होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। होशियारपुर के डाडा गांव में जंगल के साथ लगती भूमि पर पिछले लंबे समय से असर-रसूख के चलते भू-खनन माफिया द्वारा की जा रही अवैध माइनिंग के मामले में होशियारपुर प्रशासन द्वारा की गई कार्यवाही में असल आरोपियों को बचाने की बू आने लगी है। क्योंकि, इस मामले में जमीन के जिन मालिकों पर मामला दर्ज किया गया है उनमें से अधिकतर यहां रहते ही नहीं और न ही वे वर्तमान में जमीन पर काबिज हैं। परन्तु प्रशासन द्वारा फर्द के आधार पर और कार्यवाही के नाम पर अपने फर्ज की इतिश्री करते हुए आनन-फानन में जमीन के उन मालिकों को भी केस में घसीट लिया गया जो यहां रहते ही नहीं तथा न ही वे खनन वाली जगह पर काबिज हैं। प्रशासन द्वारा की गई कार्यवाही से साफ जाहिर है कि कहीं न कहीं भू-खनन माफिया को बचाने की कोशिशें की जा रही हैं। अब तक प्रशासन ने इस मामले में करीब 13 लोगों पर मामला दर्ज किया है तथा जिस स्थान पर खनन हो रहा था, वहां पर किसकी मशीन लगी थी और कौन खनन करवा रहा था व इसके पीछे किसका हाथ था की छानबीन की जानी जरुरी नहीं समझी गई। परन्तु अन्य राज्यों व विदेश में रहते जमीन के मालिकों पर मामला दर्ज करके प्रशासन द्वारा पीठ थपथपाई जा रही है।
प्रशसनिक कार्यवाही में असल आरोपियों को बचाने के चक्कर में सारी गेम घुमाने की आ रही बू
लेकिन लंबे समय से चली आ रही अवैध माइनिंग में कथित मिलीभगत करने वाले अधिकारियों पर कोई कार्यवाही न किया जाना भी प्रशासनिक कार्यवाही को सवालों के घेरे में लाता है। गांव डाडा का दौरा करने पर पाया गया कि जिस स्थान पर माइनिंग हुई वह दो भागों में विभाजित है तथा कुल रक्बा करीब 4 एकड़ (करीब 2.5 व 1.5 एकड़) बनता है या इससे थोड़ ज्यादा बनता होगा, जिसकी सही जानकारी पैमाइश के बाद ही सामने आएगी। इसके अलावा इसके साथ ही 5 एकड़ और जगह है जहां पर इससे पहले माइनिंग की जा चुकी थी। उक्त जो 2.5 व 2 एकड़ जगह है वह दो हिस्सों में बंटी हुई है और बीच में करीब 2 एकड़ जगह ऐसी है जिस संबंधी केस चलता होने के कारण उसकी पुटाई नहीं हुई, लेकिन जिस तेजी से वहां पर अवैध माइनिंग को अंजाम दिया जा रहा था, बहुत ही कम समय में वह भी भू-खनन माफिया की भेंट चढ़ जाती। उक्त स्थान पर कहीं 10 से 20 फिट तो कहीं 2 से 4 फिट तक मिट्टी उठाई गई थी। खेत लैवलिंग करने के नाम पर चल रहा सारा खेल राजनीतिक एवं प्रशासनिक संरक्षण के बिना संभव ही नहीं, क्योंकि मिट्टी लेकर निकलते टिप्पर और ट्रालियां आखिर सडक़ों से होकर ही गणतव्य तक पहुंचते होंगे।
प्रशासन की कार्यवाही इसलिए भी आनन-फानन में की गई कार्यवाही प्रतीत होती है, क्योंकि प्रशासन ने जिस प्रकार से मामला दर्ज किया गया उससे साफ है कि प्रशासन ने जांच में यह जानने का प्रयास ही नहीं किया कि आखिर उस जगह पर काबिज कौन है और उसकी किसके साथ मिट्टी उठाने की डील हुई थी। अगर ऐसा होता तो सच सबके सामने आ जाता कि जगह किसकी थी और कौन माइनिंग कर रहा था तथा उसके पास परमिट था या नहीं। अगर परमिट होता तो शायद माइनिंग जारी रहती, परन्तु मामला प्रकाश में आते ही माइनिंग बंद कर दी गई, कई सवालों को जन्म देती है। अगर माइनिंग करने वालों के पास परमिट था तो उन्होंने काम क्यों बंद किया तथा भविष्य में अगर वे परमिट दिखा देते हैं तो वे उन्हें किसने जारी किया और कैसे किया यह भी जांच का विषय है। “द स्टैलर न्यूज़” द्वारा 18 नवंबर को इस संबंधी समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया था तथा उसी दिन से प्रशासन द्वारा सख्ती कर दी गई और अवैध माइनिंग पर शिकंजा कर दिया गया। इससे माइनिंग तो बंद हो गई, पर जिन्होंने सरकार को टैक्स एवं फीस के रुप में चूना लगाया उन पर कार्यवाही करने के स्थान पर मामले को घुमाया जाने लगा। एक अन्य स्थान पर हो रही माइनिंग को भी इसी के साथ जोडऩे के प्रयास किए जाने लगे, जबकि जंगलात एवं माइनिंग विभाग के साथ-साथ पुलिस विभाग से जुड़े कई अधिकारियों एवं कर्मियों को लंबे समय से चले आ रहे इस खेल की सारी जानकारी होने के बावजूद वे आंखें मूंद सारा खेल देखते रहे। या फिर यूं भी कहा जा सकता है कि जब सभी को हरे-हरे नोटों की हरियाली की गर्मी मिल जाती हो तो फिर आंखें खोलकर धरती व प्रकृति के प्रति फर्ज को निभा ने की क्या जरुरत है।
दूसरी तरफ कानून के जानकारों एडवोकेट सुखविंदर सिंह संघा, एडवोकेट विकास शर्मा व एडवोकेट एस.के. पराशर के अनुसार इस मामले में एक दिन में ही सच सबके सामने आ जाता, लेकिन प्रशासन ने जांच के नाम पर केस घुमाने का जो प्रयास किया है वह कार्यवाही गले नहीं उतर रही। उनका कहना है कि मौके पर जो भी जमीन पर काबिज था उससे पूछताछ करके सारी कहानी से पर्दा उठाया जा सकता था। परन्तु इस केस में उन लोगों को भी घसीट लिया गया जिनके हिस्स की जमीन इस जमीन से काफी दूर पड़ती है, लेकिन फर्द में नाम (सांझा खाता) होने के कारण वे भी भागीदार बना दिए गए, जिन्हें शायद पता भी नहीं होगा कि गांव में चल क्या रहा है?
कानून के जानकारों के अनुसार डाडा में हुई अवैध माइनिंग करने और करवाने वालों पर की गई कार्यवाही को देखकर “करे कोई-भरे कोई” की कहावत पूरी तरह से चरितार्थ होती नजर आ रही है और ऐसा भी कहा जा सकता है कि जब ऐसे मामले सामने आते हैं तो उन्हें पढक़र या जानकर ही व भुगतभोगी लोग विदेशों में बसने का मन बना लेते हैं तथा अपने बुरे अनुभवों और गलत सिस्टम को कोसते हुए विदेशी धरती पर ही उम्र गुजार देते हैं। मामले के प्रकाश में आने के बाद से अब तक अगर सारे घटनाक्रम पर प्रकाश डाला जाए तो प्रशासन ने जांच के नाम पर जो किया तथा जो हो रहा है उसे किसी भी सूरत में तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता और आगे क्या इसके बारे में भी कुछ नहीं कहा जा सकता। कानून के माहिरों के अनुसार प्रशासनिक कार्यवाही से तो यही प्रतीत हो रहा है कि वह अब भी किसी के भारी दवाब के तहत काम करते हुए न सिर्फ केस को घुमा रहा है बल्कि असल आरोपियों को बचाने में भी भूमिका निभा रहा है। जबकि कैबिनेट मंत्री सुन्दर शाम अरोड़ा ने भी अधिकारियों को सख्त निर्देश जारी किए हुए हैं कि आरोपियों पर सख्त कार्यवाही की जाए।