दिव्यनेत्र द्वारा पाया जा सकता है ब्रह्मस्वरूप भगवान श्रीराम जी का दर्शन: साध्वी रुपेश्वरी

ऊना (द स्टैलर न्यूज़)। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा आयोजित और श्री रामलीला मंदिर कमेटी एवं समस्त प्रभु भक्तों के सहयोग से पांच दिवसीय श्रीराम कथामृत का आयोजन 24 दिसंबर से 28 दिसंबर श्री हनुमान मंदिर, रामनगर, ठठल, में श्रद्धापूर्वक संपन्न हो गया। श्री राम कथा के अंतिम दिवस में सर्व श्री आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी सुश्री रूपेश्वरी भारती जी ने बताया कि राम राज्य को स्थापित करने के लिए राम को जानना होगा। साध्वी जी द्वारा रामराज्य प्रसंग को बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया। समस्त रामायणों के समन्वय से युक्त इस श्री राम कथा में अनेकों ही दिव्य रहस्यों का उद्घाटन किया गया, जिनसे आज लोग पूरी तरह अनभिज्ञ हैं।

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उन्होंने बताया कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के मार्गदर्शन में अयोध्या का राज्य सभी प्रकार से उन्नत था। लेकिन क्या यही रामराज्य की वास्तविक परिभाषा है तो इसका जवाब है नहीं। अगर यही रामराज्य की सही परिभाषा है तो लंका भी तो भौतिक सम्पत्रता, समृद्धि, ऐश्वर्य, सुव्यवस्थित सेना में अग्रणी थी। परंतु फिर भी उसे रामराज्य के समतुल्य नहीं कहा जाता क्योंकि लंका वासी मानसिक स्तर पर पूर्णता अविकसित थे। उनके भीतर आसुरी प्रवृतियों का बोलबाला था। वहां की वायु तक में भी अनीति, अनाचार और पापा की दुर्गंध थी। जहां चारों और भ्रष्टाचार और चरित्रहीनता का ही सम्राज्य फैला हुआ था। राम के राज्य की बात सुनते ही मन में विचार आते हैं कि रामराज्य आज भी होना चाहिये। पर विचारणीय बात है कि राम राज्य की स्थापना होगी कैसे?

– भगवान श्री राम जी के जीवन से अवगत करवाते श्रद्धपूर्वक संपन्न हुई रामकथा

जिस राम के विषय में तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में बड़े विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने अपने राज्य के माध्यम से बता दिया कि एक आदर्श राज्य कैसा होना चाहिये। यहां एक आदर्श राजा शासन कर रहा हो रामे के राज्य में दैहिक। दैविक भौतिक तापा। राम राज नहीं काहुहि ब्यापा।। यह त्रिविध ताप नहीं थे। क्योंकि चलाई स्वधर्म निरत श्रुतिनिति: अर्थात् कि हर इंसान धर्म संयुक्त आचरण करता था। श्रुतिनिति भाव शास्त्रों में जो जीवनचर्या कीनीति थी। जैसा आचरण को लिखा था वैसा ही आचरण था सबका।चारों चरण धर्म जगमांहि-: राम जी के संपूर्ण शासन व्यवस्था का आधार क्या था?

धर्म वह स्वयं मूर्तिमान धर्म है और उनके राज्य में हर जगह पर व्यक्ति, हर वस्तु में एक चीज परिलिक्षत हो रही है धर्म।राम राज्य के अपराधिक प्रवृत्तियां नहीं थी।चलिये। अपराधिक प्रवृतियां का जन्म कहां होता है। ठीक वैसे जैसे आप खड़ा पानी छोड़ देते हैं तो वह सड़ता रहता है। उसक सडऩे मात्र से उसमें मक्खी मच्छर और कीटाणु पनपने लगते हैं।ठीक हमारा मन भी ऐसे है अगर इसमें खड़े पानी की तरह कुछ आसक्तियां और वासनायें शेष रह जायें। हमारे स्वार्थ से पूरित हो तो वही स्वार्थ जनित ऐसी भावनायों का पोषण होता हैं। जो हमारे भीतर विपरितिक मानसिकमायों और आपराधिक प्रवर्तियों को कोई आधार ही नहीं मिलता। इसलिये जो राम राज्य के लक्षण बताये कि वहां श्रुतियों के अनुसार आचरण करने वाले लोग थेयाँतयोंटीका म्हारा और धर्म आचरण में उतरे हुये थे। तब बुराई का स्थान ही कहां?

इसलिए कहा उस राम के राज्य में समाज के सुधार के लिये कोई दण्ड न्याय व्यवस्था की आवश्यकता नहीं हैं। साध्वी ने कहा कि रामराज्य के आधार श्री राम थे जो ब्रह्मज्ञानी थे यही कारण है कि वो अपनी प्रजा के हितों का ध्यान रखते थे। उन्होंने अपनी प्रजा के साधारण लोगों को भी कभी अनदेखा नहीं किया। सब के लिए समान व्यवस्था थी, उनकी नजर में कोई भी अपेक्षित नहीं था। इसलिए हमारे महापुरुषों ने कहा कि राजा को ब्रह्मज्ञानी होना चाहिए या फिर किसी ब्रह्मज्ञानी को राजा बना दो। वर्तमान समय में यदि हम ऐसे ही अलौकिक राम राज्य की स्थापना करना चाहते हैं तो सर्वप्रथम प्रभु राम को जाना होगा। प्रभु राम का प्रकाट्य अपने भीतर करवाना होगा परंतु हम अपनी संकीर्ण बुद्धि और लौकिक इंद्रियों से त्रेता के इस युग-प्रणोता को नहीं जान सकते। वे केवल अयोध्या के ही आदर्श संचालक नहीं थे, अपितु संपूर्ण सृष्टि के नियामक तत्व हैं।

ऐसे ब्रह्मस्वरूप श्री राम जी को केवल ब्रह्म ज्ञान के द्वारा ही जाना जा सकता हैं। श्रीराम हमारे हृदय में निवास करते हैं और उनका दर्शन केवल दिव्य नेत्र द्वारा होता है। जिसके बारे में हमारे सभी धार्मिक शास्त्रों में बताया गया है। भारती जी ने बताया यूं तो दिव्य नेत्र हम सभी की भृकुटी के बीच में स्थित है। परंतु जब तक हमें उसे पूर्ण सतगुरु द्वारा ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती तब तक हम ईश्वर का साक्षात्कार नहीं कर सकते।सतगुरु दीक्षा देते समय इस दिव्य नेत्र को खोल देते हैं।जिसके खुलते ही जिज्ञासु अपने भीतर ईश्वर के वास्तविक स्वरूप का प्रत्यक्ष दर्शन करता है।

जब भीतर ह्रदय के सिंहासन पर राम विराजमान होते हैं, तब राम राज्य की स्थापना की होती हैं। कथा का समापन प्रभु की पावन आरती से हुआ। आरती में विशेष रूप से श्री राम लीला मंदिर कमेटी के सभी सदस्य, राजीव भनोट ब्यूरो चीफ, लाला कपिला प्रधान राम लीला कमेटी ऊना, सहदेव कौंडल, राजीव शर्मा, नर्मदा जसवाल महिला मोर्चा जिला अध्यक्ष, कुलदीप ठाकुर स्वीट्स शॉप, वंदना, रंजना देवी प्रधान नंदपुर, राज कुमार, वेद प्रकाश शर्मा, सतीश चौधरी, सत प्रकाश, डायमंड स्वीट्स शॉप नंदपुर, दविंदर लठ पूर्व चेयरमैन बीडीसी अम्ब, महेश हाकम, शिव कुमार हाकम और भी श्रद्धालुगण उपस्थित थे। अंत में श्री राम लीला मंदिर कमेटी ने मंच पर जाकर कथा व्यास और उनकी संत मण्डली को सम्मानित किया।

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