महिला दिवस पर विशेष- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:

हमारी समृद्ध भारतीय प्राचीन परंपरा में स्त्री तथा पुरुष को अर्थात् शक्ति और शक्तिमान को एक ही रूप में अथवा अद्धैत की भावना से देखा जाता था। इसका अगर विशेष उदाहरण देखना है तो उपनिषद् और उपनिषद् के बाद सांख्य दर्शन में विशेषकर प्रकृति और पुरुष ही संसार और समाज के प्रधान घटक माने गए हैं जोकि स्थूल रूप से स्त्री और पुरुष के प्रतिनिधि हैं और इसी को आधार मानकर आगे भारतीय दर्शन, पुराण, काव्य तथा इतिहास जैसे विस्तृत साहित्य का संवर्धन हुआ। इसका प्रतिबिम्ब गौरी शंकर, लक्ष्मी नारायण, सीता राम और राधा कृष्ण जैसे अराध्य देवों के रूप में देखा जा सकता है।

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आवश्यकता इस बात की है कि जो उच्च स्थान स्त्री का वैदिक युग से लेकर पौराणिक युग तक था उसी उच्च स्थान पर आज हम स्त्री जाति अर्थात नारी शक्ति को सुशोभित कर सकें। परंतु आज स्त्री पुरुष की परिकल्पना इस भांतिकवादी युग में एक उपभोग की विषय वस्तु के रूप में की जाती है। जो नारी, शक्ति अर्थात समाज की आधारशिला के रूप में प्रतिष्ठित है। आज इसी आधार अर्थात शक्ति को हम व्यभिचार, भ्रूण हत्या जैसे कुकृत्यों द्वारा अपमानित कर रहे हैं।

लिखिका
प्रिं. आरती सूद मेहता
प्रिंसीपल, किड्स पब्लिक स्कूल बीरबल नगर होशियारपुर।

स्त्री को जो सम्मान जिस समाज में मिल रहा है वह समाज निश्चित रूप से विकसित है, परंतु यह भारत की संपूर्ण जनसंख्या का मुश्किल से दस प्रतिशत से भी कम है। आवश्यकता इस बात की है कि भारतीय 90 प्रतिशत जो शेष समाज है उन्हें भी स्त्री गौरव और मातृशक्ति का बोध कराया जा सके। इस विषय को हमारी भारतीय प्रारम्भिक शिक्षा से उच्चतम शिक्षा के पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना अत्यंत आवश्यकता है। क्योंकि, शिक्षा के द्वारा ही समाज उन्नत और जागृत होता है। महिलाओं को भी एक संयमित तथा मर्यादित जीवन जीना चाहिए क्योंकि वे ही एक सभ्य समाज का प्रतिबिंब है। उन्हें यह कतई भूलना नही चाहिए कि जहां अधिकार हैं वहां कर्तव्य पहले हैं। मेरे जीवन का भी यही ध्यय है कि मैं इस अत्याधुनिक युग में अपने विद्यालय के विद्यार्थियों को एक उच्चकोटि की शिक्षा द्वारा सुसंस्कारों से सुसज्जित कर सकूं जिससे कि उनकी आत्म चेतना जागृत हो ताकि वे कभी भी पथभ्रष्ट न हों और अपने देश को अपराधमुक्त बनाएं क्योंकि बच्चे ही देश का भविष्य हैं। संस्कार हमारे धर्म की ही परिभाषा हैं।

जैसे भारतीय पर्व होली का सामाजिक महत्व विविधरंगों का सम्मिश्रण है उसी तरह हमारे देश में भी धर्म विविधता है। प्रत्येक धर्म आत्मा को परमात्मा से जुडऩे को ही प्रेरित करता है। हम सभी एक आत्मा ही तो हैं, शरीर भिन्न-भिन्न हैं । अर्थात हमें बच्चों को परमात्मा के साथ जोडऩा चाहिए ताकि वे सुगठित चरित्र के हों यही मूलभूत आवश्यकता है। सन 2001 में मैने अपने एकल प्रयास, कठिन सतत परिश्रम, ईमानदारी, सच्चाई, धैर्यशीलता, समर्पण, परिपूर्णता, त्याग, बहुकार्यकुशलता, प्रतिभा तथा योग्यता से किड्स पब्लिक स्कूल नामक एक सात्विक बीज आरोपित किया जोकि भगवत् कृपा से आज एक विशाल वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। जिसकी अनगिनत शाखाएं संस्कारित विद्यार्थियों के रूप में चहुं ओर अपने अस्तित्व का बोध करा रही हैं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि हर विद्यार्थी में कोई न कोई गुण जरुर होता है। एक अच्छे शिक्षक का कर्तव्य होता है कि सभी विद्यार्थियों के अंतर्निहित गुणों को एक जोहरी की भांति तराश कर उन्हें अमूल्यनिधि बनाएं। इसी भाव से मैं अपने विद्यालय में TALENT HUNT तथा ACADEMIC EXCELLENCE PROGRAM  का आयोजन हर वर्ष करती हूं ताकि मेरे स्कूल के सभी विद्यार्थी संस्कारित, प्रतिभाशाली तथा योग्यवान हों जोकि बड़े होकर स्वालम्बी बनें तथा सूर्य की किरणों की भांति सदा कीर्तिवान तथा प्रज्जवलित रहें। विद्यार्थियों के अभिभावकों की दृड़ इच्छा को ध्यान में रखते हुए मैं अपने विद्यालय में 10वीं श्रेणी (मैट्रिक) तथा शिक्षा देने के लिए प्रतिबद्ध हूं ताकि मेरे विद्यालय में पवित्र विद्या रूपी गंगा का प्रवाह निरंतर बहता रहे और मैं निरंतर समाज सेवा की तरफ अग्रसर होती रहूं। आज के आधुनिक परिवेश में हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली में अत्यंत सुधार की आवश्यकता है।

शिक्षा का व्यवसायीकरण बंद होना चाहिए तथा हमारी शिक्षा पद्धति में गुणवत्ता तथा पारदर्शिता का समावेश होना नितांत आवश्यक है। आसानी से उपलब्ध शिक्षा ही भारत को गरीबी से मुक्त करने की पहल है। मैं तो पिछले 20 वर्षों से इसी शिक्षा पद्धति को ही अपने विद्यालय में कार्यन्वित कर रही हूं ताकि मैं भी एक उत्कृष्ट भारत के निर्माण में कुछ योगदान दे सकूं। जय भारत

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