होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के स्थानीय आश्रम गौतम नगर में धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें प्रवचन करते हुए श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री रुकमणी भारती जी ने अपने विचारो मेंं कहा कि प्रत्येक मनुष्य पूर्व संस्कार, कर्म को साथ लेकर इस संसार में आता है। हमारे मन या चित में कुछ संस्कार या वृतियां इतनी गहरी हो जाती हैं कि हम उसे आसानी से नहीं बदल सकते। सही मार्ग का ज्ञान होने पर भी हम उस पर दृढ़ सकंल्प के साथ चल नहीं सकते।
आगे साध्वी जी ने कहा कि ऐसी अवस्था द्वापर युग में अर्जुन की होती हैं। स्वयं श्री कृष्ण, युद्धभूमि में गीता का संवाद करते हैं, उसे महान विचार देते हैं। लेकिन फि र भी अर्जुन अपने मानसिक अवसाद से बाहर नहीं निकल पाता। वह कहता है कि मुझे मालूम है आप जो कह रहे हैं वह सत्य है लेकिन मेरा मोह मुझे नहीं उठने दे रहा। मेरी चित-वृतियां मुझे पीछे धकेल रही हैं। युद्ध के लिए कदम आगे बढ़ाने नहीं दे रही। मैं क्या करुं? साध्वी जी ने कहा कि यही स्थिति आज मानव समाज की है। वह अच्छे विचार सुनता है पर उसे कर्म में परिवर्तित नहीं कर पा रहा। सकारात्मक विचारों को मन में बिठा नहीं पा रहा।
अंत में उन्होंने कहा कि जगदगुरु श्री कृष्ण अर्जुन को समाधान देते हैं कि आत्मावानभव-तू इस आत्मा में स्थित हो जा। उसे आत्मज्ञान देते हैं, उसे दिव्य नेत्र प्रदान कर ईश्वर दर्शन करवाते है। यही आत्मज्ञान सभी धार्मिक शास्त्रों का सार है। आज भी जो मनुष्य अपनी चित-वृतियों को काबू में रखना चाहता है भाव मानसिक अवसाद, मोह रुपी राक्षस को खत्म करना चाहता है, उसे भी किसी संत सतगुरु से उसी ज्ञान को प्राप्त करना होगा, यही हमारे जीवन का लक्ष्य हो, तभी हम श्रेष्ठ कार्य कर पांएगे।