट सिर्फ 15 साल तक चाहे गाड़ी घर में खड़ी रहे, उसको परमिट नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा कि अगर हमारी गाडिय़ा, ट्रक हैं उनको 10, 12 या 15 साल तक परमिट मिलेगा तो सरकार की पुरानी गाडिय़ा भी बंद होनी चाहिए।
रीता धीमान विधायिका इंदौरा विधानसभा क्षेत्र ने कहा कि मुझे इस बारे में इतना पता नहीं है और अभी आचार संहिता भी लगी हुई है। आचार संहिता के बाद अगर ट्रक चालकों को परमिट के कारण कोई समस्या है तो उनकी इस समस्या को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के समक्ष रखा जाएगा और इस समस्या का समाधान करवाया जाएगा।