फगवाड़ा उपचुनाव: अब भी खूब चर्चाओं में हैं सोफे पर सोने वाले भाजपा नेता, अरे कहां चले गए!

पंजाब के फगवाड़ा में उपचुनाव हुए भले ही काफी समय बीत गया हो और इन चुनावों में कांग्रेस ने बड़ी जीत भी हासिल की। मगर दूसरी तरफ भाजपा नेताओं की कैंपेन रणनीति और चुनाव प्रचार की कमान संभालने वाले कुछेक बड़े नेताओं की कार्यप्रणाली व उनके द्वारा की गई कमर तोड़ मेहनत के चर्चे अब तक जहां पार्टी कार्यकर्ताओं की जुबान पर हैं वहीं आम लोग भी इनकी जिक्र छेड़ चुटकियां लेते नहीं थक रहे। फगवाड़ा के साथ-साथ कुछेक भाजपा नेताओं की कार्यप्रणाली के किस्से जैसे-जैसे होशियारपुर पहुंच रहे हैं वैसे-वैसे यहां पर भी नेताओं की जगहंसाई होनी शुरु हो चुकी है। चर्चा यह है कि फगवाड़ा चुनाव का जिम्मा जिस बड़े नेता व उनकी टीम के कंधों पर था वे सोफे पर सोने वाले नेता के रुप में इतने मशहूर हो गए कि उनकी पहले की प्रसिद्धी इनके आगे फीकी लगने लगी है। हालांकि एक एक बड़े अधिकारी ने हिदायत जारी की थी कि उक्त नेता व उनकी टीम को बैड वाला कमरा न दिया जाए और वहां पर सिर्फ सोफे ही लगे हों। परन्तु नेता जी और उनकी टीम ने सोफे पर सोने का जो रिकार्ड बनाया उससे भाजपा को बड़ी जीत मिली?

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इतना ही नहीं चर्चा है कि भाजपा प्रत्याशी द्वारा जब नामांकन पत्र भरने थे तो नेता जी अपनी टीम के साथ एैन मौके पर पहुंचे तो संगठन के एक बड़े अधिकारी ने नेता जी से पूछा कि आपको क्या जिम्मेदारी दी गई है और अब भी आने की क्या जरुरत थी तो नेता जी व उनके साथी बगले झांकने लगे। इससे पहले कि अधिकारी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंचता नेता जी उनकी आंखों से औझल हो गए और उनके साथ ही उनकी टीम सदस्य भी अधिकारी के सामने जाने से बचने लगे। नेता जी और उनकी टीम ने इतनी मेहनत से चुनाव प्रचार में अपनी जिम्मेदारी निभाई कि सुबह कैंपेन पर जाने से पहले ही गाड़ी में तेल डलवाने की चिंता में उन्हें व उनकी टीम को रात भर नींद ही नहीं आती थी। पार्टी सूत्रों की माने तो बिना मेहनत किए और मौजूदा स्थिति को गहराई से जाने बिना ही खुद को विजयी बताने वाली भाजपा टीम के अधिकतर सदस्यों ने फील्ड में जाकर जमीनी स्तर पर काम करना भी जरुरी नहीं समझा। जबकि भाजपा की फगवाड़ा में पकड़ किसी से छिपी नहीं। दूसरी तरफ कांग्रेस नेताओं ने भाजपा का किला फतेह करने के लिए ऐसी रणनीति बनाई कि जो-जो भाजपाई थोड़ा सा नाराज दिखा वो कांग्रेसी हो गया। जो भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण बना।

यह भी माना जा रहा है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि फगवाड़ा के बहुत सारे पार्षदों से भाजपा के बड़े नेता जी को आपत्ति थी और उन्हें चुनाव कार्यालय आने से मना कर दिया गया था। भाजपा प्रत्याशी भी बड़े नेताओं के आगे असहाय से दिखे और उन्होंने भी कई नेताओं को कार्यालय आने से मनाही का फरमान तक सुनाने में झिझक महसूस नहीं की। क्योंकि अगर वे कार्यालय आते तो बड़े नेताओं का आशीर्वाद उन्हें कैसे मिलता। लेकिन कार्यकर्ताओं की अनदेखी भाजपा की बेड़ी में उस कील के समान साबित हुई जिसने बेड़ी को डुबाने में सबसे बड़ी भूमिका अदा की। पर कुछ भी कहो, भाजपा नेताओं की कार्यप्रणाली के किस्से इन दिनों चौपालों में हंसी के ठहाके लगवाने में राम बाण साबित हो रहे हैं। अच्छा भाई आज के लिए इतना ही। मैंने जो कहना था कह दिया। कहता भी क्यों नहीं, अब कहलवाने वाले काम करोगे तो चुटकी तो बनती है न। वैसे भी मोदी फैक्टर में जीते नेताओं को न तो जनता का दुखदर्द दिख रहा है और न ही जनता पर अपनी पकड़ कमजोर होती दिखाई दे रही है। जिसका खामियाजा आने वाले समय में पार्टी को बड़े स्तर पर भुगतना पड़ सकता है की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। आशंका क्या जी यकीन के साथ कहा जा सकता है कि पंजाब में अगर ऐसे नेताओं का टोला ही आगे रहेगा तो पार्टी का बंटाधार होने से बड़े नेताओं की घुड़ती भी काम नहीं आएगी।

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