होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़),रिपोर्ट: मुक्ता वालिया। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के गौतम नगर स्थित आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें संस्थान के संस्थापक एवं संचालक आशुतोष महाराज के शिष्या साध्वी सुश्री कृष्णा प्रीता भारती ने कहा कि आज अनेक बुराईयां समाज को खोखला कर दिशाहीन कर रही है। आज का शिक्षित वर्ग भी इससे अछुता नहीं है। चहुं और भ्रष्ट प्रवृति के लोगों का ही साम्राज्य नजर आ रहा है। आज का मानव अपने मानवीय मुल्यों का त्याग करता जा रहा है और मानवीय मुल्यों के पतन के कारण ही इंसान पशुवत आचरण कर रहा है। जिसमें समाज में बढ रहे नशे का बहुत अहम हिस्सा है।
आज का युवा वर्ग नशे का आदि होता जा रहा है। जिस कारण वह अपनी विवेकता को खो चुका है और इस कारण वह समाज मेें अनेक असामाजिक घटनाओं को अंजाम दे रहा है। जहां पर एक युवा देश का भविष्य निर्माता है। वह देश की रीढ़ की हडडी कहलाता है। परन्तु अगर शरीर में रीढ की हड्डी ही कमजोर व पंगु हो तो पूरा शरीर ही असहाय व कमजोर हो जाता है। उसी प्रकार अगर युवा पथभ्रष्ट हो अपने दायित्व से विमुख हुआ तो इसका परिणाम अमांगलिक व देशहित में होगा। स्वामी जी ने कहा कि आज युवा को एक चेतना की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि युवाओं को नशों के दुष्प्रभावों से सबक लेना चाहिए तथा नशों को त्याग कर आदर्श जीवन जीने तथा किसी महान व्यक्ति के अपना आदर्श मानकर उसके जीवन के प्रभावों को अपने जीवनकाल में अपनाकर उनके आदर्शों पर चलकर अपना जीवन सही बनाना चाहिए। जो उसके भीतर ऐसी क्रान्ति का सृजन करे कि वह चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, की तरह अपने देश के लिए मर मिटने का हौंसला अपने भीतर पैदा कर सकेऔर स्वामी विवेकानंद, योगानंद परमहंस, स्वामी रामतीर्थ की तरह देश की संस्कृति व आध्यात्मिकता के संदेश को विश्व के कोने कोने में पहुंचा सके। परन्तु यह किसी बाहरी शिक्षा के द्वारा संभव नहीं होगा। क्योंकि प्रत्येक इंसान शिक्षा तो प्राप्त कर रहा है तत्पश्चात भी वह गलत कार्यों को करता है।
उन्होंने कहा कि क्योंकि वह मन के अधीन व उस शिक्षा के वास्तिविक ज्ञान से अंजान है। अज्ञान इंसान को हमेशा पतन की और ही लेकर जाता है। तभी तो हमारे संत भी कहतें है “या विद्या सा विमुक्तये”। विद्या वही है जो मुक्ति प्रदान करे और हमारे संत इस विद्या को प्रदान कर दुष्ट व्यक्ति को भी सज्जन बनने का उपाय दे देते है। यह उपाय हमारे शास्त्रों के अनुसार केवल और केवल एक ही है। उस परम तत्व का अपने घट में साक्षात्कार कर लेना जो कि समय के पूर्ण संत की शरण में जाकर ही संभव है। अत: अगर हम चाहते है कि हमारा देश खुशहाल व संपन्न हो तो हमें भी जरूरत है। उस विद्या को धारण करने की जिसे शास्त्रों में ब्रह्मज्ञान या तत्वज्ञान कहा गया है। जिसके धारण करने के पश्चात हम वास्तव में इंसान बनेगें।